उमर अब्दुल्ला ने जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में ली शपथ, राहुल गांधी समेत इंडिया गठबंधन के कई नेता रहे मौजूद
श्रीनगर। नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, जिससे वह केंद्र शासित प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बन गए। इस ऐतिहासिक समारोह का आयोजन श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस सेंटर में हुआ, जहां भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टियों के नेता और अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तित्व मौजूद थे। उमर अब्दुल्ला के साथ 8 मंत्रियों ने भी शपथ ली, जबकि कांग्रेस और सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय विधायकों ने मंत्री पद ग्रहण नहीं किया। इस शपथ ग्रहण समारोह में इंडिया गठबंधन के कई बड़े नेता उमर अब्दुल्ला की इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी में उनके साथ खड़े नजर आए। कांग्रेस नेता राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, उमर अब्दुल्ला की शपथ ग्रहण के दौरान इंडिया गठबंधन के कई नेता मौजूद रहे जिनमें राहुल गांधी प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ-साथ आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह भी मौजूद रहे। हालाकि शपथ ग्रहण समारोह पार्टी प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, उद्धव ठाकरे, शरद पवार, लालू प्रसाद यादव और अरविंद केजरीवाल समेत विपक्षी नेताओं को न्योता दिया गया था।
राष्ट्रपति शासन की समाप्ति और नई शुरुआत
उमर अब्दुल्ला की सरकार के गठन से ठीक पहले, 13 अक्टूबर की देर रात, जम्मू-कश्मीर से राष्ट्रपति शासन हटाने का आदेश जारी किया गया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नए मुख्यमंत्री की शपथ ग्रहण से पहले यह आदेश जारी किया। राष्ट्रपति शासन हटाने के बाद, जम्मू-कश्मीर में एक बार फिर से लोकतांत्रिक प्रक्रिया की वापसी हुई, जो 7 सालों से रुकी हुई थी। यह उल्लेखनीय है कि राज्य में पिछले विधानसभा चुनाव 2014 में हुए थे, जिसके बाद भाजपा और पीडीपी के गठबंधन से सरकार बनी थी। 2018 में भाजपा ने महबूबा मुफ्ती सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिसके परिणामस्वरूप राज्य में 6 महीने तक राज्यपाल शासन और फिर राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। इसके बाद 5 अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त कर राज्य के विशेष दर्जे को समाप्त कर दिया और इसे केंद्र शासित प्रदेश के रूप में पुनर्गठित कर दिया गया।
उमर अब्दुल्ला का राजनीतिक सफर
उमर अब्दुल्ला का मुख्यमंत्री पद की शपथ लेना, जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक बड़ी वापसी है। उनका राजनीतिक सफर काफी उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। उमर अब्दुल्ला इससे पहले 2009 से 2015 तक जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उनका परिवार जम्मू-कश्मीर की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है, जिसमें उनके दादा शेख अब्दुल्ला और पिता फारूक अब्दुल्ला ने भी राज्य का नेतृत्व किया है। इस बार उमर अब्दुल्ला की सरकार के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं। जम्मू-कश्मीर के लोगों की उम्मीदें उनसे जुड़ी हैं, खासकर ऐसे समय में जब राज्य कई वर्षों से राजनीतिक अस्थिरता और सुरक्षा संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहा है।
कांग्रेस की भूमिका और मंत्री पद पर असमंजस
हालांकि कांग्रेस ने नई सरकार को समर्थन दिया है, लेकिन उसके मंत्रियों के पद को लेकर अभी भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में शपथ लेने वाले मंत्रियों की सूची में कांग्रेस के नेताओं का नाम शामिल नहीं है। इस बात की चर्चा है कि कांग्रेस और उमर अब्दुल्ला के बीच अभी तक मंत्री पद को लेकर अंतिम सहमति नहीं बनी है, जिसके कारण कांग्रेस के मंत्री शपथ ग्रहण नहीं कर सके। यह भी कहा जा रहा है कि उमर अब्दुल्ला की सरकार में सात मंत्रियों को शपथ दिलाई जाएगी, लेकिन कांग्रेस की भूमिका इस मामले में अभी तक साफ नहीं हो पाई है।
विपक्षी एकता का प्रतीक: इंडिया गठबंधन की उपस्थिति
उमर अब्दुल्ला के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्षी नेताओं की व्यापक उपस्थिति ने यह साफ कर दिया कि इंडिया गठबंधन की एकजुटता का प्रतीक यह सरकार होगी। विपक्ष के लिए जम्मू-कश्मीर एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है, और उमर अब्दुल्ला की वापसी से विपक्ष को एक नैतिक समर्थन भी मिला है। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, जैसे प्रमुख नेताओं की उपस्थिति ने इस कार्यक्रम को राजनीतिक रूप से और भी महत्वपूर्ण बना दिया। उमर अब्दुल्ला की सरकार के सामने कई चुनौतियां हैं। अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक परिदृश्य बदल चुका है, और अब इसे फिर से स्थिरता प्रदान करने के लिए नई नीतियों और निर्णयों की आवश्यकता होगी। उमर अब्दुल्ला को न सिर्फ राज्य की आंतरिक सुरक्षा, विकास और बेरोजगारी जैसी समस्याओं का सामना करना होगा, बल्कि उन्हें केंद्र के साथ संबंधों को भी संतुलित करना होगा। इस शपथ ग्रहण के साथ, जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हुआ है। जनता की उम्मीदें और विपक्षी गठबंधन का समर्थन उमर अब्दुल्ला के कंधों पर एक बड़ी जिम्मेदारी डालते हैं। अब देखना यह है कि वह इन उम्मीदों पर कितना खरा उतरते हैं और राज्य को किस दिशा में ले जाते हैं।


