9 दिन का होगा दशहरा : 7 अक्टूबर को घट स्थापना के साथ शुरू होगा शारदीय नवरात्र, डोली पर आएंगी माता

पटना। भगवती दुर्गा की उपासना का महापर्व शारदीय नवरात्र 7 अक्टूबर को आश्विन शुक्ल प्रतिपदा दिन गुरुवार को ग्रह-गोचरों के युग्म संयोग में शुरू हो रहा है। कोरोना के बाद सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देश के अनुरूप पूजा पंडाल में माता की मूर्ति की स्थापना और मेले का आयोजन किया जा रहा है। इस बार एक तिथि के क्षय होने से नौ दिनों का ही दशहरा मनाया जायेगा। शारदीय नवरात्रि को सभी नवरात्रों में सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण माना जाता है। आश्चिन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से विजया दशमी तक माता के विभिन्न रूपों की आराधना होती है।
डोली में आगमन व गज पर होगी विदाई
भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद् के सदस्य ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा ने बताया कि 7 अक्टूबर को अभिजीत मुहूर्त व सर्वार्थ सिद्धि योग में कलश स्थापना से आरंभ होकर शारदीय नवरात्र 15 अक्टूबर दिन शुक्रवार को सर्वार्थ सिद्धि तथा रवियोग के युग्म संयोग में विजया दशमी के साथ संपन्न होगा। इस नवरात्र में माता अपने भक्तो को दर्शन देने के लिए डोली पर आ रही हैं। माता के इस आगमन से महिलाओं का वर्चस्व बढ़ेगा और मान-सम्मान में वृद्धि होगी है। सभी क्षेत्रों में महिलाओं का जोर होगा। देश की उन्नति व प्रगति में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहेगा, लेकिन महामारी से लोग परेशान रहेंगे। इसके साथ ही माता की विदाई गज पर होगी। गज पर विदाई श्रद्धालुओं के लिए शुभ फलकारी तथा उत्तम वृष्टि कारक होगा। श्रद्धालु अपने घरों में कलश स्थापना कर माता का आवाह्न के साथ दुर्गा सप्तशती, दुर्गा सहस्त्र नाम, रामचरितमानस, सुंदरकांड, अर्गला, कवच, कील आदि का पाठ करेंगे।
ग्रह-गोचरों के युग्म संयोग में शारदीय नवरात्र
आचार्य राकेश झा ने अनुसार शारदीय नवरात्र में तिथि, वार और नक्षत्रों के संयोग से लगभग प्रत्येक दिन माता की कृपा पाने हेतु पूजा-पाठ, मंत्र जाप, कन्या पूजन, हवन आदि करने के लिए या अन्य शुभ कार्यों के लिए उत्तम रहेगा। इस बार नौ दिवसीय नवरात्र में 1 सर्वार्थ सिद्धि, 1 जयद योग और 5 रवियोग बन रहे हैं। इनके साथ ही प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य तथा शोभन योग भी रहेंगे। इस शुभ योग में चल-अचल संपत्ति में निवेश, जेवरात की खरीदी, लग्न आदि की खरीदारी के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त है।
नौ दिन का होगा दशहरा
पंचांगीय गणना के अनुसार इस वर्ष शारदीय नवरात्र के दौरान आश्विन शुक्ल में पंचमी एवं षष्ठी तिथि एक ही दिन पड़ रही है। 11 अक्टूबर को ही माता के पंचम रूप स्कंदमाता तथा षष्ठम स्वरूप कात्यायनी की पूजा-आराधना किया जायेगा। इसी वजह से इस बार दुर्गा पूजा दस के बजाय नौ दिन में ही संपन्न हो जायेगा। भगवती की कृपा तथा सर्वसिद्धि की कामना से श्रद्धालु दुर्गा सप्तशती के 13 अध्याय के कुल 700 श्लोको का विधिवत पाठ करेंगे।
घट स्थापना से मिलेगा सुख-समृद्धि
पंडित झा ने देवी पुराण के हवाले से कहा कि नवरात्र व्रत-पूजा में घट या कलश स्थापन का विशेष महत्व है। कलश में ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र, नवग्रहों, सभी नदियों, सागरों-सरोवरों, सातों द्वीपों, षोड्श मातृकाओं, चौसठ योगिनियों सहित सभी तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है। धर्मशास्त्र के अनुसार नवरात्र में कलश की पूजा करने से सुख-समृद्धि, धन, वैभव, ऐश्वर्य, शांति, पारिवारिक उन्नति तथा रोग-शोक का नाश होता है। कलश स्थापना आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को अभिजीत मुहूर्त के करना सबसे शुभ रहेगा।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
उदयकालिक योग : प्रात: 06:10 बजे से शाम 05:28 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त : दोपहर 11:14 बजे से 12:01 बजे तक
गुली काल मुहूर्त : सुबह 08:41 बजे से 10:09 बजे तक
नवरात्रि में इन नौ देवियों की होगी पूजा
07 अक्टूबर : कलश स्थापना व शैलपुत्री माता की पूजा
08 अक्टूबर : माता के द्वितीय स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
09 अक्टूबर : चांद की तरह चमकने वाली माता चंद्रघंटा की पूजा
10 अक्टूबर : पूरे जगत को अपने चरणों में शरण देने वाली कुष्मांडा की पूजा
11 अक्टूबर : कार्तिक स्वामी की मां स्कंदमाता व कात्यायन आश्रम में प्रकट कात्यायनी की आराधना
12 अक्टूबर : माता का पट खुलेगा तथा काल नाशनी मां कालरात्रि की उपासना
13 अक्टूबर : श्वेत वर्ण वाली महागौरी माता की आराधना तथा श्रृंगार पूजा
14 अक्टूबर : सर्वसिद्धि को देने वाली मां सिद्धिदात्री की पूजा, पाठ का समापन, हवन, पुष्पांजलि व कन्या पूजन
15 अक्टूबर : विजयादशमी, देवी की विदाई, कलश विसर्जन, पारण

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