पटना में महासप्तमी पर आज खुलेंगे माता के पट, पंडालों में भक्तों की लगेगी भीड़, चार दिन का होगा विशेष अनुष्ठान
पटना। पटना में शारदीय नवरात्र का उत्सव अपने पूरे उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है। आज सप्तमी तिथि पर माता दुर्गा का पट खोला जाएगा। इस अवसर पर भक्तों की भारी भीड़ मंदिरों और पंडालों में उमड़ेगी। सप्तमी को माता कालरात्रि की पूजा की जाती है, जिन्हें विशेष रूप से भय निवारिणी देवी कहा गया है। इस दिन पट मूल नक्षत्र और सौभाग्य योग में खोले जाएंगे, जो धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माने जाते हैं।
कालरात्रि की पूजा और महत्व
सप्तमी के दिन माता कालरात्रि की पूजा की जाती है। पुराणों और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, देवी कालरात्रि अपने भक्तों को अकाल मृत्यु से बचाती हैं। इनके नाम के उच्चारण मात्र से भूत-प्रेत, राक्षस और नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं। यह देवी दुष्टों का नाश करती हैं और ग्रह-बाधाओं, शत्रुओं तथा अन्य भय से मुक्ति प्रदान करती हैं। कालरात्रि की उपासना करने वाले भक्त को अग्नि, जल, जंतु या रात्रि से भय नहीं होता। इसलिए सप्तमी की पूजा का विशेष महत्व है।
पत्रिका प्रवेश और महानिशा पूजा
सप्तमी की रात को महानिशा पूजा की जाती है। यह पूजा मध्यरात्रि में होती है और इसका विशेष महत्व है। इसके अतिरिक्त इस दिन पत्रिका प्रवेश की भी परंपरा है। जब पट खुलते हैं तो भक्तों को माता का दिव्य दर्शन प्राप्त होता है, जिसे विहंगम दर्शन कहा जाता है। भक्त अगले चार दिनों तक माता की विशेष पूजा-अर्चना करेंगे और अनुष्ठानों में सम्मिलित होंगे।
महाष्टमी का उत्सव
सप्तमी के बाद महाष्टमी का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन माता महागौरी की पूजा होती है। महागौरी को सौंदर्य, शांति और करुणा की देवी माना गया है। इस दिन श्रृंगार पूजा भी की जाती है, जिसमें माता का अलंकरण और विविध प्रकार से सजावट की जाती है। भक्त विशेष रूप से इस दिन माता से सुख-समृद्धि और शांति की कामना करते हैं।
महानवमी और सिद्धिदात्री की आराधना
महानवमी का दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा के लिए समर्पित होता है। यह पूजा अत्यंत फलदायी मानी जाती है। महानवमी के दिन दुर्गा सप्तशती पाठ का समापन होता है। इसके साथ ही हवन, पुष्पांजलि और कन्या पूजन का आयोजन होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कन्या पूजन को नवरात्र का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना गया है।
विजयादशमी और देवी की विदाई
नवरात्र का समापन दशमी तिथि को होता है, जिसे विजयादशमी या दशहरा कहा जाता है। इस दिन बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक रूप मनाया जाता है। विजयादशमी के दिन देवी की विदाई होती है और जयंती धारण की जाती है। पटना समेत पूरे भारत में यह पर्व विशेष श्रद्धा और भव्यता के साथ मनाया जाता है।
कन्या पूजन का महत्व
नवरात्र में कन्या पूजन का विशेष महत्व है। पुराणों के अनुसार तीन से नौ वर्ष की कन्याएं साक्षात देवी का स्वरूप मानी जाती हैं। बंगाली परंपरा में अष्टमी को कन्या पूजन किया जाता है, जबकि वैदिक सनातन परंपरा में महानवमी को हवन के बाद कन्या पूजन का विधान है। कन्या पूजन में एक, तीन, नौ या उससे अधिक कन्याओं की पूजा की जा सकती है। एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, दो कन्याओं की पूजा से भोग और मोक्ष, तीन कन्याओं की पूजा से धर्म, अर्थ और काम की सिद्धि, चार कन्याओं की पूजा से राज्यपद, पांच कन्याओं से विद्या, छ: कन्याओं से सिद्धि, सात कन्याओं से राज्य, आठ कन्याओं से संपदा और नौ कन्याओं की पूजा से संपूर्ण पृथ्वी पर प्रभुत्व प्राप्त होने का आशीर्वाद मिलता है।
कन्याओं के विभिन्न स्वरूप
शास्त्रों में कन्याओं के अलग-अलग आयु के आधार पर नाम और स्वरूप बताए गए हैं। दो वर्ष की कन्या को कुमारी, तीन वर्ष की को त्रिमूर्ति, चार वर्ष की को कल्याणी, पांच वर्ष की को रोहिणी, छ: वर्ष की को कालिका, सात वर्ष की को चंडिका, आठ वर्ष की को शांभवी, नौ वर्ष की को दुर्गा और दस वर्ष की को सुभद्रा कहा गया है। इन सबके पूजन का विशेष महत्व बताया गया है। पटना सहित पूरे भारत में नवरात्र का पर्व धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक उल्लास के साथ मनाया जाता है। महासप्तमी से विजयादशमी तक प्रत्येक दिन का अपना विशिष्ट महत्व है। माता कालरात्रि की पूजा से लेकर महागौरी और सिद्धिदात्री की आराधना तक, हर दिन भक्तों के जीवन में नई ऊर्जा और आस्था का संचार करता है। कन्या पूजन, हवन और अन्य अनुष्ठानों के माध्यम से भक्त देवी के आशीर्वाद की कामना करते हैं। विजयादशमी के साथ यह पर्व समाप्त होता है, लेकिन यह संदेश देता है कि अंततः धर्म और सत्य की विजय होती है।


