जदयू के दो नेताओं ने फिर छोड़ी पार्टी, वक्फ कानून के विरोध में दिया इस्तीफा
पटना। बिहार की सियासत में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) को उस समय बड़ा झटका लगा, जब पार्टी के दो नेताओं—फिरोज खान और चांद खान—ने वक्फ कानून के विरोध में पार्टी से इस्तीफा दे दिया। यह घटना नवादा जिले में हुई, जहां वक्फ बोर्ड से जुड़ा नया कानून मुस्लिम समुदाय के बीच गहरी नाराजगी का कारण बन रहा है। इस कानून को लेकर यह धारणा बन गई है कि यह समुदाय के हितों के खिलाफ है और वक्फ संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण को बढ़ावा देता है। इन इस्तीफों से पार्टी को जहां संगठनात्मक नुकसान हुआ, वहीं मुस्लिम वोट बैंक पर भी संकट मंडराने लगा। लेकिन जदयू ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए तुरंत कदम उठाए। पार्टी के वरिष्ठ नेता और प्रदेश सचिव सैयद निजाम इकबाल को नवादा भेजा गया, जहां उन्होंने मुस्लिम समुदाय के नेताओं और आम लोगों से मुलाकात की। उनका उद्देश्य साफ था—लोगों की गलतफहमियों को दूर करना और पार्टी की मंशा स्पष्ट करना। सैयद निजाम इकबाल ने यह बताया कि नया वक्फ कानून किसी धर्म या समुदाय के खिलाफ नहीं है। बल्कि इसका उद्देश्य वक्फ संपत्तियों पर हो रहे अवैध कब्जों को रोकना और प्रबंधन में पारदर्शिता लाना है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हमेशा अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा की है, चाहे वह कब्रिस्तानों की घेराबंदी हो, मदरसों को आर्थिक सहायता देना हो, या फिर शिक्षा व बुनियादी सुविधाओं को बेहतर बनाना हो। सैयद निजाम ने यह भी स्पष्ट किया कि जिन नेताओं ने पार्टी छोड़ी, वे संगठन के सक्रिय और मूल धारा के सदस्य नहीं थे। उनका विरोध व्यक्तिगत कारणों या गलत जानकारी पर आधारित हो सकता है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि पार्टी सभी समुदायों के बीच समरसता बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। हालांकि, यह देखना बाकी है कि जदयू की यह “डैमेज कंट्रोल” रणनीति कितनी प्रभावी सिद्ध होती है। मुस्लिम समुदाय का भरोसा फिर से जीतना पार्टी के लिए एक चुनौती होगी, और इसके लिए केवल बयानबाजी से काम नहीं चलेगा—उन्हें जमीनी स्तर पर ठोस पहल करनी होगी। वहीं, विपक्षी दल इस मौके को भुनाने का कोई मौका नहीं छोड़ेंगे। वे इसे अल्पसंख्यक विरोधी कदम बताकर जदयू को घेरने की कोशिश करेंगे। इसलिए आने वाले समय में नवादा समेत राज्य के अन्य मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में जदयू का प्रदर्शन इस बात पर निर्भर करेगा कि वह समुदाय की भावनाओं को कितनी संवेदनशीलता से समझती और संबोधित करती है। कुल मिलाकर, जदयू के लिए यह एक सियासी परीक्षा की घड़ी है, जहां संवाद, भरोसा और सही नीति तीनों की आवश्यकता है।


