महापर्व छठ : खरना के साथ व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू, सायंकालीन अर्घ्य शुक्रवार को

त्रिपुष्कर योग में सायंकालीन अर्घ्य आज, 21 को उगते सूर्य को अर्घ्य


पटना। लोक आस्था के महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान के दूसरे दिन गुरुवार को कार्तिक शुक्ल पंचमी लोहंडा या खरना में दिनभर उपवास के बाद व्रतियों ने सायंकाल में भगवान भाष्कर की पूजा कर निष्ठा व पवित्रता से निर्मित प्रसाद ग्रहण कर 36 घंटे का निर्जला उपवास का संकल्प लिया। यह पर्व पारिवारिक सुख समृद्धि और मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए व्रती पूरे विधि-विधान से करती हैं। छठ व्रत करने की परंपरा ऋग्वैदिक काल से ही चली आ रही है।
ग्रह-गोचरों के शुभ संयोग में सूर्यदेव को अर्घ्य
ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा शास्त्री के मुताबिक, इस बार छठ महापर्व पर ग्रह-गोचरों का शुभ संयोग बन रहा है। शुक्रवार को सायंकालीन अर्घ्य पर सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग बन रहा है। वहीं 21 नवंबर सप्तमी दिन शनिवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य पर सर्वार्थ सिद्धि योग के साथ द्विपुष्कर योग का शुभ संयोग रहेगा। विष्णु पुराण के अनुसार, तिथियों के बंटवारे के समय सूर्यदेव को सप्तमी तिथि प्राप्त हुई थी, इसीलिए उन्हें इस तिथि का स्वामी भी कहा जाता है। जागृत देव भाष्कर भगवान को सप्तमी तिथि को प्रात:कालीन अर्घ्य देकर महापर्व का समापन किया जाता है।
सायंकालीन अर्घ्य से शांति-उन्नति
ज्योतिषी राकेश झा के अनुसार, शाम को भगवान भाष्कर को जल से अर्घ्य देने से मानसिक शांति और जीवन में उन्नति होती है। लाल चंदन, फूल के साथ अर्घ्य से यश की प्राप्ति होती है। कलयुग के प्रत्यक्ष देवता सूर्य को जल में गुड़ मिलाकर अर्घ्य देने से पुत्र और सौभाग्य का वरदान मिलता है। वहीं प्रात:काल में जल में रक्त चंदन, लाल फूल, इत्र के साथ ताम्रपात्र में आरोग्य के देवता सूर्य को अर्घ्य देने से आयु, विद्या, यश और बल की प्राप्ति होती है। स्थिर एवं महालक्ष्मी की प्राप्ति के लिए सूर्य को दूध का अर्घ्य देना चाहिए। भगवान भाष्कर को अर्घ्य देने से कई जन्मों के पाप नष्ट होते हैं।
सूर्य की पत्नी उषा व प्रत्युषा की होगी पूजा
पंडित झा ने शास्त्रों के हवाले से कहा कि देवताओ में सूर्य ऐसे देवता हैं जिनको प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। सूर्य की शक्ति का मुख्य स्त्रोत उनकी पत्नी उषा और प्रत्युषा है। छठ में सूर्य के साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। पहले सायंकालीन अर्घ्य में सूर्य की अंतिम किरण प्रत्युषा और फिर उदीयमान सूर्य की पहली किरण उषा को अर्घ्य देकर नमन किया जाता है।
भगवान सूर्य की मानस बहन है षष्ठी देवी
पंडित झा ने अर्थवेद के हवाले से बताया कि षष्ठी देवी भगवान सूर्य की मानस बहन हैं। यही कारण है कि भगवान भाष्कर के साथ उनकी बहन षष्ठी देवी की पूजा होती है। प्रकृति के षष्टम अंश से षष्ठी माता उत्पन्न हुई हैं। उन्हें बालकों की रक्षा करने वाले भगवान विष्णु द्वारा रची माया भी माना जाता है। बालक के जन्म के छठे दिन भी षष्ठी मईया की पूजा की जाती है। ताकि बच्चे दीर्घायु और निरोग रहे। एक अन्य आख्यान के अनुसार कार्तिकेय की शक्ति हैं षष्ठी देवी। षष्ठी देवी को देवसेना भी कहा गया है।
आरोग्यता के लिए उत्तम है छठ व्रत
सूर्य षष्ठी का व्रत आरोग्यता, सौभाग्य व संतान के लिए किया जाता है। स्कंद पुराण के मुताबिक राजा प्रियव्रत ने भी यह व्रत रखा था। उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। भगवान भास्कर से इस रोग की मुक्ति के लिए उन्होंने छठ व्रत किया था। स्कंद पुराण में प्रतिहार षष्ठी के तौर पर इस व्रत की चर्चा है। वर्षकृत्यम में भी छठ की चर्चा है।
छठ महापर्व के सामग्री का विशेष महत्व
सूप, डाला – अर्घ्य में नए बांस से बनी सूप व डाला का इस्तेमाल किया जाता है। सूप से वंश वृद्धि तथा उनकी रक्षा होती है।
ईख – ईख आरोग्यता का घोतक है।
ठेकुआ – ठेकुआ समृद्धि का घोतक है।
ऋतूफल – ऋतुफल के फल से विशिष्ट फल की प्राप्ति होती है।
अर्घ्य पात्र
सूर्य उपासना के महापर्व में भगवान भाष्कर को पीतल के पात्र से दूध तथा तांबे के पात्र से जल से अर्घ्य देने से अभिष्ट फल की प्राप्ति होती है।
नोट- चांदी, स्टील, शीशा व प्लास्टिक के पात्र से सूर्य को अर्घ्य नहीं देना चाहिए।

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