BIHAR : सृजन घोटाला में जांच के नाम पर खानापूर्ति, 3 साल में केवल कौवै हाथ लगे, बाज एक भी नही

भागलपुर (गौतम सुमन गर्जना)। बिहार की सृजन महाघोटाले को सामने आए तीन साल हो गये हैं, लेकिन सीबीआई जांच अब तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई है। यहां तक की घोटाले के मुख्य आरोपी अमित कुमार और प्रिया कुमार की गिरफ्तारी तो दूर सीबीआई उनका पता तक नहीं लगा सकी है। इतना ही नहीं गिरफ्तार किये गये आरोपी भी एक-एक कर जमानत पर रिहा होते जा रहे हैं। परिणाम स्वरूप सीबीआई जांच पर अब सवाल उठने लगे हैं। दो हजार करोड़ रुपये से अधिक की सरकारी राशि के अवैध हस्तांतरण से जुड़े इस मामले में आज के ही दिन तीन साल पहले तत्कालीन डीएम आदेश तितरमारे ने पहली एफआईआर दर्ज कराई थी। अधिकारियों, सरकारी कर्मचारियों और बैंककर्मियों की मिलीभगत से किये गए इस घोटालें में तीन साल बाद भी सीबीआई के हाथ कोई विशेष कामयाबी नहीं लगी है। उन्होंने केवल इस मामले में कौवा को फंसा कर बाज को बचाने की सफल कोशिश की है। यही कारण है कि इस मामले में अब तक केवल कौवै हाथ लगे हैं, बाज एक भी नहीं। गौरतलब हो कि विभिन्न विभागों के सरकारी राशि को राष्ट्रीयकृत बैंक से सृजन महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड में अवैध हस्तांतरण से जुड़े इस घोटाला के मुख्य आरोपी अमित कुमार और प्रिया कुमार अभी भी फरार चल रहे हैं।
इन जिलों में कुल 23 मामले हैं दर्ज
सृजन घोटाला, बिहार के सबसे बड़े घोटाले के रूप में जाना जाता है। इसकी जांच सीबीआई कर रही है लेकिन सृजन की संस्थापिका मनोरमा देवी की मौत के बाद संस्था के कर्ता-धर्ता बने अमित कुमार और प्रिया कुमार को गिरफ्तार करने में जांच एजेंसी अब तक सफल नहीं हो पाई है। सृजन घोटाला मामले में भागलपुर समेत बांका और सहरसा में कुल 23 मामले दर्ज किये गये। 07 अगस्त 2017 को मामले में पहला केस भागलपुर के तिलकामांझी थाने में दर्ज हुआ था, उसके बाद एक-एक कर विभिन्न विभागों समेत प्रखंड लेवल पर सरकारी राशि के बैंक से अवैध रूप से सृजन के खाते में भेजे जाने का मामला प्रकाश में आता चला गया। भागलपुर में इस सिलसिले में कुल 21 मामले दर्ज किये गये। जबकि सहरसा में एक और बांका में एक मामला दर्ज हुआ है।
गिरफ्तार आरोपी जमानत पर हो रहे रिहा 
इस मामले की जांच को लेकर तत्कालीन सीनियर एसपी मनोज कुमार के नेतृत्व में पहले एसआईटी का गठन किया गया और ताबड़तोड़ कार्रवाई में 18 आरोपियों की गिरफ्तारी हुई थी। लेकिन बाद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सीबीआई जांच की सिफारिश के बाद सीबीआई मामले की जांच करने लगी। चंद बैंककर्मियों और सरकारी अधिकारियों की गिरफ्तारी और आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने के अलावा इस मामले में सीबीआई को कोई खास बड़ी कामयाबी नहीं मिली। जिसको लेकर सीबीआई जांच भी सवालों के घेरे में आ गया है। वहीं, दूसरी ओर धीरे-धीरे गिरफ्तार आधा दर्जन से अधिक आरोपी जमानत पर रिहा भी हो गये हैं और वे बेखौफ होकर शहर में अपनी गतिविधि जारी डाक खुलेआम चहल-पहल कर रहे हैं।
सीबीआई जांच पर उठ रहे सवाल
इस बाबत स्थानीय विधायक अजीत शर्मा ने कहा कि बिहार के सबसे बड़े घोटाला में सीबीआई की गतिविधि कई सवालों को जन्म देती है। घोटाले के कारण ही जिला में विकासकार्य अवरुद्ध है और छोटे-छोटे कर्मचारियों को गिरफ्तार कर सीबीआई महज खानापूर्ति कर रही है। वहीं वंचित समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ.रतन मंडल ने कहा कि सृजन की संस्थापिका मनोरमा देवी के मरने से पहले तक डेढ़ से दो दशक तक लगातार सरकारी राशि का हस्तान्तरण होता रहा, क्या ये बड़े अधिकारियों और नेताओं की भागीदारी के बिना संभव है? उन्होंने कहा कि तत्कालीन डीएम के.पी. रमैया का सभी प्रखंड के बीडीओ को पत्र लिख सरकारी पैसे को सृजन में जमा करने का निर्देश और सृजन को कम कीमत पर सरकारी भवन आवंटित किया जाना सहित सफेद कॉलरवालों के नाम के आने के बावजूद किसी तरह की कार्रवाई का न होना, सीबीआई की गतिविधि पर सवाल खड़ा तो करता ही है। उन्होंने इस महाघोटाले में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का सीधा हाथ बताते हुए कहा कि सत्ता के इशारे पर ही सीबीआई इन मामलों में कौवों को फंसा कर बाज को बचाने की सफल कोशिश कर रहे हैं।

About Post Author

You may have missed