November 23, 2025

दानापुर से भाजपा किसे उतारेगी मैदान में?रामकृपाल की उम्मीदवारी पर संशय,आशा सिन्हा का विकल्प,अजीत कुमार यादव की मजबूत दावेदारी

पटना।(अमृतवर्षा ब्यूरो) राजधानी के दानापुर विधानसभा सीट, जो पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र का अहम हिस्सा है, 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर राजनीतिक हलचल के केंद्र में आ गई है। शहरी और ग्रामीण मतदाताओं के मिश्रण, जातीय समीकरण और पिछले चुनावों की यादों के बीच इस बार मुकाबला और दिलचस्प बनने जा रहा है। दानापुर हमेशा से राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र रहा है — जहां हर चुनाव जातीय समीकरण और स्थानीय मुद्दों के अनोखे मेल से प्रभावित होता रहा है। दानापुर विधानसभा क्षेत्र से राजद के रीत लाल यादव सिटिंग विधायक हैं.जिसे टक्कर देने के लिए भाजपा की ओर से पूर्व विधायक आशा सिन्हा, पूर्व सांसद रामकृपाल यादव समेत कई उम्मीदवारों के नाम चर्चा में चल रहे हैं.भाजपा इस क्षेत्र से एक स्थानीय युवा चेहरे पर दाग लगा सकती है.बताया जाता है कि अजीत कुमार यादव जो यहां से भाजपा के टिकट के दावेदार हैं.उनके पक्ष में समीकरण मजबूत बताया जा रहा है.

2020 का समीकरण और राजनीतिक पृष्ठभूमि

पिछले विधानसभा चुनाव (2020) में दानापुर सीट पर राष्ट्रीय जनता दल के रीतलाल यादव ने जीत दर्ज की थी। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की उम्मीदवार और पूर्व विधायक आशा देवी सिन्हा को लगभग 15,900 वोटों के अंतर से पराजित किया था। यह जीत उस समय राजद के लिए बड़ा मनोबल साबित हुई थी, क्योंकि पटना जिले में परंपरागत रूप से भाजपा का आधार मजबूत माना जाता रहा है। दानापुर की राजनीतिक यात्रा में कई ऐतिहासिक अध्याय जुड़े हैं। 1995 और 2000 में लालू प्रसाद यादव इस सीट से विधायक रह चुके हैं। वहीं 2005 के बाद सत्यनारायण सिंह की हत्या के बाद उनकी पत्नी आशा देवी सिन्हा ने लगातार तीन बार (2005, 2010 और 2015) जीत दर्ज की थी। इस पृष्ठभूमि ने दानापुर को हमेशा से राजनीति के केंद्र में बनाए रखा है, जहां हर चुनाव में स्थानीय समीकरण और नेताओं की रणनीति खास मायने रखती है।

जातीय समीकरण: चुनावी दिशा तय करने वाला कारक

दानापुर का सामाजिक ढांचा जटिल और बहु-आयामी है। यहां यादव मतदाता अब भी निर्णायक भूमिका में हैं। इसके साथ ही वैश्य, अगड़ी जातियाँ (जैसे भूमिहार, राजपूत, कुर्मी), पासवान, रविदास, मुस्लिम और अन्य पिछड़े वर्गों की मजबूत उपस्थिति भी है। यह सामाजिक विविधता हर राजनीतिक दल के लिए रणनीति तय करने में चुनौतीपूर्ण बनती है। यादव समुदाय पर राजद का प्रभाव ऐतिहासिक रूप से मजबूत रहा है। लेकिन इस बार भाजपा के लिए एक नया अवसर बनता दिख रहा है — क्योंकि पार्टी यादव समुदाय से ही एक नया चेहरा मैदान में उतारने पर विचार कर रही है।

