महागठबंधन में सेट हुआ सीट शेयरिंग का फार्मूला: 141 सीटों पर लड़ सकती है राजद, कांग्रेस को 58 और लेफ्ट को मिलेगी 35 सीटें
- वीआईपी को 15 सीटें, झामुमो और रालोजपा में मिलेगी 2-2 सीटें, दिल्ली में मीटिंग के बाद लगेगी अंतिम मुहर
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मद्देनजर राज्य की राजनीति पूरी तरह चुनावी मोड़ पर आ चुकी है। चुनाव की घोषणा भले ही अभी बाकी हो, लेकिन राजनीतिक दलों ने अपने-अपने पत्ते खोलने शुरू कर दिए हैं। चाहे सत्तारूढ़ एनडीए हो या विपक्षी महागठबंधन, हर पार्टी चुनावी रणनीति और सीटों के बंटवारे को लेकर गहन मंथन में जुटी है। इसी बीच महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर बड़े स्तर पर सहमति बन गई है। सूत्रों की मानें तो अब तक जो फार्मूला सामने आया है वह राजद, कांग्रेस, वाम दलों और छोटे सहयोगियों के लिए नए समीकरण गढ़ सकता है।
राजद को सबसे ज्यादा मिलेगी 141 सीटें
महागठबंधन का सबसे बड़ा घटक दल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) है, जिसे इस बार लगभग 141 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका दिया जा सकता है। 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में राजद 2020 के मुकाबले तीन सीटें कम लड़ पाएगा। पिछली बार राजद ने 144 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। उसका स्ट्राइक रेट लगभग 52 प्रतिशत रहा था। इस बार पार्टी उम्मीद कर रही थी कि उसे 150 तक सीटें मिलेंगी, लेकिन गठबंधन के अन्य साथियों की दावेदारी के चलते 141 पर समझौता करना पड़ रहा है।
कांग्रेस को 58 सीटों तक सीमित किया गया
कांग्रेस के लिए यह सीट बंटवारा विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। 2020 के चुनाव में कांग्रेस 70 सीटों पर लड़ी थी लेकिन जीत केवल 19 सीटों पर मिली और उसका स्ट्राइक रेट मात्र 27 प्रतिशत रहा। इसी वजह से गठबंधन ने इस बार कांग्रेस को 58 सीटें देने का निर्णय किया है। हालांकि कांग्रेस 65 सीटों की मांग कर रही थी, लेकिन अंतिम समीकरण 58 पर ही टिकने की संभावना है। इसमें भी लगभग 17 प्रतिशत की कटौती पिछली बार की तुलना में हो रही है।
वाम दलों की बढ़ी ताकत
महागठबंधन में इस बार वाम दलों को अधिक प्राथमिकता देने का निर्णय हुआ है। 2020 के विधानसभा चुनाव में वाम दलों ने बेहद प्रभावी प्रदर्शन किया था। भाकपा (माले) ने 19 सीटों में से 12 सीटें जीतीं और उसका स्ट्राइक रेट लगभग 63 प्रतिशत रहा। भाकपा और माकपा को दो-दो सीटें मिली थीं। कुल मिलाकर वाम दलों का औसत स्ट्राइक रेट 55 प्रतिशत के करीब रहा। यही वजह है कि इस बार उन्हें कुल 35 सीटें देने का प्रस्ताव है। इनमें अधिक हिस्सेदारी भाकपा (माले) को मिलेगी जबकि शेष सीटें भाकपा और माकपा में बांटी जाएंगी।
छोटे सहयोगियों की हिस्सेदारी
महागठबंधन में इस बार मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी को 15 सीटें मिलने की बात सामने आ रही है। 2020 के चुनाव में वीआईपी भाजपा के साथ गठबंधन में थी और 11 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। इस बार वह राजद-कांग्रेस के साथ जुड़ी है और सीटों की संख्या बढ़कर 15 हो सकती है। ये सीटें राजद और कांग्रेस के हिस्से से घटाई जाएंगी, जिससे दोनों दलों में असंतोष की गुंजाइश बन सकती है। इसके अलावा अगर पशुपति पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलजेपी) और हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) गठबंधन में शामिल होती हैं, तो उन्हें 2-2 सीटें दी जा सकती हैं। हालांकि इनके हिस्से में आने वाली सीटें भी राजद या कांग्रेस से ही समायोजित की जाएंगी, जिससे समीकरण और जटिल हो सकता है।
क्यों तय हुआ यह फार्मूला
