बांग्लादेश की पूर्व पीएम से हसीन को फांसी की सजा: कोर्ट ने सुनाया फैसला, बेटा बोला- मां भारत में सुरक्षित
नई दिल्ली। बांग्लादेश की राजनीति में सोमवार का दिन ऐतिहासिक और विवादों से भरा रहा, जब ढाका की इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को दो मामलों में दोषी पाते हुए मौत की सजा सुनाई। अदालत ने उन्हें जुलाई 2024 के छात्र आंदोलन के दौरान हुई हत्याओं के लिए उकसाने और हत्या का आदेश देने का दोषी ठहराया। इसी मामले में पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमान खान को भी फांसी की सजा सुनाई गई, जबकि तीसरे आरोपी और पूर्व आईजीपी चौधरी अब्दुल्ला अल-ममून को सरकारी गवाह बनने के कारण पांच साल की सजा दी गई है।
ट्रिब्यूनल का गठन और इसका इतिहास
जिस इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल ने हसीना को सजा सुनाई है, उसकी स्थापना स्वयं हसीना ने अपने कार्यकाल में 2010 में की थी। यह अदालत 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान हुए युद्ध अपराधों, यातनाओं और नरसंहार के मामलों की सुनवाई के लिए बनाई गई थी। हालांकि संबंधित कानून 1973 में ही बनाया जा चुका था, लेकिन कई दशकों तक इसपर कोई कार्रवाई शुरू नहीं हो सकी। कई राजनीतिक विश्लेषक अब इसी ट्रिब्यूनल को लेकर दोबारा बड़े सवाल उठा रहे हैं, क्योंकि अब इसका फैसला हसीना के खिलाफ आया है, जो पिछले 15 महीनों से भारत में रह रही हैं।
आरोपों की गंभीरता
चार्जशीट के अनुसार, शेख हसीना और उनके सहयोगियों ने छात्र आंदोलन को दबाने के लिए घातक हथियारों, हेलिकॉप्टर और ड्रोन का इस्तेमाल करने का आदेश दिया था। अदालत में प्रस्तुत आरोपों में कहा गया कि हसीना ने पुलिस और अवामी लीग से जुड़े हथियारबंद समूहों को प्रदर्शनकारियों पर हमला करने के लिए उकसाया और हिंसा को रोकने में नाकाम रहीं। एक आरोप 16 जुलाई को बेगम रौकेया विश्वविद्यालय के छात्र अबू सैयद की हत्या से जुड़ा है, जिसमें कहा गया कि यह हसीना और अन्य आरोपियों के निर्देश पर हुई। दूसरा बड़ा आरोप ढाका के चांखारपुल क्षेत्र में छह निहत्थे प्रदर्शनकारियों की हत्या का है। इन हत्याओं को प्रत्यक्ष रूप से प्रधानमंत्री आवास में हुई बैठकों में रची गई साजिश का परिणाम बताया गया है।
पूर्व आईजीपी ममून बने सरकारी गवाह
आईजीपी चौधरी अब्दुल्ला अल-ममून, जो अब सरकारी गवाह बन चुके हैं, ने अदालत में स्वीकार किया कि उन्होंने घटनाओं में भूमिका निभाई। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री आवास में चार लोगों की टीम रोजाना योजना बनाने के लिए मीटिंग करती थी। ममून ने अदालत में कहा कि 36 साल की सेवा में उन्होंने कभी कोई अपराध नहीं किया था, लेकिन इस घटना से उनका पूरा करियर धूमिल हो गया। उनकी स्वीकारोक्ति को देखते हुए अदालत ने उन्हें तुलनात्मक रूप से कम सजा दी।
भारत में शरण और बेटे का बयान
शेख हसीना और पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमान खान तख्तापलट के बाद 5 अगस्त 2024 को देश छोड़कर भारत चले गए थे। वर्तमान में दोनों भारत में रह रहे हैं। हसीना के बेटे सजीब वाजेद ने कुछ दिन पहले कहा था कि उन्हें पहले से अंदेशा था कि उनकी मां को मौत की सजा दी जाएगी। उन्होंने दावा किया कि हसीना भारत में सुरक्षित हैं और भारतीय एजेंसियां उनकी सुरक्षा सुनिश्चित कर रही हैं। सजीब वाजेद ने यह भी कहा कि हसीना पांच बार प्रधानमंत्री रह चुकी हैं और अवामी लीग बांग्लादेश की सबसे बड़ी पार्टियों में से एक है। इसलिए देश में यह फैसला हल्के में नहीं लिया जाएगा।
हसीना का बयान – निर्णय राजनीति से प्रेरित
फैसले के बाद शेख हसीना ने एक बयान जारी करते हुए इस निर्णय को “गलत, पक्षपाती और राजनीतिक बदले की कार्रवाई” बताया है। उन्होंने कहा कि फैसले देने वाला ट्रिब्यूनल एक ऐसी गैर-निर्वाचित सरकार के अधीन काम कर रहा है, जिसके पास कोई जनादेश नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि देश में पुलिस, न्यायपालिका और प्रशासनिक व्यवस्था कमजोर पड़ गई है। अवामी लीग कार्यकर्ताओं और अल्पसंख्यक समुदायों पर हमले बढ़े हैं और कट्टरपंथियों का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। हसीना ने कहा कि अगले चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष होने चाहिए।
ढाका में तनावपूर्ण हालात
फैसले के बाद ढाका में तनाव बढ़ गया। धानमंडी 32 इलाके में प्रदर्शनकारियों ने उस घर के बचे हिस्सों को गिराने की कोशिश की, जो कभी शेख मुजीबुर रहमान का निवास था। पुलिस और सेना ने भीड़ को रोकने की कोशिश की, जिसके बाद लाठीचार्ज और पथराव शुरू हो गया। रिपोर्ट्स के अनुसार भीड़ को तितर-बितर करने के लिए साउंड ग्रेनेड भी फेंके गए। कई प्रदर्शनकारी और कुछ सुरक्षा कर्मी घायल हुए। शहर की सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ है और पुलिस को देखते ही गोली मारने के आदेश जारी कर दिए गए हैं। बांग्लादेश का यह फैसला देश की राजनीति में उथल-पुथल और गहरी विभाजन रेखाओं की ओर संकेत करता है। पूर्व प्रधानमंत्री को मौत की सजा दिया जाना दक्षिण एशियाई राजनीति की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक है। एक तरफ अदालत इसे न्याय का दिन बता रही है, वहीं दूसरी ओर शेख हसीना इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई कह रही हैं। आने वाले दिनों में बांग्लादेश के भीतर और बाहर, दोनों जगह प्रतिक्रिया तेज होने की संभावना है। राजनीतिक अस्थिरता, जनाक्रोश और अंतरराष्ट्रीय नजरों के बीच बांग्लादेश अब एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है।


