पटना में जल्द महंगा होगा मेट्रो का किराया, सस्ती दर पर बिजली की याचिका खारिज, यात्रियों पर बढ़ेगा बोझ
पटना। राजधानी पटना में मेट्रो रेल परियोजना को लेकर यात्रियों को एक बड़ी निराशा झेलनी पड़ सकती है। बिहार विद्युत विनियामक आयोग (बीईआरसी) ने पटना मेट्रो रेल परियोजना की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें मेट्रो के लिए सस्ती दर पर बिजली देने की मांग की गई थी। आयोग के इस फैसले के बाद अब पटना मेट्रो को बिजली रेलवे की तर्ज पर ही ऊंचे दरों पर लेनी होगी। नतीजतन, संचालन लागत बढ़ेगी और इसका सीधा असर यात्रियों के किराए पर पड़ेगा।
सस्ती दर की मांग खारिज
पटना मेट्रो रेल कॉरपोरेशन ने बिहार विद्युत विनियामक आयोग के समक्ष एक पुनर्विचार याचिका दायर की थी। इसमें कहा गया था कि मेट्रो रेल का संचालन 24 घंटे नहीं होता, इसलिए इसे रेलवे जैसी बिजली दरों पर चार्ज करना उचित नहीं है। मेट्रो की दलील थी कि वह केवल 16 घंटे औसतन प्रतिदिन चलती है और कम दूरी की सेवा प्रदान करती है, इसलिए उसे विशेष श्रेणी में शामिल किया जाए ताकि बिजली दरों में रियायत दी जा सके। हालांकि, आयोग ने इस दलील को अस्वीकार कर दिया। आयोग ने अपने आदेश में कहा कि मेट्रो रेल के परिचालन का स्वरूप रेलवे से भले ही कुछ अलग हो, लेकिन उसकी ऊर्जा खपत और संचालन ढांचा रेलवे के समान है। इसलिए मेट्रो को अलग दर देने का कोई औचित्य नहीं बनता।
आयोग का तर्क
बिहार विद्युत विनियामक आयोग ने स्पष्ट किया कि पुनर्विचार याचिका केवल उसी स्थिति में स्वीकार की जा सकती है जब पहले के निर्णय में टंकण भूल या तथ्यात्मक त्रुटि पाई जाए। पटना मेट्रो की याचिका में ऐसी कोई त्रुटि नहीं मिली, इसलिए पहले से तय बिजली दरें ही लागू रहेंगी। आयोग ने कहा कि मेट्रो रेल प्रणाली में उच्च क्षमता वाली बिजली आपूर्ति की आवश्यकता होती है, जिसमें ट्रैक्शन, स्टेशन संचालन, एस्केलेटर, लाइटिंग, वेंटिलेशन, एयर कंडीशनिंग और सुरक्षा प्रणाली जैसे उपकरणों के लिए निरंतर बिजली की आपूर्ति जरूरी होती है। ऐसे में मेट्रो को रियायती दर पर बिजली देना तर्कसंगत नहीं है।
रेलवे जैसी दरें ही लागू होंगी
आयोग के आदेश के अनुसार, पटना मेट्रो को 540 रुपये प्रति केवीए फिक्स्ड चार्ज और 8.16 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली देनी होगी। यह वही दर है जो भारतीय रेलवे को दी जाती है। आयोग ने यह भी कहा कि मेट्रो रेल पर “टाइम ऑफ डे” व्यवस्था लागू की जाएगी। इस प्रणाली में बिजली खपत के समय के आधार पर दरों में बदलाव होगा। ऑफ-पीक आवर (सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक): इस दौरान मेट्रो को केवल 80 प्रतिशत बिजली शुल्क देना होगा। नॉर्मल अवधि (शाम 5 से रात 8 बजे तक): इस अवधि में मेट्रो को पूरी 100 प्रतिशत दर से भुगतान करना होगा। पीक आवर (रात 8 बजे से तड़के 3 बजे तक): इस समय मेट्रो को सामान्य दर से 20 प्रतिशत अधिक यानी 120 प्रतिशत बिजली शुल्क देना होगा।
बिजली खपत का अनुमान
