पूर्णिया में मां की डांट से नाराज होकर किशोरी ने की आत्महत्या, फांसी लगाकर दी जान
पूर्णिया। पूर्णिया जिले से एक बेहद दुखद और चिंताजनक खबर सामने आई है, जहां एक किशोरी ने अपनी जान दे दी। यह दिल दहला देने वाली घटना मधुबनी इलाके की है। बताया जा रहा है कि 15 वर्षीय काजल कुमारी ने अपनी मां की डांट से आहत होकर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। घटना के बाद से परिवार में मातम का माहौल है और स्थानीय लोग भी स्तब्ध हैं।
मोबाइल चलाने की आदत बनी तनाव की वजह
काजल की मां रानी देवी ने बताया कि उनकी बेटी को मोबाइल चलाने की लत लग गई थी, जिससे वे काफी परेशान थीं। घटना वाले दिन उन्होंने काजल से घर की सफाई करने और फिर खाना बनाने को कहा था। जब मां बाजार से लौटी, तो देखा कि बेटी मोबाइल में व्यस्त थी और घर का कोई काम नहीं किया गया था। इसी बात को लेकर मां ने उसे डांट लगा दी।
कुछ मिनट की गैरहाजिरी में बदल गई जिंदगी
मां के डांटने के बाद एक पड़ोसी ने उन्हें कुछ काम के लिए बुलाया और वे कुछ देर के लिए घर से बाहर चली गईं। इतने ही समय में गुस्से और आहत मन की काजल ने आत्मघाती कदम उठा लिया। वह अपने कमरे में गई और दुपट्टे से फांसी लगाकर अपनी जान दे दी।
घर लौटी मां ने देखा खौफनाक मंजर
जब रानी देवी घर वापस लौटीं, तो बेटी को फंदे से झूलता देख उनके होश उड़ गए। उन्होंने तुरंत शोर मचाया, जिसके बाद परिवार के अन्य सदस्य भी मौके पर पहुंचे। आनन-फानन में काजल को पूर्णिया के जीएमसीएच अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
परिजनों ने पोस्टमॉर्टम से किया इनकार
घटना के बाद परिवार गहरे सदमे में है। पिता सन्नी राय ने बताया कि काजल घर के काम को लेकर पहले से ही तनाव में थी और मोबाइल ही उसका एकमात्र सहारा बन गया था। उन्होंने बेटी का पोस्टमॉर्टम कराने से इनकार कर दिया, जिससे पुलिस को भी अधिक जानकारी जुटाने में परेशानी हो रही है।
समाज में गूंज रहा सवाल: क्या हम समझ पा रहे हैं बच्चों की मानसिक स्थिति?
यह घटना सिर्फ एक परिवार का दर्द नहीं, बल्कि समाज के लिए एक चेतावनी है। आज के समय में मोबाइल और तकनीक बच्चों की जिंदगी का बड़ा हिस्सा बन चुके हैं, लेकिन अभिभावकों और समाज को यह भी समझना होगा कि बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर इसका क्या असर हो रहा है। छोटी-छोटी बातों पर डांटना या अनदेखा करना कई बार गंभीर परिणाम ला सकता है।
आवश्यक है संवाद और समझदारी
किशोर अवस्था बेहद संवेदनशील होती है। इस उम्र में बच्चों को समझाने और उनका मार्गदर्शन करने की जरूरत होती है, न कि केवल अनुशासन के नाम पर फटकारने की। यह घटना बताती है कि यदि समय रहते संवाद होता, तो शायद काजल की जान बचाई जा सकती थी। अब जरूरत है कि हर घर में, हर परिवार में बच्चों के साथ खुलकर बातचीत हो और उन्हें भावनात्मक रूप से मजबूत किया जाए।


