November 18, 2025

बिहार वोटर लिस्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका मंजूर, 10 जुलाई को सुनवाई करेगी शीर्ष अदालत

पटना। बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी हलचल तेज है और इसी बीच मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। इस विवाद ने अब सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा दिया है। राज्यसभा सांसद मनोज झा समेत कई नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस पुनरीक्षण प्रक्रिया को असंवैधानिक और राजनीतिक रूप से प्रेरित बताया है।
याचिका में क्या कहा गया
याचिकाकर्ताओं का मुख्य तर्क है कि निर्वाचन आयोग द्वारा 24 जून को जारी किए गए निर्देशों के माध्यम से मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर हेरफेर की जा सकती है। उनका दावा है कि यह प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है और इसका उद्देश्य कुछ वर्गों के मतदाताओं को सूची से हटाना हो सकता है। इससे आम मतदाता का लोकतांत्रिक अधिकार प्रभावित हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ—न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची—ने याचिकाओं को स्वीकार कर लिया है और इस पर 10 जुलाई को सुनवाई की तारीख तय की है। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कोर्ट से मांग की कि चुनाव आयोग को तत्काल नोटिस भेजा जाए और पुनरीक्षण प्रक्रिया पर रोक लगाई जाए। हालांकि, अदालत ने फिलहाल कोई अंतरिम आदेश नहीं दिया है, लेकिन यह स्पष्ट कर दिया कि आयोग के निर्देशों की वैधता की जांच की जाएगी।
निर्वाचन आयोग का पक्ष
दूसरी ओर, निर्वाचन आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा है और इसका उद्देश्य मतदाता सूची को अद्यतन व त्रुटिरहित बनाना है। आयोग ने इसे नियमित प्रक्रिया बताया है जो हर चुनाव से पहले की जाती है। हालांकि, विपक्षी नेताओं को आशंका है कि इस प्रक्रिया की आड़ में बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम हटाए जा सकते हैं, जिससे चुनाव परिणामों पर असर पड़ सकता है।
राजनीतिक रंग लेता मामला
यह मामला अब पूरी तरह से राजनीतिक रंग ले चुका है। विपक्ष का मानना है कि मतदाता सूची में छेड़छाड़ कर चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश हो रही है। दूसरी ओर, सत्ता पक्ष इसे विपक्ष की ओछी राजनीति करार दे रहा है। दोनों ही पक्ष इस मुद्दे को लोकतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की गरिमा से जोड़कर देख रहे हैं।
लोकतांत्रिक अधिकारों की परीक्षा
इस याचिका ने एक बार फिर लोकतांत्रिक अधिकारों की परीक्षा को सामने ला दिया है। क्या मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण पारदर्शिता के साथ किया जा रहा है? क्या यह किसी खास उद्देश्य की पूर्ति के लिए हो रहा है? इन सवालों का जवाब अब सुप्रीम कोर्ट से मिलने की उम्मीद है।
10 जुलाई पर टिकी निगाहें
बिहार की जनता, राजनीतिक दलों और कानूनी विशेषज्ञों की निगाहें अब 10 जुलाई को होने वाली सुनवाई पर टिकी हैं। इस दिन यह स्पष्ट हो जाएगा कि मतदाता सूची में संशोधन की यह प्रक्रिया जारी रहेगी या इस पर कोर्ट कोई रोक लगाएगा। बिहार जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील राज्य में मतदाता सूची से जुड़ा कोई भी निर्णय व्यापक असर डाल सकता है। ऐसे में यह जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट निष्पक्ष और लोकतांत्रिक सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए इस मामले में न्यायपूर्ण निर्णय ले, ताकि मतदाता का अधिकार सुरक्षित रह सके और चुनाव प्रक्रिया पर आम जनता का विश्वास बना रहे।

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