पंजाब चुनाव से पहले अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस में वापसी के दिए संकेत, भाजपा को बताया कठोर पार्टी
नई दिल्ली। पंजाब की राजनीति में एक बार फिर चर्चाओं का दौर तेज हो गया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रह चुके और वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य अमरिंदर सिंह के हालिया बयान ने सियासी हलकों में नई अटकलों को जन्म दे दिया है। पंजाब में 2027 की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले उनका यह बयान इसलिए भी अहम माना जा रहा है, क्योंकि यह सीधे तौर पर बीजेपी की कार्यशैली और कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृति की तुलना करता है।
अमरिंदर सिंह का राजनीतिक सफर
कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब की राजनीति का एक बड़ा नाम रहे हैं। वे कांग्रेस शासन के दौरान दो बार पंजाब के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और लंबे समय तक पार्टी के मजबूत स्तंभ माने जाते थे। हालांकि 2021 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी से नाता तोड़ लिया था। उस समय उन्होंने यह आरोप लगाया था कि पार्टी नेतृत्व, विशेष रूप से सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के रवैये से वे आहत थे। इसके बाद उन्होंने अपनी अलग पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस का गठन किया, जिसे 2022 में बीजेपी में विलय कर दिया गया। इसी के साथ अमरिंदर सिंह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए।
बीजेपी को लेकर उठाए सवाल
शुक्रवार को मीडिया से बातचीत के दौरान अमरिंदर सिंह ने बीजेपी की कार्यशैली पर खुलकर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि उन्हें बीजेपी का दृष्टिकोण काफी कठोर लगता है। उनके अनुसार पार्टी में फैसले ऊपर के स्तर पर लिए जाते हैं और जमीनी स्तर पर काम कर चुके नेताओं से पर्याप्त सलाह नहीं ली जाती। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी राज्य, खासकर पंजाब जैसे संवेदनशील और विशिष्ट राजनीतिक वातावरण वाले राज्य में स्थानीय अनुभव और सलाह बेहद जरूरी होती है।
पंजाब में बीजेपी की सीमित सफलता
अमरिंदर सिंह ने यह सवाल भी उठाया कि देश के कई हिस्सों में बीजेपी लगातार मजबूत हो रही है, लेकिन पंजाब में उसे वैसी सफलता क्यों नहीं मिल पाई। उन्होंने कहा कि पिछले चुनावों के नतीजे इस बात का उदाहरण हैं कि बीजेपी पंजाब में अपेक्षित प्रभाव नहीं छोड़ सकी। उनके मुताबिक इसका एक बड़ा कारण यह है कि पार्टी उन नेताओं से पर्याप्त संवाद नहीं करती, जो वर्षों से जमीन पर काम करते आए हैं और राज्य की राजनीति को भली-भांति समझते हैं।
कांग्रेस और बीजेपी की कार्यसंस्कृति की तुलना
अपने बयान में अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस और बीजेपी की कार्यसंस्कृति की तुलना भी की। उन्होंने कहा कि कांग्रेस में भी फैसले शीर्ष नेतृत्व द्वारा ही लिए जाते थे, लेकिन वहां विधायकों, सांसदों और अनुभवी नेताओं से विचार-विमर्श किया जाता था। कांग्रेस की व्यवस्था में परामर्श और अनुभव को महत्व दिया जाता था। वहीं, बीजेपी में उन्हें ऐसा नहीं लगता कि नेताओं से राय ली जाती है। उनके अनुसार यही वजह है कि कई बार जमीनी हकीकत और केंद्रीय निर्णयों के बीच दूरी बन जाती है।
कांग्रेस की याद और स्पष्ट इनकार
अमरिंदर सिंह के इस बयान के बाद यह चर्चा तेज हो गई कि क्या वे एक बार फिर कांग्रेस में वापसी का संकेत दे रहे हैं। पंजाब के राजनीतिक गलियारों में इसे संभावित घर वापसी के संकेत के रूप में देखा जाने लगा। हालांकि उन्होंने इस तरह की किसी भी अटकल को सिरे से खारिज कर दिया। जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें कांग्रेस की याद आती है, तो उन्होंने साफ कहा कि उन्हें कांग्रेस की व्यवस्था की याद आती है, न कि पार्टी में लौटने की इच्छा।
परामर्श और लचीलापन का मुद्दा
उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस में व्यापक स्तर पर परामर्श की परंपरा थी और अनुभव को महत्व दिया जाता था। उनके अनुसार कांग्रेस राय लेने में अधिक लचीली पार्टी रही है। इसके उलट बीजेपी के बारे में उनका मानना है कि उसका दृष्टिकोण अपेक्षाकृत कठोर है और निर्णय लेने की प्रक्रिया में संवाद की कमी दिखाई देती है। अमरिंदर सिंह का यह बयान ऐसे समय आया है, जब बीजेपी पंजाब में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है।
चुनाव से पहले बयान का राजनीतिक महत्व
पंजाब में 2027 के विधानसभा चुनाव अभी दूर हैं, लेकिन राजनीतिक दलों की तैयारियां अभी से शुरू हो चुकी हैं। ऐसे में अमरिंदर सिंह जैसे वरिष्ठ नेता का बयान केवल व्यक्तिगत अनुभव तक सीमित नहीं माना जा रहा। इसे बीजेपी की रणनीति और संगठनात्मक ढांचे पर एक अप्रत्यक्ष टिप्पणी के रूप में देखा जा रहा है। वहीं कांग्रेस के लिए यह बयान एक तरह से नैतिक बढ़त का संकेत भी माना जा रहा है, क्योंकि पार्टी की परामर्श आधारित संस्कृति की सराहना एक पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा की गई है।
भविष्य की राजनीति पर नजर
हालांकि अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस में वापसी से साफ इनकार किया है, लेकिन उनके बयान ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे बीजेपी की कार्यशैली से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि उनके विचारों का पार्टी के भीतर कितना असर पड़ता है और क्या बीजेपी पंजाब में अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करती है। फिलहाल इतना तय है कि अमरिंदर सिंह का यह बयान पंजाब की राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे चुका है, जिसका असर आने वाले दिनों में और गहराता दिख सकता है।


