नहाय खाय से पारण तक बरसती है छठी मैया की कृपा, नहाय-खाय के साथ चार दिवसीय छठ महापर्व बुधवार से आरंभ

खरना गुरूवार को, द्विपुष्कर योग में 21 को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य के बाद समापन


पटना। लोक आस्था के महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान कार्तिक शुक्ल चतुर्थी बुधवार को नहाय-खाय से शुरू हो रहा है। छठ पर्व मुख्य रूप से प्रत्यक्ष देव भगवान भाष्कर की उपासना का पर्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ सूर्यदेव की बहन हैं। मान्यता है कि छठ पर्व में सूर्योपासना करने से छठ माता प्रसन्न होती है तथा परिवार में सुख, शांति व धन-धान्य से परिपूर्ण करती हैं। भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के सदस्य ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा शास्त्री ने कहा कि कल रवियोग में नहाय-खाय से चार दिवसीय छठ महापर्व शुरू हो रहा। इस महापर्व का समापन अति शुभाशुभ द्विपुष्कर योग में होगा। धार्मिक मान्यता है कि इस तिथि को गंगा स्नान मात्र से शरीर के सारे कष्ट विशेषकर त्वचा रोग का नाश हो जाता है।


छठ महापर्व पर ग्रह-गोचरों का शुभ संयोग
पंडित झा के मुताबिक, कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को रवियोग में नहाय खाय के साथ छठ महापर्व शुरू हो रहा है। इस बार छठ महापर्व पर ग्रह-गोचरों का शुभ संयोग बन रहा है। यह पर्व पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए व्रती पूरे विधि-विधान से छठ का व्रत करेंगी। इस पर्व को करने से रोग, शोक, भय आदि से मुक्ति मिलती है। छठ व्रत करने की परंपरा ऋग्वैदिक काल से ही चला आ रहा है। वहीं शुक्रवार 20 नवंबर को सायंकालीन अर्घ्य पर सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग बन रहा है, जबकि 21 नवंबर शनिवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य पर सर्वार्थ सिद्धि योग के साथ द्विपुष्कर योग का शुभ संयोग बन रहा है।
नहाय खाय से पारण तक बरसती है छठी मैया की कृपा
ज्योतिषी राकेश झा ने बताया कि छठ महापर्व खासकर शरीर, मन तथा आत्मा की शुद्धि का पर्व है। वैदिक मान्यताओं के अनुसार नहाय-खाय से छठ के पारण सप्तमी तिथि तक उन भक्तों पर षष्ठी माता की कृपा बरसती है, जो श्रद्धापूर्वक व्रत-उपासना करते हैं। प्रत्यक्ष देवता सूर्य को पीतल या तांबे के पात्र से अर्घ्य देने से आरोग्यता का वरदान मिलता है। पंडित झा ने कहा कि सूर्य को आरोग्य का देवता माना गया है। सूर्य की किरणों में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता है।
नहाय-खाय एवं खरना के प्रसाद से दूर होते कष्ट
छठ महापर्व के प्रथम दिन नहाय-खाय में लौकी की सब्जी, अरवा चावल, चने की दाल, आंवला की चासनी के सेवन का खास महत्व है। वैदिक मान्यता है कि इससे पुत्र की प्राप्ति होती है। वहीं वैज्ञानिक मान्यता है कि गर्भाशय मजबूत होता है। खरना के प्रसाद में ईख के कच्चे रस, गुड़ के सेवन से त्वचा रोग, आंख की पीड़ा समाप्त हो जाते हैं। वहीं इसके प्रसाद से तेजस्विता, निरोगिता व बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होती है।
खरना पूजा व अर्घ्य मुहूर्त
खरना का पूजा – संध्या 05: 22 बजे 07:26 बजे तक
अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने का समय – शाम 05:21 बजे तक
प्रात: कालीन सूर्य को अर्घ्य – सुबह 06:39 बजे के बाद दिया जाएगा

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