नाबालिक अपराधी भी अब होंगे अग्रिम जमानत के हकदार, कोलकाता हाईकोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला
नई दिल्ली। देश की न्यायिक व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाते हुए कोलकाता हाईकोर्ट ने हाल ही में एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा है कि अब नाबालिग अपराधी भी अग्रिम जमानत के हकदार होंगे। अर्थात, यदि किसी नाबालिग को किसी भी मामले में गिरफ्तार किया गया है या गिरफ्तारी की आशंका है, तो वह अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकता है, चाहे आरोप कितना भी गंभीर क्यों न हो। यह फैसला देश में पहली बार किसी हाईकोर्ट ने इस प्रकार दिया है, जिससे बाल न्याय प्रणाली में नई न्यायिक व्याख्या जुड़ गई है।
तीन जजों की बेंच का बड़ा निर्णय
इस महत्वपूर्ण फैसले को कोलकाता हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने सुनाया। इस पीठ में जस्टिस जय सेनगुप्ता, जस्टिस तीर्थांकर घोष और जस्टिस बिवास पटनायक शामिल थे। इस बेंच ने स्पष्ट किया कि अग्रिम जमानत का अधिकार केवल वयस्कों तक सीमित नहीं रह सकता। अदालत के अनुसार, संविधान में सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हैं और बाल अपराधियों के मामलों में भी न्यायिक सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए। पीठ के दो जज—जस्टिस सेनगुप्ता और जस्टिस घोष—ने इस फैसले का समर्थन किया, जबकि जस्टिस बिवास पटनायक ने इसका विरोध किया। इस प्रकार यह फैसला बहुमत यानी 2-1 से पारित हुआ। अदालत ने कहा कि नाबालिगों को अग्रिम जमानत देने से कानून के दायरे में रहते हुए उनकी सुरक्षा सुनिश्चित होगी और अनावश्यक पुलिस कार्रवाई से बचाया जा सकेगा।
अब तक क्या था नियम
अब तक भारत में नाबालिग अपराधियों के मामलों में अग्रिम जमानत का कोई प्रावधान नहीं था। यदि किसी नाबालिग पर गंभीर अपराध का आरोप लगता था, तो उसे सीधे जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के सामने पेश किया जाता था। बोर्ड ही यह तय करता था कि आरोपी नाबालिग को जमानत देनी है या नहीं। हालांकि, बोर्ड के पास अग्रिम जमानत देने का अधिकार नहीं था, जिससे नाबालिगों को कानूनी सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण विकल्प उपलब्ध नहीं था। कानून विशेषज्ञों का कहना है कि इस फैसले से कानूनी प्रक्रिया में सुधार होगा और बच्चों के अधिकारों की रक्षा और भी बेहतर तरीके से सुनिश्चित की जा सकेगी। उनका मानना है कि कई बार पुलिस गलत आरोपों में भी नाबालिगों को हिरासत में ले लेती है, ऐसे में अग्रिम जमानत का विकल्प उन्हें तुरंत राहत दिला सकता है।
न्यायिक व्यवस्था में नई दृष्टि
फैसले में हाईकोर्ट ने उल्लेख किया कि नाबालिगों को भी वे सभी मौलिक अधिकार प्राप्त हैं जो एक वयस्क को मिलते हैं। यदि वयस्कों को गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत का अधिकार दिया जाता है, तो नाबालिगों को इससे वंचित रखना उचित नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि कानून के अनुसार नाबालिगों को अपराध करने पर अधिक संवेदनशीलता के साथ देखा जाता है, इसलिए उन्हें अग्रिम जमानत का अधिकार मिलना न्यायसंगत है। जस्टिस सेनगुप्ता और जस्टिस घोष ने अपने निर्णय में कहा कि अग्रिम जमानत का अधिकार किसी आरोपी के लिए गिरफ्तारी से पहले की सुरक्षा है। नाबालिगों को इससे वंचित रखना संविधान की समता के सिद्धांत के विरुद्ध है। हालांकि, जस्टिस पटनायक का मत था कि बाल न्याय अधिनियम में अग्रिम जमानत का उल्लेख नहीं है, इसलिए यह परिवर्तन विधेयकीय स्तर पर किया जाना चाहिए।
परिणाम और प्रभाव
इस ऐतिहासिक फैसले के बाद देशभर में यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या अन्य हाईकोर्ट भी इस फैसले का पालन करेंगे। फैसले के प्रभाव से अब पश्चिम बंगाल में कोई भी नाबालिग आरोपी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकता है। यह न्यायिक सुरक्षा नाबालिगों को मनमानी गिरफ्तारी से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। कानून विशेषज्ञों का मानना है कि इससे नाबालिगों को न्यायिक संरक्षण मिलेगा, लेकिन यह भी जरूरी है कि अदालतें मामले की गंभीरता, नाबालिग की परिस्थितियों और अपराध की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए ही जमानत मंजूर करें। कोलकाता हाईकोर्ट का यह फैसला भारत की न्यायिक प्रणाली में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। इससे नाबालिगों को अधिक न्यायिक सुरक्षा मिलेगी और उन्हें गलत तरीके से हिरासत में लेने की संभावनाएं कम होंगी। यह निर्णय बाल-अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और आने वाले समय में देश की अन्य अदालतें भी इसे एक मिसाल के रूप में अपना सकती हैं।


