November 20, 2025

यूपी चुनाव के लिए अखिलेश ने कसी कमर: गठबंधन में जल्द फाइनल करेंगे सीट शेयरिंग, बीजेपी से मुकाबला की तैयारी

लखनऊ। बिहार विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन को मिली करारी हार ने विपक्षी दलों को नए सिरे से रणनीति बनाने के लिए मजबूर कर दिया है। विशेष रूप से कांग्रेस के बेहद खराब प्रदर्शन ने कई गठबंधन साथियों की चिंताएं बढ़ा दी हैं। आगामी 2027 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को देखते हुए समाजवादी पार्टी अलर्ट मोड में आ गई है। पार्टी के भीतर यह चर्चा तेज है कि बिहार जैसे हालात से बचने के लिए गठबंधन और सीट बंटवारे की रणनीति अभी से स्पष्ट कर लेनी चाहिए।
बिहार के नतीजों ने बढ़ाई सपा की सतर्कता
बिहार में कांग्रेस ने सहयोगी दलों के साथ मिलकर चुनाव तो लड़ा, लेकिन 61 सीटों पर उम्मीदवार उतारने के बाद भी केवल 6 सीटें ही जीत सकी। 2020 में उसके खाते में 19 सीटें आई थीं, लेकिन 2025 के चुनाव में उसका यह प्रदर्शन निराशाजनक रहा। महागठबंधन के भीतर यह माना जा रहा है कि कांग्रेस का यह कमजोर प्रदर्शन पूरे गठबंधन की हार का बड़ा कारण बना। यही वजह है कि सपा के कई नेताओं ने अखिलेश यादव तक संदेश भेजा है कि यूपी में चुनाव से पहले सीटों पर स्पष्ट सहमति बनाना आवश्यक है, ताकि अंत समय में खींचतान या गड़बड़ी न हो।
सपा नेताओं का तर्क: सीटें जीत की संभावना के आधार पर मिलें
समाजवादी पार्टी के एक बड़े समूह का मानना है कि कांग्रेस को उन सीटों पर ही लड़ने दिया जाए जहां उसकी जमीनी पकड़ और जीत की संभावना हो। बिहार के अनुभव ने यह साफ कर दिया है कि कमजोर सीटों पर कांग्रेस को मौका देना पूरे गठबंधन के लिए नुकसानदायक हो सकता है। सपा नेतृत्व को सुझाया गया है कि सीट बंटवारे का अंतिम निर्णय चुनाव से काफी पहले कर लिया जाए। इससे दोनों दलों को अपने-अपने क्षेत्रों में मजबूत तैयारी करने का मौका मिलेगा और गठबंधन में भ्रम की स्थिति नहीं बनेगी।
यूपी में पिछला प्रदर्शन: सपा मजबूत, कांग्रेस की स्थिति कमजोर
उत्तरी भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कांग्रेस लंबे समय से संघर्ष कर रही है। 2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा ने मिलकर मुकाबला किया था। इस चुनाव में सपा ने 37 सीटें जीतकर शानदार प्रदर्शन किया, जबकि कांग्रेस ने 17 सीटों पर चुनाव लड़कर केवल 6 सीटें जीतीं। हालांकि यह 2009 के बाद उसका सबसे अच्छा प्रदर्शन था, फिर भी यूपी की जमीन पर उसका संगठन अब भी सीमित क्षेत्रों तक सिमटा माना जाता है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी दोनों दलों ने गठबंधन किया था, लेकिन परिणाम बेहद निराशाजनक रहे और बीजेपी ने भारी बहुमत से जीत हासिल की थी।
रणनीतिक पुनर्विचार की मांग तेज
हालांकि अखिलेश यादव पहले ही साफ कर चुके हैं कि इंडिया गठबंधन बरकरार रहेगा और सपा 2027 का चुनाव कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ेगी। लेकिन बिहार के नतीजों के बाद पार्टी के भीतर रणनीतिक पुनर्विचार की आवाजें तेज हो गई हैं। सपा नेताओं का मानना है कि राजनीति में भावनाओं के बजाय यथार्थवादी रणनीति अपनानी चाहिए। यदि गठबंधन बनाना है तो सीटों का बंटवारा संतुलित और व्यावहारिक हो, ताकि किसी दल के दबाव में अनावश्यक रियायत न देनी पड़े।
सीटों के लिए होने वाली खींचतान से बचना जरूरी
कई सपा नेताओं का कहना है कि अंतिम समय की सीट शेयरिंग से अक्सर विवाद पैदा होते हैं। यदि सीटों पर पहले ही सहमति हो जाए तो उम्मीदवारों के चयन, क्षेत्रीय अभियान और बूथ प्रबंधन जैसी गतिविधियाँ समय पर शुरू की जा सकती हैं। उनका तर्क है कि कांग्रेस को ऐसी सीटें लेने पर जोर नहीं देना चाहिए जहां जीत की संभावना अत्यंत कम है। इससे सपा अपने कोटे की जीताऊ सीटें नहीं खोएगी और गठबंधन भी मजबूत रहेगा।
आने वाले चुनाव के लिए तैयारियों की रफ्तार तेज
अखिलेश यादव ने आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर संगठन को पहले ही सक्रिय कर दिया है। सामाजिक समीकरण, युवाओं को जोड़ने की रणनीति और बूथ स्तर के कामों पर जोर बढ़ा दिया गया है। सपा की कोशिश है कि बीजेपी को कड़ी चुनौती देने के लिए गठबंधन को पहले से बेहतर तैयार किया जाए। यूपी की राजनीति में बीजेपी की मजबूत पकड़ को देखते हुए विपक्ष को संगठित और सुविचारित रणनीति अपनानी ही होगी। बिहार के नतीजों ने सपा को यह संदेश दिया है कि गठबंधन तभी सफल होगा जब दोनों दल अपनी वास्तविक ताकत के आधार पर निर्णय लें। सीट शेयरिंग पर पहले से सहमति, जीताऊ सीटों पर फोकस और समयबद्ध रणनीति ही 2027 के यूपी चुनाव में विपक्ष के लिए सफलता का रास्ता खोल सकती है। अखिलेश यादव की सक्रियता और सपा नेताओं की सलाह से यह स्पष्ट है कि पार्टी किसी भी हालत में बिहार जैसी गलती दोहराना नहीं चाहती।

You may have missed