पटना में भयंकर हुई गंगा नदी, घरों में घुसा पानी, लोगों ने प्रशासन से लगाई गुहार

पटना। पटना शहर की चमकदार छवि और जेपी गंगा पथ की रफ्तार से दौड़ती गाड़ियां एक अलग ही दुनिया का दृश्य पेश करती हैं। पर उसी आधुनिकता और विकास के ठीक नीचे, गंगा नदी की बाढ़ हर साल सैकड़ों लोगों के जीवन को तहस-नहस कर जाती है। गंगा किनारे बसे बिंदटोली की स्थिति ऐसी है जहां हर साल पानी घरों में घुस जाता है, लोग बेघर हो जाते हैं, जानवरों को सुरक्षित रखने की जगह नहीं मिलती और जीवन एक संघर्ष बनकर रह जाता है।
बिंदटोली की पीड़ा
बिंदटोली के लोग हर साल यही त्रासदी झेलते हैं। इस साल भी वही कहानी दोहराई गई। बाढ़ का पानी घरों में घुस चुका है। खाना बनाने की कोई जगह नहीं बची, जानवरों को रखने का स्थान नहीं है। लोग मजबूरी में अपने मवेशियों को लेकर जेपी गंगा पथ पर जाते हैं, लेकिन वहां से भी प्रशासन उन्हें भगा देता है। एक स्थानीय निवासी विजय ने बताया कि उनके आंगन में घुटनों तक पानी भर गया है और केवल उनका कमरा ही बचा है, वह भी मिट्टी डालकर ऊंचा किया गया था। उनके चार छोटे बच्चे हैं, जिन्हें खाना खिलाना भी मुश्किल हो गया है। पानी में चलकर राशन लाना पड़ता है या फिर नाव की सहायता लेनी पड़ती है।
जीवन संघर्ष में बदल गया है
बिंदटोली के ज्यादातर घर पानी में डूब गए हैं। लोग मजबूरी में गंगा पथ या सड़क के किनारे झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं, लेकिन वहां भी प्रशासन उन्हें टिकने नहीं देता। महिलाएं मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाती हैं, लेकिन पानी के कारण चूल्हा जलाना भी मुश्किल हो गया है। लकड़ियां भीग जाती हैं, गैस चूल्हा है नहीं और बच्चे भूखे रह जाते हैं। कई परिवारों के पास इतना भी संसाधन नहीं कि वे अपने मवेशियों को सुरक्षित स्थान पर ले जा सकें। सड़क किनारे गाय-भैंस को बांध कर किसी तरह उनकी देखभाल की जा रही है।
प्रशासन से कोई मदद नहीं
स्थानीय लोगों का आरोप है कि प्रशासन की ओर से कोई ठोस सहायता नहीं मिल रही है। पिछले साल सिर्फ चार दिन के लिए कुछ राहत सामग्री मिली थी, इस साल तो अब तक कोई देखने तक नहीं आया। न तो खाने का इंतजाम है, न ही रहने की कोई व्यवस्था। लोगों का कहना है कि जब वे बाढ़ से बचने के लिए फोरलेन पर रहने जाते हैं, तो पुलिस उन्हें वहां से भी भगा देती है। जिन जमीनों पर वे रहते थे, सरकार ने वहां से उन्हें हटा दिया और गंगा किनारे की जमीन दी, जहां हर साल बाढ़ की मार झेलनी पड़ती है।
संकट का समाधान कब?
बिंदटोली जैसे इलाके प्रशासन की नजरों से अक्सर ओझल रहते हैं। जब पानी आता है तो लोग अपने जान-माल को बचाने में जुट जाते हैं, लेकिन राहत और पुनर्वास की कोई स्थायी योजना नहीं बनती। गांव के लोग खुद ही मिलकर बाढ़ को रोकने के लिए बांध बनाते हैं, जो कभी भी टूट सकता है। लोगों का सवाल है कि जब सरकार सड़क, पुल और पार्क बना सकती है, तो हमारे जीवन को सुरक्षित करने के लिए ठोस कदम क्यों नहीं उठाती? बिंदटोली के लोग हर साल बाढ़ की पीड़ा झेलते हैं। यह एक दो दिन की परेशानी नहीं, बल्कि महीनों का संघर्ष होता है, जिसमें सरकार की ओर से न कोई स्थायी राहत मिलती है और न ही कोई भविष्य की योजना दिखाई देती है। पटना जैसे शहर के बीचों-बीच रहने वाले ये नागरिक सिर्फ गंगा के कहर के शिकार नहीं हैं, बल्कि प्रशासन की अनदेखी और संवेदनहीनता के भी शिकार हैं। जब तक इनके पुनर्वास और राहत की गंभीर योजनाएं नहीं बनेंगी, तब तक हर साल यह दर्द और यह संघर्ष दोहराया जाएगा।

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