नीतीश सरकार ने उच्च जातियों के विकास के लिए आयोग का किया गठन, महाचंद्र प्रसाद सिंह बने अध्यक्ष

- अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष बनाए गए शैलेंद्र कुमार, 3 वर्षों का होगा कार्यकाल
पटना। बिहार की राजनीति में सामाजिक संतुलन और सभी वर्गों के विकास को लेकर एक नया अध्याय जुड़ गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने राज्य में दो महत्वपूर्ण आयोगों का गठन किया है। इनमें से एक उच्च जातियों के विकास से जुड़ा है और दूसरा अनुसूचित जनजातियों से संबंधित है। सरकार ने दोनों आयोगों की घोषणा करते हुए इनके अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों के नामों का भी चयन कर लिया है।
उच्च जाति आयोग की स्थापना और नेतृत्व
बिहार में पहली बार उच्च जातियों के लिए एक अलग आयोग का गठन किया गया है, जिसका उद्देश्य इस वर्ग से जुड़े सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक मुद्दों की पहचान कर उन्हें सुलझाने के उपाय सुझाना है। इस आयोग के अध्यक्ष बनाए गए हैं भाजपा नेता और पूर्व मंत्री महाचंद्र प्रसाद सिंह। वे लंबे समय से सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में सक्रिय रहे हैं। आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में जदयू के नेता राजीव रंजन प्रसाद को जिम्मेदारी दी गई है। इसके अलावा, आयोग में तीन सदस्यों की नियुक्ति की गई है—दयानंद राय, जय कृष्ण झा और राजकुमार सिंह। यह आयोग आने वाले तीन वर्षों तक कार्य करेगा और इस अवधि में यह अपनी रिपोर्ट और सिफारिशें राज्य सरकार को सौंपेगा। यह पहल राज्य में सामाजिक न्याय के संतुलन को और मजबूत बनाने की दिशा में एक नई सोच को दर्शाती है।
अनुसूचित जनजाति आयोग का भी गठन
उच्च जाति आयोग के साथ ही राज्य सरकार ने अनुसूचित जनजाति आयोग का भी गठन किया है। इस आयोग का गठन भी तीन वर्षों के कार्यकाल के लिए किया गया है। इसमें शैलेंद्र कुमार को अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। वे इस वर्ग की सामाजिक स्थिति और विकास के लिए कार्य करेंगे। इस आयोग के उपाध्यक्ष बने हैं सुरेंद्र उरांव। साथ ही तीन सदस्य प्रेमशिला गुप्ता, तल्लू बासकी और राजू कुमार को भी इसमें शामिल किया गया है। आयोग का मुख्य उद्देश्य अनुसूचित जनजातियों की सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए आवश्यक कदमों की सिफारिश करना और उनके हितों की रक्षा सुनिश्चित करना है।
सरकार की मंशा और सामाजिक समावेश की दिशा में प्रयास
इन दोनों आयोगों के गठन से साफ होता है कि बिहार सरकार राज्य के सभी सामाजिक वर्गों को लेकर संवेदनशील है और प्रत्येक वर्ग को समान अवसर प्रदान करने की दिशा में काम कर रही है। विशेष रूप से उच्च जातियों के लिए आयोग का गठन इस बात का संकेत है कि सरकार अब उस वर्ग के सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन को भी संज्ञान में ले रही है, जो पारंपरिक रूप से सशक्त माना जाता था, लेकिन अब कई क्षेत्रों में पिछड़ता नजर आ रहा है। वहीं अनुसूचित जनजाति आयोग का गठन उस समुदाय के लिए एक संरचनात्मक समर्थन का काम करेगा, जो अब भी समाज के हाशिए पर है। इन आयोगों के जरिए सरकार को विभिन्न वर्गों की जमीनी हकीकत को जानने और उनके लिए नीतिगत फैसले लेने में मदद मिलेगी। बिहार सरकार का यह कदम राज्य में सामाजिक न्याय की अवधारणा को और व्यापक बनाने का संकेत है। उच्च जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए अलग-अलग आयोगों का गठन यह दर्शाता है कि राज्य प्रशासन सभी समुदायों की आवाज को सुनने और उनके विकास के लिए नीतिगत बदलाव करने के लिए गंभीर है। आगामी वर्षों में इन आयोगों की रिपोर्टें और सिफारिशें राज्य की सामाजिक संरचना पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती हैं।