इस सीट बंटवारे की आधारशिला 2020 विधानसभा चुनाव और 2024 लोकसभा चुनावों के नतीजों पर रखी गई है। 2020 में राजद सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई और सरकार के बेहद करीब पहुंच गई थी। कांग्रेस का प्रदर्शन अपेक्षा से कमजोर रहा था, जबकि वाम दलों ने उम्मीद से कहीं बढ़कर जीत दर्ज की थी। वहीं, 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों ने भी इस बार के विधानसभा समीकरणों को प्रभावित किया है। राजद ने 23 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन केवल 4 पर जीत दर्ज की। कांग्रेस ने 9 सीटों में से 3 पर कब्जा जमाया और वाम दलों ने 5 सीटों में से 2 पर। इन नतीजों से कांग्रेस को थोड़ी मजबूती मिली और उसने विधानसभा में अधिक सीटों की मांग की, लेकिन गठबंधन का दबाव उसे 58 तक सीमित कर देगा।
कांग्रेस की ऐतिहासिक बैठक
महागठबंधन के भीतर इस सहमति से पहले पटना में कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक आयोजित की गई। यह बैठक ऐतिहासिक इसलिए मानी जा रही है क्योंकि आजादी के बाद पहली बार बिहार में कांग्रेस की शीर्ष इकाई ने बैठक की। इस बैठक में बिहार में कांग्रेस की गिरती साख को सुधारने और गठबंधन में उसे मजबूत स्थिति दिलाने की रणनीति पर चर्चा हुई। बैठक से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह जरूर देखने को मिला, लेकिन सीटों की संख्या की वास्तविकता ने उन्हें निराश भी किया है।
बीजेपी की चालें और रणनीति
महागठबंधन के भीतर जब सीटों का बंटवारा लगभग तय हो रहा था, उसी समय भाजपा भी बिहार में दो दिवसीय बैठक कर रही थी। इस बैठक में पार्टी ने अपनी चुनावी रणनीति को धार देने, प्रत्याशियों के चयन और प्रचार अभियान के ब्लूप्रिंट पर काम किया। भाजपा फिलहाल महागठबंधन की तरह सीट बंटवारे को लेकर सार्वजनिक बयान देने से बच रही है। पार्टी अपने जातीय समीकरण, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और हाल के लोकसभा चुनाव में मिले वोट प्रतिशत को ध्यान में रखकर रणनीति बना रही है।
सीमांचल और अति पिछड़ा समीकरण
महागठबंधन के 2025 रणनीति में सीमांचल और अति पिछड़ा वर्ग की राजनीति भी अहम भूमिका निभा रही है। हाल ही में महागठबंधन ने “अति पिछड़ा न्याय संकल्प पत्र” जारी कर यह संकेत दिया कि वे इस वर्ग को अपने पक्ष में करने की हरसंभव कोशिश करेंगे। कांग्रेस और राजद मिलकर इस वर्ग के मतदाताओं को साधना चाहेंगे, जबकि वाम दल गरीब और मजदूर वर्ग में अपनी पैठ पर जोर देंगे।
आगे की चुनौतियां और संभावनाएं
हालांकि फार्मूला तय कर लिया गया है, लेकिन इसमें अंतिम मुहर दिल्ली में उच्चस्तरीय बैठक के बाद ही लगेगी। सीट बंटवारे में असंतोष और विरोध की आशंका बनी हुई है, खासकर कांग्रेस और राजद के स्थानीय नेताओं के बीच टिकट वितरण को लेकर खींचतान हो सकती है। वहीं छोटे दलों की सीटें राजद और कांग्रेस के खातों से लेने से इन दलों में असंतुष्टि बढ़ने की पूरी संभावना है। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अब बहुत दिलचस्प मोड़ पर पहुंच चुका है। महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे का गणित लगभग तय हो गया है जिसमें 141 सीटों पर राजद, 58 पर कांग्रेस, 35 पर वाम दल, 15 पर वीआईपी और 2-2 सीटों पर झामुमो व रालोजपा उतर सकते हैं। 2020 की तुलना में यह सीट बंटवारा कांग्रेस के लिए कम और वाम दलों के लिए ज्यादा फायदेमंद साबित हो रहा है। दूसरी ओर, भाजपा अपने पत्ते धीरे-धीरे खोल रही है और मोदी की लोकप्रियता के बूते चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है। आने वाले दिनों में जैसे-जैसे दिल्ली में अंतिम मुहर लगेगी और भाजपा अपनी रणनीति स्पष्ट करेगी, बिहार का चुनावी मुकाबला और ज्यादा रोचक, टकरावपूर्ण और अप्रत्याशित हो सकता है।


