पटना में चैती छठ का समापन: उगते सूरज को दिया गया अर्घ्य गंगा घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़, कई जगह लगे जाम

पटना। बिहार में आस्था और श्रद्धा के महापर्व चैती छठ का समापन हो गया। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व का समापन शुक्रवार को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ हुआ। छठ व्रतियों ने 36 घंटे के निर्जला उपवास के बाद सूर्योदय के समय अर्घ्य अर्पित किया, जिससे पूरे प्रदेश में भक्ति और उत्साह का माहौल बना रहा।
गंगा घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़
पटना में शुक्रवार की सुबह 4 बजे से ही गंगा घाटों पर व्रतियों और श्रद्धालुओं का आगमन शुरू हो गया था। लोग अपने परिवार के साथ घाटों पर पहुंचे और विधिवत सूर्य उपासना की। पटना में कुल 41 गंगा घाटों और 7 तालाबों पर अर्घ्य दिया गया। इस दौरान श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी, जिससे कई इलाकों में जाम की स्थिति बन गई, खासकर दीघा घाट के पास।
विशेष संयोग में हुआ छठ व्रत
इस वर्ष चैती छठ का पर्व मृगशिरा नक्षत्र में शोभन योग और रवियोग के संयोग में हुआ, जिसे शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जल में रक्त चंदन, लाल फूल और इत्र डालकर ताम्र पात्र में सूर्य को अर्घ्य देने से आयु, विद्या, यश और बल की प्राप्ति होती है।
छठ व्रत का महत्व
छठ व्रत को सौभाग्य, संतान सुख और आरोग्य प्राप्ति के लिए किया जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार, राजा प्रियव्रत ने कुष्ठ रोग से मुक्ति पाने के लिए छठ व्रत किया था। भगवान भास्कर को जल से अर्घ्य देने से मानसिक शांति और जीवन में उन्नति होती है। इस व्रत को करने से रोग, भय और शोक से मुक्ति मिलती है।
वैदिक काल से चल रही परंपरा
छठ व्रत की परंपरा ऋग्वेद काल से चली आ रही है। विष्णु पुराण के अनुसार, तिथियों के बंटवारे के समय सूर्यदेव को सप्तमी तिथि मिली थी, इसलिए उन्हें इस तिथि का स्वामी माना जाता है। सूर्य देवता प्रत्यक्ष दिखने वाले देवता हैं, जिनकी ऊर्जा का मुख्य स्रोत उनकी पत्नियां उषा और प्रत्यूषा हैं।
सूर्य उपासना की प्रक्रिया
छठ पूजा के दौरान पहले सायंकालीन अर्घ्य दिया जाता है, जिसमें सूर्य की अंतिम किरण अर्थात् प्रत्युषा को नमन किया जाता है। फिर अगले दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर उनकी पत्नी उषा को प्रणाम किया जाता है। ऐसा करने से भक्तों को विशेष फल की प्राप्ति होती है। षष्ठी देवी को भगवान सूर्य की मानस बहन माना जाता है, इसलिए इस व्रत में उनकी भी पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रकृति के षष्टम अंश से षष्ठी माता का जन्म हुआ था। बच्चों के जन्म के छठे दिन षष्ठी माता की पूजा करने की परंपरा है ताकि वे दीर्घायु और स्वस्थ रहें।
श्रद्धा और आस्था का पर्व
छठ महापर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह सामाजिक एकता और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक भी है। इस पर्व में हर वर्ग और समुदाय के लोग एकजुट होकर भगवान सूर्य की उपासना करते हैं। पटना सहित पूरे बिहार में श्रद्धालु भक्ति भाव से छठ पर्व को संपन्न कर अपने घर लौटे।

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