गिरिराज सिंह का चिराग पर हमला, कहा- सीट बंटवारे की बातचीत में कार्यकर्ताओं की उपेक्षा हुई, ये एनडीए के ठीक नही
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर एनडीए में सीट बंटवारे की प्रक्रिया भले ही पूरी हो गई हो, लेकिन असंतोष की लहर अब भी थमी नहीं है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने इस बंटवारे पर नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने बिना नाम लिए लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान पर निशाना साधते हुए कहा कि सीटों के बंटवारे में जमीनी कार्यकर्ताओं की अनदेखी की गई है, जो गठबंधन की एकता और संगठन की भावना के लिए सही संकेत नहीं है।
सीट बंटवारे पर गिरिराज सिंह की नाराजगी
एक निजी चैनल से बातचीत के दौरान गिरिराज सिंह ने स्पष्ट कहा कि सीटों के बंटवारे में पार्टी कार्यकर्ताओं की राय को नजरअंदाज किया गया है। उन्होंने सवाल उठाया कि जिन सीटों पर भाजपा या एनडीए पिछले चुनाव में बहुत कम अंतर से हारे थे, वे सीटें इस बार किसी और दल के खाते में कैसे चली गईं? उन्होंने कहा, “जहां हम 500 से 700 वोटों से हारे थे, वहां की सीट किसी और को दे देना कार्यकर्ताओं के मनोबल पर असर डालता है। नेताओं को कार्यकर्ताओं की आवाज बनना चाहिए, न कि उन्हें नजरअंदाज करना चाहिए।”
सोशल मीडिया पर भी साधा निशाना
गिरिराज सिंह ने अपनी नाराजगी सिर्फ बयान तक सीमित नहीं रखी, बल्कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर भी तंज कसा। उन्होंने लिखा, “आज मजबूत सीट लेकर स्ट्राइक रेट का झुनझुना बजा रहे हैं। 2010 के बिहार चुनाव में एनडीए ने 243 में से 206 सीटें जीती थीं। जदयू ने 141 में से 115 और बीजेपी ने 102 में से 91 सीटें जीतीं। स्ट्राइक रेट 81 और 89 प्रतिशत था। तब भी धर्मेंद्र प्रधान प्रभारी थे और आज भी वही हैं।” उनके इस बयान को राजनीतिक गलियारों में चिराग पासवान पर सीधा प्रहार माना जा रहा है।
चिराग पासवान की ‘स्ट्राइक रेट’ राजनीति
इस बार सीट बंटवारे में चिराग पासवान ने अपनी पार्टी के लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन का हवाला देकर दबाव बनाया था। उन्होंने अपने “स्ट्राइक रेट” यानी जीत प्रतिशत को आधार बनाकर एनडीए के भीतर बड़ी हिस्सेदारी मांगी। उनके इसी तर्क के चलते लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 29 सीटें दी गईं, जो पिछले विधानसभा चुनाव से काफी अधिक हैं। इसके चलते भाजपा और जदयू दोनों को अपने हिस्से की सीटों में कटौती करनी पड़ी।
सीट बंटवारे का अंतिम फॉर्मूला
अंतिम समझौते के तहत भाजपा और जदयू दोनों को 101-101 सीटें मिली हैं। लोजपा (रामविलास) को 29 सीटें, जबकि हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो) को छह-छह सीटें दी गई हैं। इस प्रकार कुल 243 सीटों पर एनडीए का पूरा फॉर्मूला तय हो गया है। हालांकि अभी तक उम्मीदवारों के नामों की औपचारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन कुछ संभावित प्रत्याशी पहले से ही अपने क्षेत्रों में सक्रिय हैं और नामांकन की प्रक्रिया शुरू कर चुके हैं।
कार्यकर्ताओं में असंतोष की चर्चा
गिरिराज सिंह के बयान ने यह संकेत दे दिया है कि सीट बंटवारे से न केवल वरिष्ठ नेताओं के बीच असहमति है बल्कि जमीनी स्तर पर भी असंतोष व्याप्त है। कई कार्यकर्ताओं को लग रहा है कि उनकी मेहनत और स्थानीय समर्थन के बावजूद उनकी सीटें दूसरे दलों को सौंप दी गईं। इससे पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं में निराशा का माहौल है। गिरिराज सिंह का यह बयान उसी असंतोष की अभिव्यक्ति माना जा रहा है।
एनडीए की एकता पर सवाल
गिरिराज सिंह के बयान के बाद राजनीतिक विश्लेषक यह मान रहे हैं कि एनडीए में सबकुछ सामान्य नहीं है। सीट बंटवारे को लेकर पहले से ही नीतीश कुमार और चिराग पासवान के बीच अप्रसन्नता की खबरें आ चुकी हैं। अब भाजपा के वरिष्ठ नेता की इस टिप्पणी ने गठबंधन की आंतरिक स्थिति पर नए सवाल खड़े कर दिए हैं। हालांकि भाजपा नेतृत्व यह संदेश देने की कोशिश कर रहा है कि गठबंधन पूरी मजबूती से चुनाव लड़ेगा, लेकिन भीतर की हलचल को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
धर्मेंद्र प्रधान का जिक्र और पुराना संदर्भ
गिरिराज सिंह ने अपने पोस्ट में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का उल्लेख भी किया, जो इस बार भी बिहार चुनाव के प्रभारी हैं। उन्होंने 2010 के चुनाव का हवाला देकर यह दर्शाने की कोशिश की कि उस समय एनडीए की सीटें कम नहीं थीं और फिर भी जीत का प्रतिशत बहुत अधिक था। उनका संकेत यह था कि अधिक सीटें मिलना ही सफलता की गारंटी नहीं है, बल्कि कार्यकर्ताओं का मनोबल और संगठन की मजबूती ही असली ताकत है।
एनडीए के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति
विधानसभा चुनाव से ठीक पहले गठबंधन के भीतर इस तरह के बयान एनडीए के लिए चिंता का विषय बन सकते हैं। भाजपा नेतृत्व को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि असंतुष्ट नेताओं और कार्यकर्ताओं को मनाया जाए ताकि चुनावी मैदान में एकजुटता का संदेश जाए। अगर असंतोष बढ़ा तो इसका सीधा असर एनडीए के वोट बैंक पर पड़ सकता है। बिहार की राजनीति में सीट बंटवारे का मुद्दा हमेशा से संवेदनशील रहा है, और इस बार भी वही स्थिति देखने को मिल रही है। गिरिराज सिंह के बयान ने यह साफ कर दिया है कि गठबंधन के भीतर सब कुछ सुचारु नहीं चल रहा। चिराग पासवान की सीटों पर बढ़ी पकड़ और भाजपा-जदयू की घटी हिस्सेदारी ने कई नेताओं को असहज कर दिया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा नेतृत्व इस असंतोष को कैसे शांत करता है और क्या एनडीए चुनाव से पहले फिर से पूरी एकजुटता के साथ मैदान में उतर पाता है या नहीं।


