पूर्व मंत्री आरके सिंह पर भाजपा ने की बड़ी कार्रवाई, पार्टी से निकला, 6 सालों के लिए किया निलंबित
पटना। लोकसभा चुनाव और बिहार की राजनीति तेजी से नए समीकरणों में ढल रही है। इसी बीच भारतीय जनता पार्टी ने एक बड़ा और अप्रत्याशित कदम उठाते हुए अपने वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आर.के. सिंह को 6 वर्षों के लिए पार्टी से निलंबित कर दिया है। पार्टी का आरोप है कि सिंह लगातार पार्टी-विरोधी गतिविधियों में शामिल थे और संगठन की अनुशासनात्मक मर्यादाओं का उल्लंघन कर रहे थे। यह कदम राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है, क्योंकि आर.के. सिंह भाजपा और संघ संगठन के भीतर एक मजबूत और प्रभावशाली नेता के रूप में पहचाने जाते रहे हैं।
पार्टी नेतृत्व से बढ़ते मतभेद
पिछले कई महीनों से आर.के. सिंह पार्टी लाइन से हटकर बयान देते रहे थे। कई मौकों पर उन्होंने भाजपा की नीतियों, चुनावी रणनीतियों और कुछ फैसलों की सार्वजनिक आलोचना भी की। पार्टी नेतृत्व ने उन्हें कई बार चेतावनी देने की कोशिश की, लेकिन कथित तौर पर उन्होंने अपने रुख में कोई बदलाव नहीं किया। स्थिति तब और गंभीर हुई जब सिंह ने हाल ही में ऊर्जा क्षेत्र से संबंधित एक बड़े मुद्दे पर अपने ही गठबंधन सरकार पर सवाल खड़े कर दिए। भाजपा के प्रदेश कार्यालय से जारी पत्र में कहा गया है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री की गतिविधियाँ “पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाने वाली” और “अनुशासनहीनता की श्रेणी” में आती हैं। इसी आधार पर उनकी प्राथमिक सदस्यता को तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दिया गया और उन्हें आगामी 6 वर्षों तक किसी भी पद या जिम्मेदारी के लिए अयोग्य घोषित किया गया।
आरके सिंह का राजनीतिक सफर
सिंह पेशे से पूर्व आईएएस अधिकारी रहे हैं और प्रशासनिक सेवा में उनकी छवि एक सख्त और ईमानदार अधिकारी की रही है। राजनीति में आने के बाद भी उन्होंने अपनी कार्यशैली से पहचान बनाए रखी। उन्हें केंद्र में ऊर्जा राज्य मंत्री और बाद में विद्युत मंत्री जैसे अहम पदों पर जिम्मेदारियाँ दी गईं। उनके कार्यकाल में बिजली उत्पादन, वितरण प्रणाली सुधार और ग्रामीण विद्युतीकरण जैसी परियोजनाओं में तेजी देखने को मिली। हालांकि, पिछले कुछ समय से उनके और पार्टी नेतृत्व के बीच मतभेद गहराते रहे। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि टिकट वितरण, स्थानीय स्तर पर संगठन की रणनीति और बिहार के राजनीतिक समीकरणों को लेकर वे पार्टी से असहमत चल रहे थे। कई बार उन्होंने सार्वजनिक तौर पर ऐसे बयान दिए जो पार्टी के आधिकारिक रुख से मेल नहीं खाते थे।
अडाणी बिजली समझौते पर उठाए गए सवाल
उनके हालिया विवादित बयानों ने पार्टी को खुलकर कार्रवाई करने के लिए प्रेरित किया। आर.के. सिंह ने दावा किया था कि बिहार सरकार ने अडाणी समूह के साथ जो बिजली खरीद समझौता किया है, वह राज्य की जनता के साथ “सीधा धोखा” है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस समझौते के तहत बिहार 6.75 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीदेगा, जबकि मौजूदा बाजार दर इससे काफी कम है। उन्होंने यह भी कहा कि जमीन आवंटन प्रक्रिया और एग्रीमेंट की शर्तों में गंभीर अनियमितताएँ की गई हैं। सिंह के अनुसार इससे बिहार के आम उपभोक्ताओं पर भारी आर्थिक बोझ पड़ेगा। उनके इन बयानों ने न सिर्फ राज्य सरकार बल्कि पूरे एनडीए पर सवाल खड़े कर दिए। पार्टी ने इसे “गंभीर अनुशासनहीनता” मानते हुए कार्रवाई की।
भाजपा की अनुशासन नीति
बीजेपी लंबे समय से यह संदेश देती रही है कि पार्टी में अनुशासन सर्वोपरि है। हाल के वर्षों में कई बड़े नेताओं को भी पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण कार्रवाई का सामना करना पड़ा है। वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि “पार्टी से बड़ा कोई नहीं हो सकता और अनुशासनहीनता किसी भी स्तर पर स्वीकार नहीं की जाएगी।” इसी नीति के अंतर्गत आर.के. सिंह का निलंबन भी देखा जा रहा है।
राजनीतिक प्रभाव और आगे की राह
आर.के. सिंह की पकड़ उनके क्षेत्र में मजबूत मानी जाती है और एक प्रभावशाली प्रशासनिक पृष्ठभूमि होने के कारण उनका राजनीतिक प्रभाव भी कम नहीं है। निलंबन के बाद कई सवाल उठ रहे हैं—क्या वे किसी नए राजनीतिक दल में शामिल होंगे, या स्वतंत्र रूप से अपनी राजनीतिक राह तय करेंगे? वर्तमान समय में उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया या आधिकारिक बयान नहीं दिया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि बिहार में आगामी चुनावी परिस्थितियों को देखते हुए भाजपा किसी भी तरह की बगावत या असहमति को रोकने के मूड में है। पार्टी चाहती है कि नेता एकजुट होकर रणनीति पर काम करें, और ऐसे में किसी भी प्रकार की सार्वजनिक आलोचना या मतभेद को कड़े कदम उठाकर नियंत्रित किया जा रहा है। सिंह का निलंबन भाजपा के भीतर बढ़ते तनाव और अनुशासन पर पार्टी की सख्त नीति का स्पष्ट संकेत है। यह कदम आने वाले समय में बिहार की राजनीति और स्वयं सिंह के भविष्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है। फिलहाल राजनीतिक हलकों में यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि इस बड़े कदम के बाद राज्य की राजनीति किस दिशा में जाएगी और पूर्व मंत्री अपनी अगली रणनीति क्या तय करेंगे।


