राजद विधायक रीतलाल यादव की याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई टली, 30 अक्टूबर को अगली सुनवाई
पटना। बिहार की राजनीति में इस समय चुनावी सरगर्मी अपने चरम पर है, वहीं इसी बीच दानापुर से राजद विधायक रीतलाल यादव के लिए पटना हाईकोर्ट से बड़ी खबर आई है। अदालत ने उनकी दायर आपराधिक रिट याचिका पर सुनवाई को स्थगित कर दिया है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 30 अक्टूबर 2025 को होगी। अदालत के इस फैसले से रीतलाल यादव को तत्काल राहत नहीं मिल सकी है, जिससे उनके चुनाव प्रचार की संभावनाएं फिलहाल कमजोर पड़ गई हैं।
अदालत में सुनवाई और अगली तारीख तय
पटना हाईकोर्ट में जस्टिस अरुण कुमार झा की एकल पीठ ने शुक्रवार को रीतलाल यादव द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान अदालत ने राज्य सरकार से जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले को अगली सुनवाई के लिए 30 अक्टूबर की तारीख पर टाल दिया। इसका मतलब यह है कि तब तक रीतलाल यादव जेल से बाहर नहीं आ पाएंगे और उन्हें अपने चुनाव प्रचार से दूरी बनाए रखनी होगी। जानकारी के अनुसार, रीतलाल यादव ने अदालत में यह याचिका इस आधार पर दायर की थी कि उन्हें जेल से चुनाव प्रचार के लिए बाहर निकलने की अनुमति दी जाए। लेकिन अब अदालत की अगली सुनवाई तक कोई राहत नहीं मिलने से वे भागलपुर जेल में ही रहेंगे।
नामांकन तो हुआ, प्रचार पर रोक
रीतलाल यादव ने हाल ही में पुलिस कस्टडी में रहते हुए ही दानापुर विधानसभा सीट से राजद उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल किया था। वे राजद के एक प्रभावशाली और पुराने नेता माने जाते हैं। उनके नामांकन को लेकर समर्थकों में काफी उत्साह था, लेकिन अब अदालत के फैसले के बाद उनके प्रचार अभियान पर रोक लग गई है। दानापुर विधानसभा सीट पर पहले चरण में यानी 6 नवंबर को मतदान होना है। ऐसे में 30 अक्टूबर को होने वाली अगली सुनवाई का फैसला यह तय करेगा कि रीतलाल यादव प्रचार में शामिल हो पाएंगे या नहीं। अगर अदालत उस दिन भी राहत नहीं देती है, तो उनके लिए चुनाव प्रचार पूरी तरह असंभव हो जाएगा।
राजद के लिए झटका
रीतलाल यादव की इस स्थिति से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को भी बड़ा झटका लगा है। पार्टी दानापुर सीट को अपनी मजबूत सीटों में गिनती करती है, और रीतलाल यादव यहां से प्रभावशाली उम्मीदवार माने जाते हैं। उनके जेल में रहने से चुनाव प्रचार की गति पर असर पड़ सकता है। राजद नेतृत्व अब इस स्थिति से निपटने की रणनीति तैयार कर रहा है ताकि सीट को बचाया जा सके। पार्टी सूत्रों के अनुसार, रीतलाल यादव के समर्थन में अब उनके परिवार के सदस्य और स्थानीय कार्यकर्ता प्रचार अभियान को आगे बढ़ाएंगे। पार्टी के वरिष्ठ नेता उनके समर्थन में जनसभाएं करने की योजना बना रहे हैं ताकि उनकी अनुपस्थिति से वोट बैंक पर नकारात्मक असर न पड़े।
मामला क्या है
रीतलाल यादव फिलहाल आपराधिक मामलों के कारण भागलपुर जेल में बंद हैं। उनके खिलाफ कई पुराने आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। हालांकि, उन्होंने यह दावा किया है कि उनके ऊपर लगे आरोप राजनीतिक साजिश के तहत लगाए गए हैं। उन्होंने अदालत से यह आग्रह किया था कि उन्हें चुनाव प्रचार में भाग लेने की अनुमति दी जाए ताकि वे मतदाताओं से सीधे संवाद स्थापित कर सकें। लेकिन अदालत ने इस याचिका पर तत्काल राहत देने से इनकार कर दिया और राज्य सरकार को इस मामले पर हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया। अब अगली सुनवाई में यह तय होगा कि उन्हें अस्थायी राहत दी जा सकती है या नहीं।
राज्य सरकार का पक्ष
राज्य सरकार की ओर से कहा गया है कि जेल में बंद किसी भी आरोपी को तब तक विशेष अनुमति नहीं दी जा सकती जब तक कि उसके मामले की प्रकृति गंभीर न हो और न्यायालय से मंजूरी न मिले। सरकार ने यह भी कहा कि रीतलाल यादव का मामला गंभीर अपराधों से जुड़ा हुआ है, इसलिए उन्हें चुनाव प्रचार के लिए जेल से बाहर जाने की अनुमति देना कानून के अनुरूप नहीं होगा। सरकार अब इस संबंध में एक विस्तृत हलफनामा तैयार कर रही है, जिसे 30 अक्टूबर को अदालत में प्रस्तुत किया जाएगा।
चुनावी समीकरणों पर असर
दानापुर विधानसभा क्षेत्र में इस घटना ने चुनावी समीकरणों को बदलकर रख दिया है। विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को राजद के खिलाफ प्रचार का हथियार बना लिया है। वहीं, राजद समर्थकों का कहना है कि रीतलाल यादव के साथ राजनीतिक बदले की भावना से कार्रवाई की जा रही है। स्थानीय राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर रीतलाल यादव चुनाव प्रचार में शामिल नहीं हो पाते, तो इससे राजद को नुकसान हो सकता है। हालांकि, वे अपने प्रभाव और संगठनात्मक जड़ें इतनी मजबूत रखते हैं कि उनकी अनुपस्थिति में भी उनका वोट बैंक प्रभावित न हो, यह भी संभव है। पटना हाईकोर्ट का यह फैसला फिलहाल रीतलाल यादव के लिए किसी राहत का संकेत नहीं देता। चुनाव से पहले उनकी यह कानूनी अड़चन राजद के लिए चुनौती बन गई है। अब सबकी निगाहें 30 अक्टूबर की सुनवाई पर टिकी हैं, जो यह तय करेगी कि क्या रीतलाल यादव को प्रचार की अनुमति मिलेगी या वे जेल से ही अपने समर्थकों के भरोसे चुनावी मैदान में रहेंगे। यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति के कानूनी संघर्ष का नहीं, बल्कि बिहार की चुनावी राजनीति में न्यायिक प्रक्रिया और चुनावी अधिकारों के संतुलन का भी उदाहरण है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि अदालत और प्रशासन इस नाजुक स्थिति से कैसे निपटते हैं और राजद इस चुनौती को किस तरह अवसर में बदलने की कोशिश करता है।


