बुद्ध पूर्णिमा को लग रहा सदी का पहला चंद्रग्रहण, जहां दिखता है ग्रहण, वहीं लगता है सूतक

पटना। वैशाख शुक्ल पूर्णिमा बुधवार को अनुराधा नक्षत्र तथा वृश्चिक में इस साल का पहला चंद्रग्रहण लग रहा है। यह चंद्रग्रहण उपछाया चंद्रग्रहण होगा। इस पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा भी कहा जाता है। स्नान-दान की यह पूर्णिमा सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग में मनायी जाएगी। ज्योतिषशास्त्र में ग्रहण को अशुभ माना जाता है। यह चंद्रग्रहण उपछाया होने के कारण इसका सूतक काल मान्य नहीं होगा। उपछाया चंद्रग्रहण में चंद्रमा पर कुछ समयावधि के लिए पृथ्वी की छाया पड़ती है, जिसकी वजह से वह मटमैला दिखाई देता है। यह चंद्रग्रहण वृश्चिक राशि और अनुराधा नक्षत्र में होने से ग्रहण का ज्यादा प्रभाव इसी राशि और नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातकों पर पड़ेगा। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक सूर्यग्रहण में गंगा स्नान से सौ अश्वमेघ यज्ञ व चंद्रग्रहण में गंगा स्नान से एक हजार वाजस्नेय यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है। इसीलिए ग्रहण के बाद गंगाजल से स्नान एवं घरों में इसका छिड़काव किया जाता है।
चंद्रग्रहण का समय काल
भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के सदस्य ज्योतिषाचार्य राकेश झा ने पंचागों के हवाले से बताया कि बुधवार को साल का पहला चंद्रग्रहण दोपहर 03:15 बजे से आरंभ होकर संध्या 06:23 बजे खत्म होगा। वहीं ग्रहण का मध्य काल शाम 04:49 बजे होगा। वर्ष के प्रथम चंद्रग्रहण की अवधि करीबन 03 घंटे 08 मिनट का रहेगा। चंद्र ग्रहण का सूतक नौ घंटे पहले ही शुरू हो जाता है। चंद्रग्रहण में सफेद फूल और चंदन से चंद्रमा और भगवान शिव की आराधना करें। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। गुरु को स्मरण करें। ग्रहण समाप्त होने पर स्नान कर लें। गंगाजल में ईत्र मिलाकर पूरे घर में छिड़काव करें, जिससे धनलक्ष्मी और सौभाग्य की प्राप्ति होगी।
भारत के पूर्वी क्षितिज पर दिखेगा चंद्रग्रहण
पंडित झा ने कहा कि यह चंद्रग्रहण भारत के पूर्वी क्षितिज पर दिखेगा। ग्रहण काल में परिस्थितियां ऐसी बनेगी कि जिस समय ग्रहण का स्पर्श और मध्य समय रहेगा, उस समय भारतीय दृश्यकाश से चन्द्रमा दिखाई नहीं देगा क्योंकि उस दिन का समय होगा तथा जब भारत के क्षितिज पर चन्द्रमा का बिंब दिखाई देना शुरू करेगा, तब ग्रहण का मोक्ष हो जायेगा। पूर्वोत्तर भारत के सुदूर स्थानों से ही कहीं-कहीं उस समय की समाप्ति का दृश्य देखा जा सकता है। ज्योतिष शास्त्र में ऐसे ग्रहण को ग्रस्तोदित ग्रहण माना गया है। भारत के पूर्वी छोर अगरतला, इटानगर, गुवाहाटी, शिलांग, कलकत्ता, पूरी, कोणार्क, भुवनेश्वर, कटक, दुर्गापुर, सिलचर, इम्फाल आदि के अलावे अमेरिका, आॅस्ट्रेलिया, उत्तरी यूरोप, पूर्वी एशिया और प्रशांत महासागर में देखा जायेगा। ग्रहण जहां दिखाई पड़ता है, उसका फलाफल भी वहीं लगता है।
स्नान-दान से मिलेगा पुण्य
ज्योतिष विद्वान राकेश झा शास्त्री ने कहा कि मंत्रों का जाप करने के लिए ग्रहण काल सबसे अच्छा मुहूर्त होता है। इस दौरान गायत्री मंत्र का जाप, हनुमान चालीसा और हनुमान जी के मंत्रोच्चारण श्रेष्यकर होता है। ऐसा करने से सभी राशि के जातक के दोष दूर होते हैं। गुरु, ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद को दान किया जाता है। मान्यता है कि ग्रहण के वक्त या बाद में दान करने से समृद्धि तथा धन की देवी लक्ष्मी माता की विशेष कृपा होती है। ज्योतिषी झा के मुताबिक चंद्रग्रहण के बाद स्नान और दान से विशेष लाभ मिलता है। दान में गेहूं, धान, चना, मसूर दाल, गुड़, अरवा चावल, सफेद-गुलाबी वस्त्र, चूड़ा, चीनी, चांदी-स्टील की कटोरी में खीर दान करना उत्तम होता है।

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