September 17, 2025

सुप्रीम कोर्ट में विशेष मतदाता पुनरीक्षण प्रक्रिया के खिलाफ जनहित याचिका दायर

नई दिल्ली/पटना, (अजीत)। बिहार में निर्वाचन आयोग द्वारा शुरू की गई विशेष सघन मतदाता पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक नई बहस छिड़ गई है। बिहार के दो सामाजिक कार्यकर्ताओं – अरशद अजमल और रूपेश कुमार (संगठन: लोक परिषद) ने इस प्रक्रिया को संविधानविरुद्ध बताते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है। यह जनहित याचिका वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर की पैरवी में दाखिल की गई है, जिसमें निर्वाचन आयोग के 24 जून 2025 के आदेश को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि विशेष सघन पुनरीक्षण प्रक्रिया स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करती है। उनके अनुसार इस प्रक्रिया के तहत मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए ऐसे दस्तावेजों की मांग की जा रही है, जो समाज के हाशिए पर खड़े वर्गों के लिए न केवल प्राप्त करना कठिन है, बल्कि यह पूरी प्रक्रिया उनके संवैधानिक मताधिकार को बाधित करती है। याचिका में विशेष रूप से यह आरोप लगाया गया है कि चुनाव आयोग द्वारा मांगे गए दस्तावेज – जैसे जन्म प्रमाण पत्र, निवास प्रमाणपत्र और नागरिकता से संबंधित प्रमाण – आम नागरिकों विशेषकर गरीबों, महिलाओं, प्रवासी मजदूरों, अनुसूचित जाति-जनजातियों और ग्रामीण क्षेत्रों के निवासियों के लिए उपलब्ध कराना एक बेहद जटिल और बोझिल कार्य है। इससे न केवल उन्हें मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने में कठिनाई हो रही है, बल्कि बड़ी संख्या में योग्य नागरिकों का नाम सूची से वंचित रह जाने का खतरा भी बढ़ गया है।याचिकाकर्ताओं ने अदालत से आग्रह किया है कि वह इस विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया की संवैधानिक वैधता की समीक्षा करे और जब तक इस पर स्पष्ट दिशा-निर्देश न जारी किए जाएं, तब तक इस प्रक्रिया को स्थगित किया जाए। साथ ही, 24 जून 2025 को जारी आदेश को असंवैधानिक घोषित कर रद्द करने की मांग भी की गई है। गौरतलब है कि भारत निर्वाचन आयोग ने 24 जून को बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण की घोषणा की थी। इसका उद्देश्य यह था कि आगामी चुनावों से पहले मतदाता सूची को अद्यतन किया जा सके और नये योग्य मतदाताओं को सूची में जोड़ा जा सके। लेकिन अब इस प्रक्रिया को लेकर कानूनी और सामाजिक विवाद गहराने लगे हैं। इस याचिका से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सुप्रीम कोर्ट इस प्रक्रिया पर रोक लगाता है या इसे संशोधित करने का आदेश देता है, तो यह देशभर में मतदाता पहचान और पंजीकरण की प्रकिया को लेकर एक मिसाल बन सकता है। फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस याचिका पर सुनवाई की तिथि तय की जानी बाकी है, लेकिन यह मामला चुनाव सुधारों, नागरिक अधिकारों और लोकतांत्रिक भागीदारी के सवालों को लेकर एक नई बहस की नींव रखता है।

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