October 28, 2025

भाई दूज का त्योहार आज: चार शुभ योग का महासंयोग, भाइयों की दीर्घायु के लिए होगी प्रार्थना

पटना। भाई दूज का पर्व हिंदू संस्कृति में भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक है। यह त्योहार कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन मनाया जाता है, जिसे यम द्वितीया भी कहा जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और स्वस्थ जीवन की कामना करती हैं। इस वर्ष का भाई दूज विशेष है क्योंकि यह चार शुभ योगों — आयुष्मान योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, रवियोग और जयद् योग — के महासंयोग में मनाया जा रहा है। इन योगों के कारण यह दिन अत्यंत शुभ और मंगलकारी माना जा रहा है।
भाई दूज की धार्मिक महत्ता
भाई दूज का पर्व केवल भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक नहीं, बल्कि यह धर्म, आस्था और विश्वास से भी जुड़ा हुआ है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन यमुना ने अपने भाई यमराज को भोजन के लिए अपने घर आमंत्रित किया था। यमराज, जो प्राणों के हरने वाले देवता माने जाते हैं, बहन के स्नेह से प्रभावित होकर उसके घर आए और उसके आतिथ्य से प्रसन्न होकर वरदान दिया कि जो भी बहन इस दिन अपने भाई का तिलक और आदर-सत्कार करेगी, उसे यम का भय नहीं रहेगा। इसीलिए इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी आयु और सुरक्षा के लिए विशेष पूजा करती हैं।
यमराज और यमुना की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन यमुना ने अपने भाई यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण दिया। यमराज ने पहले संकोच किया क्योंकि वे मृत्यु के देवता हैं और उनके आगमन को लोग शुभ नहीं मानते। लेकिन बहन के स्नेह को देखते हुए उन्होंने उसका निमंत्रण स्वीकार किया। जब यमराज यमुना के घर पहुंचे, तो यमुना ने स्नान कर पूजा-अर्चना की और उन्हें सादर भोजन कराया। यमराज उसकी श्रद्धा और प्रेम से प्रसन्न होकर बोले कि आज के दिन जो बहन अपने भाई का तिलक करेगी, उसे मेरा भय कभी नहीं रहेगा। इस दिन से भाई दूज का पर्व मनाने की परंपरा आरंभ हुई।
पूजा विधि और परंपराएं
भाई दूज के दिन बहनें स्नान करके पवित्र मन से पूजा की तैयारी करती हैं। वे भगवान यमराज, चित्रगुप्त और यमदूतों की पूजा करती हैं। इसके बाद भगवत कथा सुनती हैं और अपने भाइयों की दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं। पूजा के बाद बहनें यमराज से प्रार्थना करती हैं कि उनके भाई मार्कण्डेय, हनुमान, बलि, परशुराम, व्यास, विभीषण, कृपाचार्य और अश्वत्थामा जैसे चिरंजीवी बनें। भाई दूज की संध्या बेला में बहनें घर के बाहर दक्षिणमुखी चौमुखा दीप जलाती हैं, जिससे मान्यता है कि भाई के जीवन में किसी प्रकार का संकट नहीं आता और वह दीर्घायु होता है।
कायस्थ समुदाय में विशेष पूजा
इस दिन कायस्थ समाज के लोग चित्रगुप्त भगवान की विधि-विधान से पूजा करते हैं। चित्रगुप्त को यमराज का सचिव माना गया है, जो हर जीव के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। कायस्थ समुदाय इस दिन उन्हें कलम-दवात अर्पित कर अपने पापों की क्षमा और सत्कर्मों की प्रेरणा प्राप्त करता है।
प्रतीकात्मक अनुष्ठान और उनका अर्थ
भाई दूज के दिन कुछ विशेष परंपराओं का भी पालन किया जाता है। बहनें भाई के माथे पर तिलक लगाती हैं और आरती उतारती हैं। इसके बाद भाई उन्हें उपहार स्वरूप वस्त्र, मिठाई या धन देता है। बहनें संकल्प लेती हैं कि अपने भाई के लिए कभी बुरा वचन नहीं बोलेंगी। कुछ परंपराओं में बहनें कांटे से अपनी जीभ को हल्का चुभोती हैं, जो इस संकल्प का प्रतीक है कि वे अपने भाई के प्रति सदा शुभ विचार ही रखेंगी। बजरी का सेवन भी इस दिन किया जाता है, क्योंकि यह सबसे कठोर अनाज माना जाता है। इसका प्रतीकात्मक अर्थ यह है कि भाई को भी मजबूत, निष्ठावान और सुदृढ़ बनना चाहिए। नारियल भाई के लिए शीतलता और मधुरता का प्रतीक है, जबकि पान प्रियता और सौहार्द का प्रतीक माना जाता है।
स्नेह, आस्था और रक्षा का संदेश
भाई दूज का त्योहार न केवल एक पारिवारिक पर्व है, बल्कि यह हमारे समाज में प्रेम, एकता और सुरक्षा की भावना को भी सशक्त करता है। इस दिन बहनें अपने भाई के प्रति असीम स्नेह और समर्पण व्यक्त करती हैं, वहीं भाई भी अपनी बहन की रक्षा और सम्मान का वचन देता है। यह पर्व एक दूसरे के प्रति प्रेम और दायित्व की भावना को पुनः जागृत करता है। भाई दूज का त्योहार रिश्तों की मिठास और एकता का प्रतीक है। इस दिन का हर अनुष्ठान भावनाओं से भरा होता है। यमराज और यमुना की कथा हमें यह सिखाती है कि स्नेह और विश्वास मृत्यु जैसे भय को भी समाप्त कर सकता है। भाई दूज के इस पावन पर्व पर जब बहनें अपने भाइयों की दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं, तो वह केवल एक धार्मिक कर्म नहीं, बल्कि रिश्तों के पवित्र बंधन का उत्सव बन जाता है। यही इस पर्व की सच्ची आत्मा है।

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