November 21, 2025

फेफड़े की बीमारियों का प्रतिशत पटना में काफी बढ़ी, इनहेलर्स हैं रामबाण

पटना। बेरोक जिंदगी अभियान के दूसरे चैप्टर ने मल्टी मीडिया जागरूकता अभियान ‘अस्थमा के लिए इनहेलर्स हैं सही’ को लांच किया। यह नया अभियान अस्थमा के विषय में जागरूकता और शिक्षा पर फोकस करेगा और साथ ही इसमें इन्हेलर्स के साथ चिकित्सा और मरीज को लगातार इस बात के लिए प्रेरणा भी दी जाएगी कि वह अवरोध रहित जीवन जिएं। इससे अभियान के दौरान अभिभावकों और फिजिशियन के बीच अधिक संवाद करने में मदद मिलेगी और मुख्य रूप से यह बताया जाएगा कि इनहेलर्स बच्चों के लिए उपयुक्त हैं और सभी स्तरों की गंभीरता के लिए इनहेलर्स एडिक्टिव नहीं हैं और ओरल सोलूशन्स की तुलना में इससे अच्छे परिणाम मिलते हैं।
इस मौके पर डॉ. सुधीर कुमार, डीएम पल्मोनोलॉजिस्ट और संस्थापक, रामकृष्ण चेस्ट सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल ने कहा कि इनहेलर्स बहुत महत्वरपूर्ण है और इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 16% माइल्ड अस्थमा मरीजों को जान का खतरा है। 30-37% व्यस्क अस्थमा के मरीज गंभीर अस्थमा के शिकार हैं जिन्हें मामूली अस्थमा था और अस्थमा के कारण जिन 15-20: मरीजों की मौत हुई, उन्हें माइल्ड अस्थमा था। यह अपने आप में एक गंभीर विषय है, जिसको अनदेखा नहीं किया जा सकता है।
वहीं डॉ. मनीष कुमार जैन, सहायक प्रोफेसर, बाल रोग विशेषज्ञ, इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट आॅफ मेडिकल साइंसेज ने कहा कि पटना में अस्थमा के प्रचलन का सबसे बड़ा कारण वायु प्रदुषण के अलावा बढ़े हुए एयर पार्टिकुलेट तत्व, पॉलेन, स्मोकिंग, खाने की आदतें, पोषक तत्वों की कमी, आनुवंशिकी प्रवृत्ति और बड़े पैमाने पर अभिभावकों की लापरवाही है। फेफड़े की बीमारियों का प्रतिशत और संख्या विशेषकर पटना में काफी बढ़ी है। अस्थमा के तेजी से बढ़ने के बावजूद भारत में इसके नियंत्रण की प्रक्रिया सभी बीमारियों से खराब है। लोगों को यह तथ्य नहीं छिपाना चाहिए कि उन्हें अस्थमा है और यह बहुत जरूरी है जितना जल्दी हो सके इसका सही दवाओं जैसे इनहेलेशन थेरेपी से इलाज किया जाए। अस्थमा को जल्दी पहचान कर और सही उपचार योजना तैयार करके उस पर आसानी से नियंत्रण किया जा सकता है।

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