सीएम नीतीश ने गृह मंत्री से की मुलाकात, आगामी चुनाव पर चर्चा, कई नेता रहे मौजूद
पटना। बिहार की राजनीति में इस समय सबसे बड़ी चर्चा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मुलाकात को लेकर है। गुरुवार को पटना में दोनों नेताओं की भेंट हुई, जिसे हालांकि औपचारिक शिष्टाचार मुलाकात बताया जा रहा है, लेकिन विधानसभा चुनाव के करीब आते ही इस मुलाकात का राजनीतिक महत्व बढ़ गया है। अमित शाह बुधवार देर रात पटना पहुंचे थे और गुरुवार को वे बिहार के कई कार्यक्रमों में हिस्सा लेने वाले हैं। इसी दौरान उनकी नीतीश कुमार से यह बैठक हुई।
मौजूद रहे कई बड़े नेता
इस मुलाकात को और अहम इसलिए माना जा रहा है क्योंकि इसमें एनडीए गठबंधन के कई वरिष्ठ नेता भी मौजूद थे। बिहार के उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल, जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा और मंत्री विजय चौधरी भी इस बैठक में शामिल रहे। नेताओं की मौजूदगी से साफ है कि चर्चा महज शिष्टाचार तक सीमित नहीं रही होगी, बल्कि इसमें चुनावी रणनीति और गठबंधन की सीट बंटवारे की जटिलताओं पर भी बातचीत हुई होगी।
सीट बंटवारे को लेकर सस्पेंस
बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन के भीतर सीट शेयरिंग का सवाल फिलहाल सबसे अहम है। जेडीयू और भाजपा के बीच भले ही तालमेल की बात कही जा रही है, लेकिन चिराग पासवान, जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा जैसे सहयोगी नेताओं की मांगों ने समीकरण को उलझा दिया है। इन दलों की सीटों को लेकर अब तक सहमति नहीं बन पाई है। जेडीयू की रणनीति यह बताई जा रही है कि वह सीधे तौर पर भाजपा से बातचीत करना चाहती है और चाहती है कि छोटे सहयोगी दलों के साथ सीटों का बंटवारा भाजपा ही तय करे।
भाजपा की तैयारियों का दौर
अमित शाह का यह दौरा सिर्फ शिष्टाचार मुलाकात तक सीमित नहीं है। वे आज डेहरी और बेगूसराय में 20 जिलों के भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ बैठक करेंगे। इन बैठकों में चुनावी मुद्दों को धार देने और रणनीति तय करने पर जोर रहेगा। भाजपा चाहती है कि कार्यकर्ताओं को साफ संदेश मिले और चुनावी दिशा तय हो। पांच दिन पहले ही भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा पटना आए थे और कोर कमिटी की बैठक में शामिल हुए थे। हालांकि, तब उनकी नीतीश कुमार से मुलाकात नहीं हुई थी, जिससे गठबंधन में खटास की अटकलें और तेज हो गई थीं।
पिछली बार का अनुभव
2020 के विधानसभा चुनाव के समय भाजपा और जदयू ने बराबरी की साझेदारी बनाई थी। भाजपा ने 121 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें से 110 खुद रखी और 11 सीटें मुकेश सहनी को दी थीं। जदयू ने 115 सीटें अपने खाते में रखीं और अपने हिस्से से ही मांझी की पार्टी को 7 सीटें दी थीं। उस चुनाव में चिराग पासवान की लोजपा ने 135 सीटों पर अकेले चुनाव लड़कर जदयू को काफी नुकसान पहुंचाया था। यही कारण है कि इस बार जदयू सीट बंटवारे में सतर्क दिखाई दे रही है।
गठबंधन में किचकिच
गठबंधन की सबसे बड़ी चुनौती यही है कि भाजपा और जदयू के बीच तालमेल कितना मजबूत रह पाता है। नीतीश कुमार की राजनीतिक शैली हमेशा से लचीली रही है, लेकिन इस बार वे चाहेंगे कि भाजपा ही छोटे सहयोगियों से बात करे और जदयू सीधे भाजपा के साथ सीटें तय करे। इस रुख ने सहयोगी दलों की चिंता बढ़ा दी है। मांझी, पासवान और कुशवाहा की ओर से सीटों की बड़ी मांग सामने आई है, जिस पर सहमति बनना आसान नहीं होगा। नीतीश कुमार और अमित शाह की मुलाकात से यह संकेत साफ है कि एनडीए गठबंधन विधानसभा चुनाव को लेकर अब पूरी तरह सक्रिय हो गया है। सीट बंटवारे का मसला सबसे बड़ी चुनौती है, क्योंकि यदि इसमें सहमति नहीं बनी तो इसका असर चुनावी परिणामों पर पड़ेगा। भाजपा जहां कार्यकर्ताओं को संगठित करने और चुनावी रणनीति तय करने में जुटी है, वहीं जदयू अपनी स्थिति मजबूत बनाए रखने की कोशिश कर रही है। आने वाले दिनों में सीट बंटवारे को लेकर होने वाले फैसले ही तय करेंगे कि बिहार में एनडीए किस मजबूती के साथ चुनाव मैदान में उतरता है।


