November 16, 2025

आरिफ मोहम्मद खान बने बिहार के 42वें राज्यपाल, मुख्य न्यायाधीश ने दिलाई शपथ 

पटना। बिहार ने 42वें राज्यपाल के रूप में आरिफ मोहम्मद खान का स्वागत किया। गुरुवार को पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश कृष्ण विनोद चंद्रन ने उन्हें पद की शपथ दिलाई। इस ऐतिहासिक अवसर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, और अन्य प्रमुख नेता उपस्थित थे। यह समारोह कई मायनों में खास रहा, क्योंकि इसमें आरिफ मोहम्मद खान के 50 साल पुराने मित्र भी मौजूद थे, जिन्होंने इस पल को और यादगार बना दिया। आरिफ मोहम्मद खान का परिचय यूपी के बुलंदशहर से है। वे हमेशा अपने बेबाक और स्पष्टवादी बयानों के लिए चर्चा में रहे हैं। उनकी राजनीतिक यात्रा बहुरंगी रही है। कांग्रेस और बसपा के साथ राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले खान 2004 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हुए। बिहार का राज्यपाल बनाए जाने के पीछे भाजपा की एक सोच-समझकर बनाई गई रणनीति मानी जा रही है। खान के रूप में बिहार को लगभग 26 वर्षों बाद एक मुस्लिम राज्यपाल मिला है। इससे पहले एआर किदवई 1998 तक इस पद पर आसीन थे। खान की नियुक्ति को सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, क्योंकि यह राज्य में धार्मिक समरसता और सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने का संकेत देता है। निवर्तमान राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर को केरल स्थानांतरित किया गया है। आर्लेकर ने अपने कार्यकाल के दौरान बिहार में प्रशासनिक समन्वय बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अब खान के समक्ष राज्यपाल के रूप में नए और चुनौतीपूर्ण कार्य हैं। बिहार की जटिल राजनीतिक संरचना और विकास की मांगों के बीच, उनकी भूमिका राज्य और केंद्र के बीच सामंजस्य स्थापित करने में अहम होगी। यह शपथ ग्रहण न केवल प्रशासनिक प्रक्रिया थी, बल्कि बिहार के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय का आरंभ भी है। आरिफ मोहम्मद खान की नियुक्ति के साथ, एक नई उम्मीद जगी है कि राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत को और मजबूत किया जाएगा। भाजपा के इस कदम को 2024 के चुनावों के मद्देनजर भी देखा जा रहा है, क्योंकि यह पार्टी के अल्पसंख्यक समुदाय तक पहुंचने के प्रयास का हिस्सा हो सकता है। बिहार के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य में इस परिवर्तन के क्या प्रभाव होंगे, यह समय के साथ स्पष्ट होगा। फिलहाल, आरिफ मोहम्मद खान को नए राज्यपाल के रूप में चुनना एक ऐतिहासिक और रणनीतिक कदम है।

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