विपक्षी गठबंधन को बड़ा झटका, सीट शेयरिंग से नाराज ममता बनर्जी जल्द छोड़ेंगी इंडिया का साथ

नई दिल्ली। पीएम मोदी को सत्ता की हैट्रिक लगाने से रोकने के लिए विपक्ष के 28 दलों ने मिलकर इंडिया गठबंधन का गठन किया, लेकिन सीट शेयरिंग को लेकर मंथन चल रहा है। कांग्रेस और ममता बनर्जी की अगुवाई वाली टीएमसी पश्चिम बंगाल में सीटों के बंटवारे को लेकर आमने-सामने नजर आ रही हैं। सीट बंटवारे के लिए मुकुल वासनिक के नेतृत्व में बनी कांग्रेस की पांच सदस्यीय समिति सहयोगी दलों के साथ राज्यवार बातचीत कर रही है, लेकिन सीट बंटवारे के लिए सबसे मुश्किल पश्चिम बंगाल में दिख रही है। कांग्रेस और टीएमसी के बीच ज़ुबानी जंग लगातार जारी है। टीएमसी ने कांग्रेस के साथ सीट शेयरिंग पर बैठक नहीं करेगी। ऐसे में सवाल उठता है कि ममता बनर्जी क्या इंडिया गठबंधन से अलग होने की तैयारी में हैं, जिसके चलते ही सीट शेयरिंग की बैठक से दूरी बना रही हैं। टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने कांग्रेस को पश्चिम बंगाल में दो लोकसभा सीटें देने की पेशकश की है, जो उसके 2019 के चुनाव में जीती है। पश्चिम बंगाल में कुल 42 लोकसभा सीटें है, जिसमें टीएमसी खुद 40 सीटों पर चुनाव लड़ने के मूड में है और महज दो सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ रही है। इसको लेकर कांग्रेस राजी नहीं है, क्योंकि वो 7 से 8 सीटें चाहती है। टीएमसी बंगाल के साथ असम, मेघालय और त्रिपुरा में चुनाव लड़ना चाहती है। इसके चलते ही टीएमसी और कांग्रेस के बीच मनमुटाव पैदा हो रहा है। ममता बनर्जी के दो सीटों के ऑफर पर कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी सहमत नहीं है। अधीर रंजन चौधरी ने कहा था, ये दोनों सीटें हमारे पास हैं। हमें उनकी दया की कोई जरूरत नहीं है। हम अपने दम पर लड़ सकते हैं। वे (ममता बनर्जी) नहीं चाहतीं कि गठबंधन हो, क्योंकि अगर गठबंधन नहीं होता है तो सबसे ज्यादा खुशी पीएम मोदी को होगी और ममता बनर्जी जो कर रही हैं, वो पीएम मोदी की सेवा में लगी हुई हैं। वहीं, लोकसभा में टीएमसी के नेता सुदीप बंदोपाध्याय ने कहा था कि स्थानीय कांग्रेस नेता सीटों के बंटवारे के बारे में क्या सोच रहे हैं, इसका कोई महत्व नहीं है, क्योंकि अंतिम निर्णय दोनों पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व द्वारा लिया जाएगा। हालांकि, ममता बनर्जी ने सीट शेयरिंग की बैठक से दूरी बनाकर यह संकेत दे दिया है कि गठबंधन उनकी शर्तों पर ही होगा और अगर उस पर सहमत नहीं है को फिर उनके रास्ते अलग हो सकते हैं। पश्चिम बंगाल में कुल 42 लोकसभा सीटें है। 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजे को देखें तो प्रदेश की 42 सीटों में टीएमसी को 22, बीजेपी को 18 और कांग्रेस को दो सीटें मिली थीं। लेफ्ट पार्टी को एक भी सीटें नहीं मिल सकी थी। ममता बनर्जी इसी आधार पर कांग्रेस को सिर्फ दो सीटें ही देने की बात कर रही है और उसके पीछे तर्क है कि बंगाल में टीएमसी और बीजेपी के बीच मुकाबला है। कांग्रेस सिर्फ बहरामपुर और मालदा दक्षिण लोकसभा सीट ही जीत सकी थी जबकि बाकी सीटों पर बीजेपी और टीएमसी में फाइट थी। कांग्रेस को बंगाल की 34 सीटों पर दस फीसदी से भी कम वोट मिले थे। विधानसभा के चुनाव में नतीजे कांग्रेस के लिए और भी बुरे थे। इन्हीं आधारों को लेकर ममता बनर्जी कांग्रेस को सिर्फ दो सीटें ही देना चाहती हैं जबकि कांग्रेस की मंशा कम से कम आधा दर्जन सीटें की है। बंगाल की बहरामपुर और मालदा दक्षिण पर कांग्रेस का फिलहाल कब्जा है। इसके अलावा कांग्रेस 2019 में भले ही दो सीटें जीतने में कामयाब रही, लेकिन कई