बिहार में सात जिलों के 2 लाख से अधिक मतदाताओं को निर्वाचन आयोग का नोटिस, वोटर लिस्ट के नाम काटने की तैयारी, दस्तावेज अनिवार्य

पटना। बिहार में चुनाव आयोग ने मतदाता सूची को शुद्ध और पारदर्शी बनाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। हाल ही में सात जिलों के 2 लाख से अधिक मतदाताओं को नोटिस जारी किया गया है, जबकि राज्य के अन्य 31 जिलों में करीब 1 लाख मतदाताओं को नोटिस भेजा गया है। यानी कुल मिलाकर लगभग 3 लाख मतदाता इस कार्रवाई के दायरे में आए हैं।
किस जिलों में जारी हुए नोटिस
मुख्य रूप से सीमांचल और उत्तर बिहार के जिलों में यह प्रक्रिया बड़े स्तर पर चल रही है। किशनगंज, मधुबनी, पूर्णिया, पश्चिम चंपारण, अररिया और सहरसा उन जिलों में शामिल हैं, जहां सबसे अधिक मतदाताओं को नोटिस दिया गया है। इन जिलों में विदेशी मूल के नागरिकों और फर्जी पते के आधार पर मतदाता सूची में नाम जुड़वाने के मामले अधिक सामने आए हैं।
क्यों भेजा गया नोटिस
मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के दौरान पाया गया कि कई लोगों ने आवश्यक दस्तावेज जमा नहीं किए हैं। जिन लोगों ने गणना प्रपत्र के साथ प्रमाण-पत्र नहीं दिया, उन्हें नोटिस भेजा गया है। निर्वाचक निबंधन पदाधिकारी को यदि किसी मतदाता की पहचान पर संदेह होता है, तो आधार कार्ड या एसआईआर में निर्धारित 11 दस्तावेजों में से कोई एक देना अनिवार्य कर दिया गया है।
विदेशी नागरिकों पर सख्ती
चुनाव विभाग के अनुसार, बिहार के कई इलाकों में विदेशी नागरिकों ने भी मतदाता सूची में अपना नाम जुड़वा लिया है। नेपाल और बांग्लादेश से आए कुछ लोग इस सूची में शामिल पाए गए हैं। विभाग का कहना है कि भारत-नेपाल सीमा से सटे क्षेत्रों में कई भारतीय पुरुषों की शादी नेपाली महिलाओं से हुई है। ये महिलाएं भारतीय नागरिक के रूप में यहां रह रही हैं, लेकिन इनके नाम को लेकर संदेह की स्थिति बनी रहती है। ऐसे मामलों की जांच के बाद ही अंतिम फैसला लिया जाएगा।
सात दिन में रखना होगा पक्ष
जिन मतदाताओं को नोटिस भेजा गया है, उन्हें सात दिन के अंदर निर्वाचक निबंधन पदाधिकारी के समक्ष अपना पक्ष रखना होगा। यदि वे दस्तावेज प्रस्तुत करने में असफल रहते हैं या उपस्थित नहीं होते हैं, तो उनके नाम प्रारूप मतदाता सूची से काट दिए जाएंगे। यह प्रक्रिया चुनाव आयोग की पारदर्शिता सुनिश्चित करने और फर्जी मतदान रोकने के उद्देश्य से की जा रही है।
जिनके पास दस्तावेज नहीं हैं उनके लिए विकल्प
ऐसे लोग जो कई पीढ़ियों से भारत के निवासी हैं, लेकिन उनके पास आधार या अन्य सरकारी पहचान पत्र नहीं है, उनके लिए विशेष व्यवस्था की गई है। यदि वे अब तक किसी सरकारी सुविधा का लाभ नहीं ले पाए हैं, तो जांच के बाद उनके लिए निवास प्रमाण-पत्र जारी किया जाएगा। इस आधार पर उनका नाम मतदाता सूची से नहीं काटा जाएगा। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि वे नोटिस मिलने के सात दिन के भीतर अपना पक्ष रखें।
प्रशिक्षण और आगे की तैयारी
मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के कार्यालय में हाल ही में राज्य स्तरीय मास्टर ट्रेनरों का प्रशिक्षण संपन्न हुआ है। ये प्रशिक्षक जिलों और प्रखंड स्तर पर अधिकारियों और कर्मचारियों को सही प्रक्रिया के बारे में मार्गदर्शन देंगे, ताकि मतदाता सूची पुनरीक्षण का कार्य सुचारू रूप से पूरा हो सके।
राजनीतिक महत्व और पारदर्शिता का सवाल
बिहार में आगामी चुनाव को देखते हुए मतदाता सूची का शुद्धिकरण बेहद अहम माना जा रहा है। सीमांचल और सीमावर्ती जिलों में फर्जी और दोहरे नाम जुड़ने की शिकायतें लंबे समय से आ रही थीं। इस कार्रवाई के बाद आयोग ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि अब मतदाता सूची में किसी भी तरह की गड़बड़ी बर्दाश्त नहीं होगी। बिहार में 3 लाख से अधिक मतदाताओं को जारी नोटिस एक बड़ी कार्रवाई है, जिसका सीधा असर चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर पड़ेगा। जिन लोगों के नाम फर्जी पाए जाएंगे, उन्हें सूची से हटा दिया जाएगा, जबकि वास्तविक भारतीय नागरिकों को राहत देने के लिए निवास प्रमाण-पत्र की व्यवस्था की गई है। यह कदम न केवल मतदाता सूची को साफ-सुथरा बनाएगा बल्कि चुनाव में फर्जी वोटिंग की संभावना को भी काफी हद तक कम करेगा। अब देखना होगा कि नोटिस पाने वाले कितने लोग समय पर दस्तावेज प्रस्तुत कर पाते हैं और कितनों के नाम सूची से काटे जाते हैं।
