ग्रह-गोचरों के पुण्यकारी योग में गुप्त नवरात्र गुरूवार से, दस महाविद्या की उपासना में लीन रहेंगे साधक

पटना। आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा गुरुवार को ग्रह-गोचरों के पुण्यकारी संयोग में ग्रीष्म कालीन गुप्त नवरात्र आरंभ हो रहा है। इस गुप्त नवरात्र में देवी के उपासक पूरे दस दिनों तक माता के विभिन्न रूपों की पूजा-अर्चना करेंगे। यह नवरात्र में तंत्र विद्या की सिद्धि व गुप्त कामनाओं की पूर्ति हेतु महत्वपूर्ण होता है। श्रद्धालु निराहार या फलाहार रहकर गुरुवार को कलश स्थापना के साथ माता की आराधना करेंगे। सनातन धर्मावलंबियों के घरों, मंदिरो तथा शक्ति पीठों में विधिवत कलश की स्थापना तथा शक्ति की पूजन होंगी। इस नवरात्र में मां कामाख्या की पूजन-अर्चन विशेष तौर पर की जाती है। इस नवरात्र के दौरान देवी की साधना से कुंडली के विभिन्न दोषों से छुटकारा तथा चारों पुरुषार्थ धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष की प्राप्ति होती है।
ग्रह-गोचरों के उत्तम संयोग में गुप्त नवरात्र
आचार्य राकेश झा ने पंचांगों के हवाले से बताया कि गुरूवार से शुरू होने वाले गुप्त नवरात्र का आरंभ अति पुण्यकारी सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग, रवियोग, सर्वार्थ सिद्धि योग, जयद योग, गुरु-पुष्य योग बन रहे हैं। इन उत्तम संयोग में देवी माता की आराधना करना अतिपुण्य फलदायी होगा। इस महायोग में दुर्गा सप्तशती का पाठ करना अत्यंत कल्याणकारी होगा। नवरात्र में दुर्गा सप्तशती, देवी के विशिष्ट मंत्र का जाप, दुर्गा कवच, दुर्गा शतनाम का पाठ प्रतिदिन करने से रोग-शोक आदि का नाश होता है।
दस महाविद्याओं की होगी साधना
ज्योतिषी झा के अनुसार इस गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। विशषेत: तांत्रिक क्रियाओं, शक्ति साधनाओं और महाकाल से जुड़े साधकों के लिये यह नवरात्र विशेष महत्व रखता है। इस दौरान देवी के साधक कड़े विधि-विधान के साथ व्रत और साधना करते हैं। देवी के सोलह शक्तियों की प्राप्ति के लिये यह पूजन करते हैं।
देवी पूजन से मिलेगा कष्टकारी ग्रहों से मुक्ति
पंडित झा के कहा कि देवी मां की पूजन, हवन, वेद पाठ के उच्चारण से कष्टकारी ग्रह शनि, राहु और केतु से पीड़ित श्रद्धालूओं को लाभ होता है। दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति के लिये साधक महाकाली, तारा, भुवनेश्वरी, त्रिपुरसुंदरी, छिन्मस्तिका, भैरवी, बगलामुखी, माता कमला, मातंगी देवी की साधना करते हैं।
शक्ति पूजन से आरोग्यता का वरदान
भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के सदस्य धमार्चार्य राकेश झा ने शिव पुराण एवं मत्स्य पुराण के हवाले से बताया कि आषाढ़ मास के देवता इंद्र और महाकाली है। यह मास प्रकृति को अपने गोद में लिये हुए है, इसीलिए इस मास में बारिश की प्रधानता रहती है। ऋतु संधि में अनेक प्रकार की बीमारियों का प्रकोप बढ़ने के कारण इनसे बचाव हेतु आषाढ़ मास में शक्ति पूजन की प्राचीन परम्परा है।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
शुभ योग : प्रात: 05 : 03 बजे से 06 :46 बजे तक
गुली काल मुहूर्त : प्रात: 08:28 बजे से 10:11 बजे तक
चर मुहूर्त : सुबह 10:11 बजे से 11:53 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त : दोपहर 11:26 बजे से 12:21 बजे तक
लाभ मुहूर्त : दोपहर 11:53 बजे से 01:36 बजे तक
अमृत मुहूर्त : दोपहर 01:36 बजे से 03:18 बजे तक

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