November 20, 2025

शारदीय नवरात्र में 9 सालों बाद 2 दिन की चतुर्थी का योग, 29 को महासप्तमी, माता की भक्ति में डूबा पटना

पटना। इस वर्ष शारदीय नवरात्र खास संयोग लेकर आया है। पूरे नौ साल बाद चतुर्थी तिथि दो दिन तक पड़ रही है। इसका अर्थ है कि भक्तों को माता दुर्गा के चौथे स्वरूप कुष्मांडा देवी की उपासना लगातार दो दिनों तक करने का अवसर मिलेगा। यह विरला योग माना जा रहा है और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ भी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता कुष्मांडा की पूजा से रोग-शोक दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि तथा उन्नति का मार्ग खुलता है।
कुष्मांडा देवी की उपासना का महत्व
शुक्रवार को चतुर्थी तिथि के साथ विशाखा नक्षत्र, रवियोग और सर्वार्थ सिद्धि योग का विशेष संयोग बन रहा है। माना जाता है कि इस दिन माता कुष्मांडा की साधना करने से लौकिक और परलौकिक दोनों तरह की उन्नति होती है। कुष्मांडा देवी को ब्रह्मांड की सृष्टिकर्ता भी कहा जाता है। पुराणों में वर्णित है कि इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति देवी के दिव्य हास से हुई, इसलिए वह आदिशक्ति का प्रतीक मानी जाती हैं। पटना शहर इन दिनों माता की भक्ति में डूबा हुआ है। जगह-जगह आकर्षक पंडाल बनाए गए हैं, जिनमें देवी की अनुपम प्रतिमाएं स्थापित हैं। मंदिरों में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु पहुंचकर आराधना कर रहे हैं। सुबह से लेकर देर रात तक देवी के जयकारों से वातावरण गूंज रहा है। भक्त भजन-कीर्तन, दुर्गा सप्तशती का पाठ और विशेष पूजन अनुष्ठानों में भाग लेकर देवी से कृपा की कामना कर रहे हैं।
महासप्तमी की तैयारियां
29 सितंबर, सोमवार को आश्विन शुक्ल सप्तमी यानी महासप्तमी का पर्व मनाया जाएगा। यह दिन विशेष महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन सभी पूजा पंडालों और घरों में स्थापित देवी दुर्गा का पट वेदोक्त मंत्रोच्चारण के साथ खोला जाएगा। भक्तगण देवी के दिव्य और मनोहारी स्वरूप का दर्शन कर पुण्यलाभ प्राप्त करेंगे। महासप्तमी के दिन माता के सप्तम रूप, कालरात्रि की पूजा भी की जाएगी। कालरात्रि को संहार की देवी माना जाता है, जिनकी उपासना से शत्रु और भय का नाश होता है। माना जाता है कि इस दिन देवी की पूजा करने से जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं।
महानिशा पूजा का महत्व
महासप्तमी की रात महानिशा पूजा का आयोजन होता है। यह पूजा मध्यरात्रि को की जाती है। इसमें देवी को तंत्र विधि से पूजित किया जाता है। भक्त अपनी श्रद्धा और संकल्प के अनुसार देवी को लाल पुष्प, नैवेद्य और विशेष अनुष्ठानों के साथ प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। इस दिन रात भर पंडालों में धार्मिक कार्यक्रम और भक्ति संगीत का आयोजन होता है।
महाष्टमी और महानवमी
30 सितंबर मंगलवार को महाष्टमी और 1 अक्टूबर बुधवार को महानवमी का पर्व मनाया जाएगा। महाष्टमी को संधि पूजा का विशेष महत्व है। संधि काल में किए गए इस पूजन में देवी को श्रृंगार सामग्री, वस्त्र, आभूषण, इत्र और पुष्प अर्पित किए जाते हैं। इसके साथ ही संकल्पित पाठ का समापन, हवन और पुष्पांजलि दी जाती है। महानवमी पर कन्या पूजन की परंपरा निभाई जाती है। इसमें नौ कन्याओं को देवी का स्वरूप मानकर आमंत्रित किया जाता है और उन्हें विशेष व्यंजन, फल और प्रसाद अर्पित किए जाते हैं। कन्याओं को वस्त्र और उपहार भी प्रदान किए जाते हैं।
महाआरती और भव्य श्रृंगार
इस पावन अवसर पर देवी दुर्गा का भव्य श्रृंगार किया जाता है। मंदिरों और पंडालों में देवी को फूलों, आभूषणों और आकर्षक परिधानों से सजाया जाता है। विविध मिष्ठान्न, ऋतुफल और मेवे का भोग अर्पित कर महाआरती संपन्न होती है। महाआरती के दौरान भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है और वातावरण “जय माता दी” के नारों से गूंज उठता है।
धार्मिक और सामाजिक समरसता
नवरात्र न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि सामाजिक समरसता और आपसी भाईचारे की मिसाल भी प्रस्तुत करता है। इससे समाज में सहयोग और सांस्कृतिक एकजुटता का माहौल बनता है। पटना जैसे शहर में इन दिनों मंदिरों और पंडालों में सभी वर्ग और समुदायों के लोग पंडालों की सजावट और आयोजन में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। इस वर्ष शारदीय नवरात्र का पर्व पटना सहित पूरे बिहार में विशेष उत्साह और आस्था के साथ मनाया जा रहा है। नौ साल बाद आया दो दिवसीय चतुर्थी का योग और आने वाली महासप्तमी, महाष्टमी और महानवमी की विशेष पूजा इसे और खास बना रही है।
पटना में नवरात्रि का उल्लास
पटना इन दिनों माता की भक्ति में डूबा हुआ है। नवरात्रि के अवसर पर शहर के मंदिरों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है। लोग माता के दर्शन और आराधना के लिए सुबह-शाम पहुंच रहे हैं। भजन, कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से वातावरण भक्तिमय बना हुआ है। महिलाएं व्रत रखकर पूजा-पाठ कर रही हैं और युवा गरबा-डांडिया में शामिल हो रहे हैं। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था को प्रकट करता है बल्कि समाज में एकता और सांस्कृतिक रंग भी बिखेरता है। भक्तजन देवी की उपासना में डूबे हैं और पूरे प्रदेश का वातावरण भक्ति और उल्लास से सराबोर है। नवरात्र केवल देवी की आराधना तक सीमित नहीं, बल्कि यह समाज को एकजुट करने और सकारात्मक ऊर्जा फैलाने का भी प्रतीक है।

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