दिल्ली के जंतर मंतर पर किसानों की महापंचायत, जुटे देश भर के किसान, एमएसपी और कई मांगों को लेकर प्रदर्शन
नई दिल्ली। देशभर के किसान एक बार फिर अपनी मांगों को लेकर राजधानी दिल्ली में इकट्ठा हुए हैं। सोमवार को संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) के आह्वान पर दिल्ली के जंतर-मंतर पर किसान महापंचायत आयोजित की गई, जिसमें बड़ी संख्या में किसानों की भागीदारी देखी जा रही है। इस महापंचायत का मुख्य उद्देश्य न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी और कृषि क्षेत्र से जुड़ी अन्य समस्याओं को लेकर सरकार पर दबाव बनाना है। महापंचायत में किसानों की प्रमुख मांगें सामने आईं। इनमें सभी फसलों के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी, कृषि, डेयरी, पोल्ट्री और मत्स्य पालन क्षेत्रों को अमेरिका के साथ किसी भी प्रस्तावित समझौते से अलग रखना, और 2020–21 के किसान आंदोलन के दौरान दर्ज मामलों को वापस लेना शामिल है। किसान संगठन लंबे समय से आरोप लगाते रहे हैं कि केंद्र सरकार ने आंदोलन खत्म होने के बाद किए गए वादों को अब तक पूरा नहीं किया है। गौरतलब है कि 2020 और 2021 में किसानों ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ ऐतिहासिक आंदोलन किया था। हजारों किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर महीनों तक डेरा डाला और अंततः केंद्र सरकार को कानून वापस लेने पड़े। लेकिन उस समय भी किसानों ने यह स्पष्ट कहा था कि उनकी सबसे बड़ी मांग एमएसपी की कानूनी गारंटी है, जिस पर सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। महापंचायत को शांतिपूर्ण बनाए रखने के लिए पुलिस प्रशासन भी पूरी तरह सतर्क है। दिल्ली पुलिस ने लगभग 1,200 जवानों को मौके पर तैनात किया है ताकि किसी भी तरह की अप्रिय घटना को रोका जा सके। अधिकारियों ने साफ किया है कि कानून-व्यवस्था को बिगड़ने नहीं दिया जाएगा। इससे पहले पंजाब और हरियाणा के किसानों ने शंभू और खनौरी बॉर्डर पर महीनों तक धरना-प्रदर्शन किया था। यहां किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने चार महीने तक अनशन भी किया। हालांकि केंद्र सरकार और किसानों के बीच कई दौर की बातचीत हुई, लेकिन एमएसपी पर सहमति नहीं बन सकी। अंततः कई जगहों पर किसानों को पुलिस कार्रवाई के बाद हटाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस आंदोलन के संदर्भ में महत्वपूर्ण टिप्पणियां की थीं। अदालत ने डल्लेवाल को “सच्चा किसान” बताते हुए उनकी शांतिपूर्ण भूमिका की सराहना की थी। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि देश की जीवनरेखा माने जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों को लंबे समय तक अवरुद्ध नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे आम जनता की दिक्कतें बढ़ती हैं। इस बार की महापंचायत किसानों के लिए अहम मानी जा रही है, क्योंकि यह आंदोलन के लगभग चार साल बाद हो रही है। किसान संगठनों का मानना है कि यदि उनकी मांगें अनदेखी की जाती हैं, तो संघर्ष को और तेज किया जाएगा। दूसरी ओर, सरकार पर यह दबाव है कि वह किसानों की समस्याओं का समाधान करे, ताकि भविष्य में फिर से बड़े पैमाने पर आंदोलन खड़ा न हो। इस प्रकार जंतर-मंतर की यह महापंचायत किसानों की अधूरी मांगों और सरकार के वादों की याद दिलाने वाला एक बड़ा मंच बनकर सामने आई है।


