विष्णुपुरा की विरासत: होली और चैत गायन की अनूठी परंपरा, पीढ़ियों से संजोई गई लोकसंस्कृति
बिहटा, (मोनु कुमार मिश्रा)। बिहटा प्रखंड के विष्णुपुरा गांव में पारंपरिक उत्सवों को आज भी पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यहां की सबसे अनूठी पहचान होली और चैत माह में गाए जाने वाले लोकगीत हैं, जिन्हें गांव के वृद्ध, युवा और बच्चे मिलकर पूरे जोश से प्रस्तुत करते हैं। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है, जिसे गांव के लोग बड़े जतन से संजोए हुए हैं। गांव के समाजसेवी रिंकू सिंह, मुखिया नन्हक सिंह, सरपंच रामकुमार सिंह, अजीत सिंह, धीरज सिंह, मंटू सिंह और अंकित अरमान बताते हैं कि यह परंपरा गांव की धरोहर है, जिसे संरक्षित रखना उनकी जिम्मेदारी है। होली के समय गांव के हर घर के दरवाजे पर एकत्र होकर लोग पारंपरिक गीत गाते हैं। इसी तरह, चैत माह में भी पूरे गांव के लोग मिलकर विशेष उत्सव का आयोजन करते हैं, जिसमें भजन, कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रम शामिल होते हैं। ये आयोजन केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि समाज में एकता, प्रेम और भाईचारे को भी बढ़ावा देते हैं।
चैत गीतों की गूंज में झूमा बिष्णुरा
यह परंपरा फिर जीवंत नजर आई, जब सैकड़ों ग्रामीणों ने मिलकर पारंपरिक चैत गीत गाए। इन गीतों की गूंज से पूरा गांव भक्तिमय और सांस्कृतिक रंग में सराबोर हो गया। वयोवृद्ध से लेकर युवा और बच्चे तक, सभी इस आयोजन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। ढोल, मृदंग, झाल और अन्य पारंपरिक वाद्ययंत्रों की ध्वनि के साथ इन गीतों ने माहौल को उल्लास से भर दिया। गांव के बुजुर्गों का मानना है कि यह परंपरा केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों को अपनी संस्कृति और मूल्यों से जोड़ने का भी एक महत्वपूर्ण माध्यम है। आधुनिकता के इस दौर में, जब पारंपरिक लोकसंस्कृति धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है, बिष्णुरा के लोग अपने पूर्वजों की इस अनमोल धरोहर को पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ जीवंत रखे हुए हैं। उनके निरंतर प्रयासों से यह परंपरा आने वाले वर्षों तक बनी रहेगी और गांव की पहचान को और मजबूत करेगी।


