बेटी बेचवा में दिखा बाल विवाह का परिणाम और समाज को संदेश
पटना। बेटी बेचवा नाटक में बाल विवाह का परिणाम भी दिखा और समाज के लोगों को एक संदेश भी दिया गया कि बेटी अभिमान है परिवार की सम्मान है, कोई बाजार का सामान नहीं, जिसे जब चाहे, जहां चाहे, जैसे चाहे बेचने लगें। चर्चित रंगमंच संस्था एकजुट खगौल द्रारा आर्यभट्ट सभागार खगौल में कलाकारों ने भिखारी ठाकुर लिखित नाटक बेटी बेचवा का मंचन राजेश कुमार शर्मा के निदेशन सह निदेशक अमन कुमार ने किया। इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रमोद कुमार त्रिपाठी, पूर्व उपाध्यक्ष, बिहार संगीत नाटक अकादमी, वरिष्ठ अतिथि सत्यकाम सहाय, निदेशक आर्यभट्ट निकेतन, अतिथि श्वेता श्रीवास्तव, वरिष्ठ महिला रंगकर्मी और संगीता सिन्हा समाजसेवी थे।

बेटी बेचवा नाटक एक ग्रामीण परिवेश की कहानी है। जहां चटक और लोहा दोनों पति-पत्नी है, जिसकी एक बेटी है। जो पैसों की खातिर अपनी बेटी की शादी अधिक उम्र के आदमी के साथ कर देता है। मां-बाप के जिद में आकर लड़की शादी तो कर लेती है। मगर अपने ससुराल जाकर खुश नहीं रहतीं है। वहां उस पर बहुत अत्याचार किया जाता है। जो समाज के भयावह चेहरा एवं इंसानियत को शर्मसार कर देती है। ससुराल के जुल्मों से परेशान चटक की बेटी भागकर अपने गांव चली आती है। ऐसे में उसके पीछे-पीछे ससुराल वाले भी चले आते हैं और दोनों पक्षों में लड़ाई शुरू हो जाती है फिर इस मसले को सुलझाने के लिए पंचायत होती है और पंच कहते हैं कि ‘आदमी थे चार पैसों के तरकारी कितने जाला तेकरों में ओकरा के समुझावें के परेला कि चतुर आदमी से किन बहियान त ठगा जाला और बेटी के विवाह बिना सोचते वियारले क देल’ और अंत में बेटी को ससुराल जाना पड़ा है। जाते-जाते बेटी कहती है कि मर जाईब लेकिन कबहु न आईब और इसी अंत के साथ कहानी समाज को आईना दिखाती है।
मंच संचालन करते हुए जय प्रकाश मिश्रा ने कहा कि भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले महान लोक नाटककार भिखारी ठाकुर की यह कालजयी रचना है। मुख्य कलाकारों में पंच-राजेश शर्मा, चटक-सोनू कुमार, दुल्हन के पिता-रोहन राज, लोहा-गोतमी शर्मा, दूल्हा-सुन्दर मोची, बेटी-काजल कुमारी, पंडित-दीनानाथ गोस्वामी, पड़ोस-रेखा पांडेय सखी-पिंकी साह आदि शामिल थे।


