लालू के दही चूड़ा भोज में आम लोगों को नहीं मिलेगी एंट्री, राबड़ी आवास में आयोजन, नेता और कार्यकर्ता जुटेगें
पटना। मकर संक्रांति के अवसर पर बिहार में दही-चूड़ा भोज का आयोजन लंबे समय से एक खास परंपरा रही है। हर साल राजनीतिक दल इस मौके को अपने समर्थकों और जनता के साथ जोड़ने के लिए उत्सव के रूप में मनाते हैं। खासतौर पर आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव का दही-चूड़ा भोज राज्य में चर्चा का केंद्र बनता है। इस बार भी राबड़ी आवास पर लालू प्रसाद यादव के पारंपरिक दही-चूड़ा भोज का आयोजन किया गया, लेकिन इस बार आम जनता को इसमें शामिल होने की अनुमति नहीं दी गई है।
केवल खास नेताओं को बुलाया गया
राबड़ी आवास में आयोजित इस भोज में केवल चुनिंदा नेताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं को आमंत्रित किया गया है। दो दिन पहले से ही राबड़ी आवास में तैयारियां जोरों पर थीं। पहले यह आयोजन पार्टी के सभी नेताओं, कार्यकर्ताओं और आम लोगों के लिए होता था, लेकिन पिछले साल से इसे केवल खास नेताओं तक सीमित कर दिया गया है।
मकर संक्रांति का सियासी महत्व
बिहार की राजनीति में मकर संक्रांति केवल एक पर्व नहीं, बल्कि राजनीतिक समीकरण बनाने और बिगाड़ने का दिन भी माना जाता है। इस मौके पर विभिन्न दलों के नेता भोज का आयोजन कर अपने समर्थकों और गठबंधन सहयोगियों को जोड़ने की कोशिश करते हैं। हालांकि, इस साल लालू प्रसाद के भोज में सियासी समीकरणों को लेकर कोई खास हलचल नहीं दिख रही है।
नीतीश के ऑफर ठुकराने के बाद बदले समीकरण
हाल ही में लालू प्रसाद ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने साथ आने का खुला ऑफर दिया था। यह प्रस्ताव बिहार की राजनीति में एक बड़ा मुद्दा बन गया था। हालांकि, नीतीश कुमार ने इस ऑफर को ठुकरा दिया, जिससे कयास लगाए जाने लगे कि दोनों नेताओं के बीच गठबंधन की संभावनाएं खत्म हो गई हैं। इस घटना के बाद मकर संक्रांति के भोज में भी कोई बड़ा सियासी समीकरण बदलने की चर्चा नहीं हो रही।
भोज का बदलता स्वरूप
राबड़ी आवास पर आयोजित दही-चूड़ा भोज अब केवल एक परंपरा बनकर रह गया है। पहले यह आयोजन पार्टी के सभी नेताओं और आम लोगों को जोड़ने का माध्यम था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसे केवल एक सीमित समारोह में बदल दिया गया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बदलाव से आरजेडी जनता से दूरी बना रही है, जो पार्टी की छवि पर असर डाल सकता है।
बिहार की राजनीति और दही-चूड़ा भोज
दही-चूड़ा भोज केवल एक पारंपरिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह बिहार की राजनीति में बड़े बदलावों का गवाह भी रहा है। इस दिन नेता एक मंच पर मिलते हैं, गठबंधन तय होते हैं और सियासी रणनीतियां बनती हैं। हालांकि, इस बार के भोज में ऐसा कोई संकेत नहीं दिखा। राबड़ी आवास पर आयोजित दही-चूड़ा भोज भले ही एक पारंपरिक आयोजन हो, लेकिन यह बिहार की राजनीति के बदलते समीकरणों का प्रतीक भी है। इस बार भोज में आम जनता की अनुपस्थिति और सीमित नेताओं की मौजूदगी से संकेत मिलता है कि आरजेडी का फोकस अब जनता से अधिक अपनी राजनीतिक ताकत को मजबूत करने पर है। अब देखना होगा कि यह रणनीति पार्टी के लिए कितनी सफल साबित होती है।