बिजली आपूर्ति से संबंधित तकनीकी रिपोर्ट के अनुसार, पटना मेट्रो के एलिवेटेड (ऊपर बने) स्टेशनों पर प्रारंभिक रूप से लगभग 200 किलोवाट बिजली की खपत होगी, जो भविष्य में 300 किलोवाट तक बढ़ सकती है। वहीं, भूमिगत स्टेशनों पर बिजली की मांग काफी अधिक रहने की संभावना है, जो 1500 किलोवाट से शुरू होकर 2000 किलोवाट तक जा सकती है। इन अनुमानों के आधार पर ऊर्जा व्यय की कुल लागत काफी अधिक होगी। चूंकि मेट्रो को सस्ती बिजली की सुविधा नहीं मिलेगी, इसलिए परिचालन खर्च में सीधा इजाफा होगा, और यही खर्च यात्रियों से वसूले जाने वाले किराए में झलकेगा।
किराए में बढ़ोतरी की आशंका
विशेषज्ञों का कहना है कि पटना मेट्रो को अब संचालन लागत के लिए अधिक राशि खर्च करनी पड़ेगी। मेट्रो का किराया इस पर निर्भर करता है कि उसकी ऊर्जा लागत और रखरखाव खर्च कितनी है। अगर बिजली दरें ऊंची रहेंगी तो किराया स्वाभाविक रूप से बढ़ेगा। बिजली की उच्च दर का असर न केवल मेट्रो के नियमित संचालन पर पड़ेगा, बल्कि भविष्य में विस्तार योजनाओं की वित्तीय योजना पर भी असर डालेगा। आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि सरकार मेट्रो किराया बढ़ाने से बचना चाहती है, तो उसे बिजली लागत का कुछ हिस्सा सब्सिडी के रूप में वहन करना होगा।
यात्रियों पर पड़ेगा असर
पटना मेट्रो का उद्देश्य राजधानी के लोगों को सस्ती, सुरक्षित और तेज यातायात सुविधा देना था। लेकिन मौजूदा निर्णय से यात्रियों को अपेक्षित राहत नहीं मिल पाएगी। बढ़ी हुई बिजली दरों के चलते किराए में बढ़ोतरी की संभावना बढ़ गई है, जिससे मेट्रो की “किफायती यात्रा” की अवधारणा को झटका लग सकता है। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि मेट्रो किराया अभी अंतिम रूप से तय नहीं किया गया है और इसे कई कारकों — जैसे परिचालन लागत, रखरखाव खर्च, स्टाफ वेतन और राजस्व संभावनाओं — को ध्यान में रखकर तय किया जाएगा।
सरकार और मेट्रो प्रशासन की चुनौती
अब सबसे बड़ी चुनौती यह है कि बढ़ी हुई बिजली दरों के बावजूद मेट्रो को लाभदायक और सुलभ कैसे बनाया जाए। विशेषज्ञों का सुझाव है कि मेट्रो प्रशासन को ऊर्जा दक्षता बढ़ाने के उपाय अपनाने चाहिए, जैसे सौर ऊर्जा का उपयोग, ऊर्जा बचाने वाले उपकरणों का प्रयोग और स्टेशन डिजाइन में प्राकृतिक प्रकाश का अधिकतम उपयोग। इसके अलावा, विज्ञापन और वाणिज्यिक गतिविधियों के माध्यम से अतिरिक्त राजस्व जुटाना भी एक समाधान हो सकता है, जिससे यात्रियों पर किराए का बोझ कम किया जा सके। पटना मेट्रो परियोजना राज्य की सबसे महत्वाकांक्षी शहरी परिवहन योजनाओं में से एक है, जिसका मकसद राजधानी की ट्रैफिक समस्या को कम करना है। लेकिन बिजली दरों पर रियायत न मिलने से इसकी आर्थिक चुनौती बढ़ गई है। बिहार विद्युत विनियामक आयोग के फैसले के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि पटना मेट्रो को रेलवे जैसी ही ऊंची दर पर बिजली लेनी होगी। ऐसे में आने वाले दिनों में मेट्रो का किराया बढ़ना लगभग तय माना जा रहा है। अब देखना यह होगा कि सरकार और मेट्रो प्रशासन किस तरह इस बढ़ते खर्च को संतुलित करते हैं ताकि राजधानीवासियों को राहत मिल सके और मेट्रो का सपना आर्थिक रूप से व्यवहार्य बना रहे।