भाजपा की रणनीति और अजीत कुमार यादव का उभार

स्थानीय राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि भाजपा के संभावित उम्मीदवारों की सूची में अजीत कुमार यादव का नाम तेजी से उभर रहा है। दानापुर में पार्टी की अंदरूनी चर्चाओं में आशा देवी सिन्हा, बेला यादव, संजय यादव, रामकृपाल यादव और सनोज यादव के नाम भी सामने आए हैं, लेकिन अजीत कुमार यादव पर खास ध्यान इसलिए है क्योंकि वे यादव समुदाय से आते हैं और इस वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं, जो लंबे समय से राजद का गढ़ माना जाता रहा है।अजीत यादव की संभावित दावेदारी भाजपा की जातीय रणनीति को नया आयाम दे सकती है। पार्टी यदि यादव वोटों में आंशिक सेंध लगाने में सफल रही, तो वह वैश्य और अगड़ी जातियों के समर्थन के साथ एक व्यापक गठजोड़ खड़ा कर सकती है। यही वजह है कि अजीत यादव का नाम स्थानीय स्तर पर चर्चा का विषय बना हुआ है। जहां तक रामकृपाल यादव की उम्मीदवारी का सवाल है. उनके साथ स्थानीय ना होना एक बड़ा मसला बन गया है. वहीं दूसरी तरफ पूर्व विधायक आशा सिन्हा की पिछली बार हुई हार तथा उसके बाद क्षेत्र में उनकी कम उपलब्धता मुश्किल खड़ी कर रही है.

चुनौती और अवसर दोनों साथ

अजीत यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती राजद के मजबूत आधार को तोड़ने की होगी। 2020 में रीतलाल यादव की जीत के बाद राजद का आत्मविश्वास इस सीट पर काफी बढ़ा है। ऐसे में भाजपा के लिए यादव मतदाताओं के बीच विश्वास पैदा करना आसान नहीं होगा। फिर भी, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर अजीत यादव स्थानीय मुद्दों — जैसे जलभराव, सड़कों की दुर्दशा, और अव्यवस्थित शहरीकरण — को प्राथमिकता में रखकर जनता से सीधे जुड़ाव बनाने में सफल होते हैं, तो वे जातीय सीमाओं को पार कर सकते हैं। दानापुर की राजनीति में जातीयता के साथ स्थानीय समस्याएं हमेशा निर्णायक भूमिका निभाती रही हैं। दानापुर, खगौल और दियारा क्षेत्र के लोगों के लिए बुनियादी सुविधाएं आज भी प्रमुख मुद्दा हैं। अजीत कुमार यादव अगर खुद को “स्थानीय समाधान वाला चेहरा” साबित कर पाते हैं, तो वे सिर्फ यादव वोटों तक सीमित नहीं रहेंगे।

दानापुर का चुनावी मैदान: कांटे की टक्कर तय

दानापुर विधानसभा सीट पर हर बार मुकाबला बेहद तगड़ा रहता है। 2025 के चुनाव में भी स्थिति अलग नहीं दिख रही। राजद अपने मौजूदा जनाधार पर भरोसा कर रही है, जबकि भाजपा नए समीकरणों और उम्मीदवारों के सहारे मैदान में उतरने की तैयारी में है। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, अगर अजीत कुमार यादव को भाजपा टिकट देती है, तो चुनावी मुकाबला और रोचक हो जाएगा — क्योंकि यह न सिर्फ दो पार्टियों का टकराव होगा, बल्कि “यादव बनाम यादव” का समीकरण भी केंद्र में रहेगा।

नई कहानी लिखेगा दानापुर?

दानापुर की राजनीति में इतिहास, जातीय गठजोड़ और स्थानीय मुद्दों का संगम हर बार कुछ नया परिणाम देता है। इस बार भी तस्वीर कुछ ऐसी ही है — जहां भाजपा एक नए तथा युवा यादव चेहरा लाकर राजद के परंपरागत किले में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है, वहीं राजद अपनी पुरानी लय बनाए रखने की रणनीति पर काम कर रही है। अब देखना यह होगा कि क्या अजीत कुमार यादव अपनी नई राजनीतिक पहचान और जातीय संतुलन के सहारे दानापुर में वह लहर पैदा कर पाते हैं जो 2020 की राजद की जीत को चुनौती दे सके। एक बात तय है — दानापुर की जंग इस बार भी दिलचस्प और निर्णायक होगी।

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