सीटों पर बेहतर प्रदर्शन किया था। उन सीटों को कांग्रेस गठबंधन के तहत दावा कर सकती है। मालदा उत्तर सीट बीजेपी ने जीती थी, लेकिन कांग्रेस को 23 फीसदी के करीब वोट मिले थे जबकि टीएमसी दूसरे नंबर पर रही थी। ऐसे ही जंगीपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस को 20 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन यह सीट टीएमसी के खाते में गई थी। बीजेपी यहां पर दूसरे नंबर पर रही थी। मुर्शिदाबाद लोकसभा सीट पर कांग्रेस को 25 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन इस सीट पर टीएमसी ने जीत दर्ज किया था। कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव में बहरामपुर और मालदा दक्षिण सीट के अलावा मालदा उत्तर, जंगीपुर और मुर्शिदाबाद सीट पर चुनाव लड़ना चाहती है। इनमें से दो सीट पर टीएमसी के सांसद है और एक सीट पर नंबर पर थी। ऐसे में ममता बनर्जी इन सीटों को किसी भी सूरत में देने के मूड में नहीं है। लेफ्ट प्रभाव वाली सीटों पर टीएमसी चुनाव जीतने में सफल रही थी। लेफ्ट को 2019 के लोकसभा चुनाव में पांच सीटों पर दस फीसदी से कम वोट मिले थे। इस तरह लेफ्ट के प्रभाव वाली सीटों पर टीएमसी किसी भी सूरत में समझौता करने के मूड में नहीं दिख रही है। यही वजह है कि टीएमसी और कांग्रेस के बीच सियासी शह-मात का खेल चल रहा है। अधीर रंजन चौधरी और ममता बनर्जी के बीच रिश्तों की यह तल्खी इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग की राह में रुकावट बन रही है। ममता और अधीर रंजन के बीच सियासी अदावत लंबे समय से चली आ रही है। अधीर रंजन शुरू से ही ममता बनर्जी के साथ गठबंधन के लिए रजामंद नहीं थे, लेकिन कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने राष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत गठजोड़ बनाने के लिए टीएमसी को भी साथ लिया। इसके पीछे एक बड़ी वजह यह भी रही कि गठबंधन होने से बंगाल में मुस्लिम वोटों में किसी तरह का कोई बिखराव नहीं होगा, लेकिन सीट शेयरिंग को लेकर पेंच फंसता जा रहा है। पश्चिम बंगाल में टीएमसी 2 से 3 सीटें दे सकती है, लेकिन अधीर रंजन चौधरी सात सीट चाहते हैं और बात यहीं पर अटकी है। ममता बनर्जी भले ही कांग्रेस को दो जीती हुई सीटों के अलावा दार्जिलिंग की सीट दे सकती हैं, जो अभी बीजेपी के पास है। टीएमसी को बीजेपी से ज्यादा खतरा कांग्रेस के सियासी उभार और लेफ्ट से है। इसीलिए ममता बनर्जी कांग्रेस को महज 2 से तीन सीटें ही दे सकती है। कांग्रेस कहती है कि दो सीट बहुत कम है और इसे स्वीकार करना मुश्किल है। वहीं, टीएमसी मेघालय में एक सीट और असम में कम से कम दो सीटों पर लड़ने पर विचार कर रही है। टीएमसी की स्थानीय इकाई गोवा में एक सीट से लड़ने की आकांक्षी है, जहां उसे 2022 के विधानसभा चुनाव में लगभग पांच प्रतिशत मत हासिल हुए थे। कांग्रेस इसके लिए तैयार नहीं है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि ममता बनर्जी बंगाल में किसी भी दल के लिए सीट नहीं छोड़ना चाहती है जबकि वो दूसरे राज्य में अपने लिए सीटें मांग रही है। ऐसे में कैसे बात बनेगी। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि ममता बनर्जी को पूरी उम्मीद है कि वो गठबंधन के बजाय अकेले भी चुनाव लड़ती हैं तो बंगाल में उन्हें आसानी से जीत मिल जाएगी। इसीलिए कांग्रेस को बहुत ज्यादा सियासी भाव नहीं दे रही है, जिसके चलते ही सीट शेयरिंग की बैठक में अपने नेताओं को भी जाने से मना कर दिया है। इस तरह से माना जा रहा है कि गठबंधन से ममता अलग अपनी सियासी रास्ता तलाश सकती हैं?

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