बेऊर जेल में भी गूंजेगा छठ का अनुष्ठान, 34 बंदी करेंगे महापर्व, सामग्री उपलब्ध कराएगा जेल प्रशासन
पटना। लोक आस्था और सूर्य उपासना का महापर्व छठ पूजा सिर्फ घरों, मोहल्लों या घाटों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि अब यह भक्ति और श्रद्धा की भावना जेल की दीवारों के भीतर भी गूंजने लगी है। बिहार की राजधानी पटना स्थित बेऊर आदर्श कारा में इस वर्ष छठ महापर्व को लेकर विशेष तैयारियां की गई हैं। जेल प्रशासन ने इस पावन अवसर पर बंदियों को भी छठ पर्व मनाने की अनुमति दी है, जिससे कैदियों के बीच उत्साह और श्रद्धा दोनों का वातावरण बन गया है।
बंदियों में धार्मिक उत्साह और श्रद्धा
बेऊर जेल में इस बार कुल 34 बंदी जिनमें 14 महिला और 20 पुरुष शामिल हैं — छठ महापर्व का व्रत करेंगे। इन सभी ने अपनी इच्छा से भगवान सूर्य और छठी मइया की उपासना करने की अनुमति मांगी थी। जेल प्रशासन ने उनकी इस धार्मिक भावना का सम्मान करते हुए न केवल अनुमति दी, बल्कि पर्व के सुचारु आयोजन के लिए सभी आवश्यक सामग्री भी उपलब्ध कराने की घोषणा की है। यह कदम यह दर्शाता है कि जेल में भी मानवीय संवेदनाओं और धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान किया जाता है।
नहाय-खाय से होगी पर्व की शुरुआत
छठ पर्व की शुरुआत 25 अक्टूबर, शनिवार से नहाय-खाय के साथ होगी। जेल अधीक्षक नीरज कुमार झा ने बताया कि इस दिन सभी व्रती बंदियों को प्रसाद के रूप में कद्दू-भात (कद्दू की सब्जी और चावल) दिया जाएगा। यह छठ का पहला चरण होता है, जिसमें व्रती शरीर और मन की शुद्धि के लिए सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। प्रशासन ने सभी कैदियों के लिए स्वच्छ भोजन और शुद्ध जल की विशेष व्यवस्था की है ताकि व्रती पारंपरिक तरीके से इस पर्व की शुरुआत कर सकें।
कारा परिसर में बनेगा पूजा स्थल
बेऊर जेल प्रशासन ने कारा परिसर में स्थित तालाब को छठ घाट के रूप में सजाने की तैयारी की है। तालाब के किनारे अर्घ्य देने की विशेष व्यवस्था की गई है ताकि व्रती जल में खड़े होकर सूर्य देव की उपासना कर सकें। महिला और पुरुष बंदियों के लिए अलग-अलग पूजा स्थलों का निर्माण किया गया है। यह सुनिश्चित किया गया है कि पूजा के दौरान सुरक्षा और शांति का माहौल बना रहे।
महिला बंदियों और बच्चों के लिए विशेष व्यवस्था
महिला बंदियों के लिए जेल प्रशासन ने नई साड़ियों की व्यवस्था की है ताकि वे पारंपरिक वेशभूषा में पूजा-अर्चना कर सकें। इसके साथ ही उनके छोटे बच्चों के लिए भी नए कपड़ों की व्यवस्था की गई है। यह प्रयास बंदी महिलाओं के बीच एक आत्मीय वातावरण बनाने की दिशा में एक संवेदनशील पहल है। छठ पर्व केवल उपासना का नहीं, बल्कि परिवार और मातृत्व की भावना से भी जुड़ा होता है। ऐसे में प्रशासन की यह पहल न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी सराहनीय है।
प्रशासन की तत्परता और सहयोग
जेल अधीक्षक नीरज कुमार झा ने बताया कि व्रत करने वाले बंदियों की सूची पहले ही तैयार कर ली गई थी और उनकी मांग पर राज्य सरकार की ओर से औपचारिक स्वीकृति भी दी गई है। प्रशासन ने यह सुनिश्चित किया है कि किसी व्रती को किसी प्रकार की कठिनाई न हो। खरना के दिन भी व्रती बंदियों के लिए विशेष प्रसाद — गुड़, चावल, और दूध से बनी खीर — उपलब्ध कराई जाएगी। इससे बंदी उसी भक्ति भाव के साथ छठ व्रत पूरा कर सकेंगे, जैसा कि जेल के बाहर लोग करते हैं।
धार्मिक सहिष्णुता और मानवता का प्रतीक
बेऊर जेल में छठ पर्व का आयोजन यह दर्शाता है कि भक्ति और आस्था किसी दीवार या बंधन की मोहताज नहीं होती। यह पर्व आत्मशुद्धि, संयम और सूर्य देव के प्रति समर्पण का प्रतीक है। जेल प्रशासन का यह निर्णय न केवल धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान है, बल्कि यह भी दिखाता है कि सुधार गृह केवल दंड देने की जगह नहीं, बल्कि आत्म-चिंतन और सुधार का भी केंद्र है। ऐसे पर्वों के माध्यम से बंदियों को मानसिक शांति और आत्मबल प्राप्त होता है।
बंदियों के लिए सामाजिक संदेश
छठ पूजा का आयोजन जेल के भीतर इस बात का भी संकेत देता है कि आस्था का मार्ग हमेशा आत्मशुद्धि और संयम की ओर ले जाता है। जेल में यह पर्व उन बंदियों के लिए आत्मनिरीक्षण का अवसर भी है जो अपनी गलतियों से सीखकर जीवन में एक नया अध्याय शुरू करना चाहते हैं। सूर्य उपासना के इस पर्व के माध्यम से वे अपने भीतर सकारात्मक ऊर्जा और आत्मबल का अनुभव कर रहे हैं। बेऊर जेल में छठ पूजा का आयोजन इस बात का उदाहरण है कि भक्ति, आस्था और मानवीय मूल्यों की भावना किसी परिस्थिति में भी जीवित रहती है। प्रशासन की इस पहल ने न केवल बंदियों को अपने धर्म और संस्कृति से जोड़ने का अवसर दिया है, बल्कि यह भी साबित किया है कि सुधार और संस्कार साथ-साथ चल सकते हैं। यह आयोजन जेल के वातावरण में आध्यात्मिकता और शांति का संदेश फैलाने का माध्यम बनेगा, जिससे कारा जीवन भी एक नई उम्मीद और श्रद्धा से भर उठेगा।


