भाजपा ने कल बिहार बंद का किया ऐलान, पीएम की मां को गाली देने का विरोध, भारी हंगामा के आसार
पटना। बिहार की राजनीति इस समय एक बार फिर उफान पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां को लेकर असंसदीय टिप्पणी किए जाने के विरोध में भारतीय जनता पार्टी ने बुधवार, 3 सितम्बर को बिहार बंद का ऐलान किया है। भाजपा का कहना है कि कांग्रेस और राजद की वोटर अधिकार यात्रा के दौरान मंच से प्रधानमंत्री की दिवंगत मां पर बेहद भद्दी और अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल किया गया, जो न केवल प्रधानमंत्री के परिवार का, बल्कि पूरे देश की माताओं-बहनों का अपमान है। यह विवाद तब और गहराया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद इस विषय पर चुप्पी तोड़ते हुए अपनी पीड़ा साझा की। उन्होंने कहा कि जो कुछ बिहार में हुआ, उसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। मंच से उनकी मां, जिनका राजनीति से कोई संबंध नहीं था और जो अब इस दुनिया में भी नहीं हैं, को गालियां दी गईं। पीएम ने भावुक होकर कहा कि यह केवल उनकी मां का अपमान नहीं है, बल्कि भारत की हर मां-बहन-बेटी का अपमान है। मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि उनकी मां ने एक गरीब परिवार से संघर्ष करते हुए उन्हें अच्छे संस्कार और शिक्षा दी। उन्होंने यह भी कहा कि भारत में मां को देवी से भी ऊपर स्थान दिया जाता है। बिहार जैसे सांस्कृतिक प्रदेश में तो प्रचलित कहावत है – “माई के स्थान देवता-पीतर से भी ऊपर होला।” ऐसे में किसी मां के लिए अपशब्द कहना न केवल व्यक्तिगत आघात है, बल्कि समाज की मूल भावनाओं पर भी चोट करता है।भाजपा ने इस घटना को मुद्दा बनाते हुए ऐलान किया है कि पूरे बिहार में बंद रखा जाएगा और इसका व्यापक असर देखने को मिल सकता है। पार्टी नेताओं का कहना है कि यह बंद केवल राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि सामाजिक आक्रोश की अभिव्यक्ति है। वहीं, विपक्षी दलों पर भाजपा का आरोप है कि वे जनता का ध्यान असली मुद्दों से भटकाने के लिए ऐसी अमर्यादित राजनीति कर रहे हैं। इस घटना ने बिहार की सियासत में नए सिरे से हलचल पैदा कर दी है। एक तरफ भाजपा इसे जनता की अस्मिता और सम्मान का सवाल बता रही है, वहीं दूसरी ओर विपक्ष इस पर अलग-अलग तर्क दे रहा है। लेकिन इतना तय है कि आने वाले दिनों में इस विवाद का असर बिहार की राजनीतिक सरगर्मियों और चुनावी माहौल पर गहराई से पड़ेगा। इस पूरे घटनाक्रम ने यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि राजनीति की भाषा और मर्यादा आखिर कहां तक गिर चुकी है। लोकतांत्रिक समाज में असहमति जाहिर करने का पूरा अधिकार है, लेकिन निजी और पारिवारिक स्तर पर गाली-गलौज करना निश्चित ही समाज और राजनीति दोनों के लिए नुकसानदेह है। यही कारण है कि बिहार बंद के ऐलान के साथ ही राज्य में भारी हंगामे और टकराव की आशंका भी जताई जा रही है। इस प्रकार, बिहार बंद केवल एक राजनीतिक विरोध नहीं, बल्कि उस सामाजिक संस्कृति और पारिवारिक मूल्यों की रक्षा का प्रतीक बन गया है, जिसमें मां को सर्वोच्च स्थान दिया जाता है।


