November 17, 2025

ओवैसी की यात्रा पर गिरिराज सिंह का तंज़, कहा- वे कितनी भी कोशिश करें, उन्हें यहां कोई वोट नहीं देगा

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, प्रदेश का हर इलाका राजनीति से गरमाने लगा है। खासकर सीमांचल क्षेत्र, जहां मुस्लिम वोटर्स की बड़ी संख्या है, वहां पर राजनीतिक दलों ने अपना पूरा ध्यान केंद्रित कर दिया है। इसी कड़ी में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने चार दिवसीय यात्रा की शुरुआत किशनगंज से की है। ओवैसी ने स्पष्ट किया कि इस बार वे हर हाल में बीजेपी को सत्ता से बाहर रखेंगे।
ओवैसी की सीमांचल रणनीति
ओवैसी ने अपनी यात्रा के दौरान जनसभाओं में कहा कि सीमांचल के लोग अब ठगी नहीं खाएंगे। उन्होंने मुस्लिम और अति पिछड़े समुदायों को यह संदेश देने की कोशिश की कि बीजेपी की नीतियां उनके हितों के खिलाफ रही हैं। ओवैसी की पार्टी ने 2020 के विधानसभा चुनाव में सीमांचल क्षेत्र में पांच सीटें जीती थीं, हालांकि बाद में चार विधायकों के राजद में शामिल हो जाने से उनकी मजबूत पकड़ कमजोर हो गई थी। इस बार ओवैसी दोबारा सीमांचल में अपनी पकड़ बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
गिरिराज सिंह का पलटवार
ओवैसी की यात्रा पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने तीखा तंज कसा। उन्होंने कहा कि “ओवैसी चाहे जितना मुसलमान-मुसलमान चिल्ला लें, उन्हें यहां कोई वोट नहीं देगा। उनका वोट बैंक पहले ही तेजस्वी यादव ले चुके हैं।” गिरिराज सिंह ने जोर देते हुए कहा कि 2025 में किसी भी परिस्थिति में एनडीए ही सरकार बनाएगी और इसे कोई रोक नहीं पाएगा।
महागठबंधन पर हमला
गिरिराज सिंह ने ओवैसी पर ही नहीं बल्कि कांग्रेस और महागठबंधन पर भी हमला बोला। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के पास बिहार के लिए कोई ठोस एजेंडा नहीं है। महागठबंधन द्वारा जारी किया गया “अति पिछड़ा न्याय संकल्प पत्र” और विजन डॉक्यूमेंट भी उन्होंने भारत विरोधी बताया। उनका कहना था कि यह दस्तावेज बिहार की जनता की भावना का अपमान है और महागठबंधन केवल वोट बैंक की राजनीति कर रहा है।
महागठबंधन का नया दांव
महागठबंधन ने हाल ही में पटना में आयोजित बड़े कार्यक्रम में “अति पिछड़ा न्याय संकल्प पत्र” जारी किया है। इस कार्यक्रम में कांग्रेस नेता राहुल गांधी, राजद नेता तेजस्वी यादव और अन्य बड़े नेताओं ने शिरकत की। इसमें दस संकल्पों का वादा किया गया है जो अति पिछड़ा वर्ग को साधने के प्रयास माने जा रहे हैं। इन संकल्पों में शिक्षा, नौकरी और सामाजिक न्याय से जुड़े वादे शामिल हैं।
सीमांचल में समीकरण
सीमांचल के चार जिले– किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया– मुस्लिम आबादी के लिए जाने जाते हैं। यहीं पर ओवैसी अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं। 2020 के नतीजों ने यह साबित किया था कि इस क्षेत्र में एआईएमआईएम की अपील काम कर सकती है। लेकिन चार विधायकों के टूटकर राजद में जाने से पार्टी कमजोर पड़ गई। अब ओवैसी एक बार फिर उसी जमीन को मजबूत करना चाहते हैं।
बीजेपी की रणनीति
गिरिराज सिंह के बयान से साफ है कि बीजेपी सीमांचल में एआईएमआईएम और महागठबंधन दोनों को चुनौती मान रही है। पार्टी का मानना है कि मुस्लिम वोट चाहे ओवैसी के पास जाएं या महागठबंधन के साथ रहें, उससे एनडीए को ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। बीजेपी की रणनीति अति पिछड़ा वर्ग और महिलाओं के बीच अपना आधार मजबूत करना है। इसके साथ ही पार्टी हिंदुत्व के मुद्दे को भी सीमांचल में हवा दे सकती है।
चुनावी जंग का संकेत
ओवैसी की सीमांचल यात्रा और महागठबंधन द्वारा जारी ‘अति पिछड़ा न्याय संकल्प पत्र’ से साफ हो गया है कि आने वाले चुनाव में यह क्षेत्र सबसे ज्यादा राजनीतिक गतिविधियों का गवाह बनेगा। यहां मुस्लिम वोट, अति पिछड़े वर्ग, दलित और युवा मतदाता मुख्य कारक होंगे। महागठबंधन और ओवैसी की कोशिश होगी कि वे भाजपा और नीतीश कुमार को चुनौती दें।
ओवैसी और तेजस्वी के बीच प्रतिस्पर्धा
गिरिराज सिंह ने यह भी स्पष्ट किया कि मुस्लिम वोट बैंक पर तेजस्वी यादव का पहले से ही कब्जा है। यही वजह है कि ओवैसी की कोशिशें सफल होंगी या नहीं, यह कहना अभी मुश्किल है। दोनों नेताओं के बीच यह प्रतिस्पर्धा सीमांचल में चुनावी मुकाबले को और तीखा बना रही है। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सीमांचल का महत्व और भी बढ़ गया है। एक ओर ओवैसी अपनी चार दिवसीय यात्रा से क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं, तो दूसरी ओर महागठबंधन अति पिछड़ा वर्ग को अपने साथ जोड़ने के लिए नए संकल्प पेश कर रहा है। वहीं, बीजेपी सीमांचल में विपक्ष के खिलाफ आक्रामक रुख अपना रही है। गिरिराज सिंह के तंज से साफ है कि बीजेपी यह मानकर चल रही है कि न तो ओवैसी और न ही महागठबंधन उसके रास्ते में बड़ी चुनौती बन पाएंगे। हालांकि ज़मीनी सच्चाई क्या होगी, यह तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे, लेकिन इतना तय है कि आने वाले महीनों में सीमांचल बिहार की राजनीति का मुख्य केंद्र रहेगा।

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