October 28, 2025

भारतीय दिग्गज ऐड गुरु पीयूष पांडे का निधन, कई बेहतरीन काम किए, ‘अबकी बार मोदी सरकार’ का दिया था नारा

नई दिल्ली। भारतीय विज्ञापन जगत के सबसे चर्चित और प्रभावशाली हस्तियों में से एक पीयूष पांडे का शुक्रवार को निधन हो गया। उनके निधन की खबर ने पूरे देश को शोक में डाल दिया। 70 वर्षीय पीयूष पांडे ने लगभग चार दशकों तक भारतीय विज्ञापन जगत को नई दिशा दी। वे न केवल विज्ञापन जगत के “क्रिएटिव जीनियस” के रूप में जाने जाते थे, बल्कि उनकी बनाई लाइनों, गीतों और कहानियों ने भारत के आम लोगों के दिलों में जगह बनाई।
चार दशक लंबा विज्ञापन सफर
पीयूष पांडे ने अपने जीवन के करीब चालीस वर्ष प्रतिष्ठित विज्ञापन कंपनी ओगिल्वी इंडिया के साथ बिताए। यह कंपनी भारतीय विज्ञापन जगत में अपनी पहचान के लिए जानी जाती है, और इसके पीछे पीयूष पांडे की रचनात्मक सोच का बहुत बड़ा योगदान रहा। उन्होंने ऐसे विज्ञापन बनाए, जो न केवल उत्पादों को लोकप्रिय बनाते थे, बल्कि समाज के भावनात्मक ताने-बाने से जुड़ते भी थे। उनकी बनाई टैगलाइन “अबकी बार, मोदी सरकार” भारतीय राजनीति के इतिहास में सबसे प्रभावशाली चुनावी नारों में गिनी जाती है। यह नारा 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जीत का प्रतीक बन गया था और आज भी लोगों की जुबान पर है।
‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ – एकता की पहचान
पीयूष पांडे केवल विज्ञापन विशेषज्ञ नहीं थे, बल्कि एक संवेदनशील लेखक और गीतकार भी थे। दूरदर्शन के स्वर्णिम युग में प्रसारित गीत “मिले सुर मेरा तुम्हारा” उन्हीं की लेखनी से निकला था। इस गीत ने भारत की विविधता में एकता के संदेश को बड़े ही सुंदर और भावनात्मक रूप में प्रस्तुत किया। इस गीत ने भारतीयता की भावना को घर-घर तक पहुंचाया और पीयूष पांडे को एक सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में स्थापित कर दिया।
भारतीय ब्रांडों को नई पहचान दी
पीयूष पांडे ने कई लोकप्रिय ब्रांडों के लिए ऐसे विज्ञापन बनाए जो आज भी लोगों को याद हैं। फेविकोल के “फेविकोल का जोड़ है टूटेगा नहीं” जैसे विज्ञापन ने हास्य और सादगी के माध्यम से उत्पाद की गुणवत्ता को लोगों तक पहुंचाया। इसी तरह “शर्मा की दुल्हिन जो ब्याह के आई… संग टू सीटर सोफ़ा ले आई…” वाला फेविकोल विज्ञापन भारतीय परिवारों की भावनाओं और जीवनशैली से गहराई से जुड़ा हुआ था। कैडबरी के लिए बनाए गए “कुछ खास है” अभियान ने चॉकलेट को सिर्फ बच्चों का नहीं, बल्कि हर उम्र के लोगों का पसंदीदा बना दिया। वहीं एशियन पेंट्स के लिए उनका नारा “हर खुशी में रंग लाए” घर-घर की खुशियों का हिस्सा बन गया। इन अभियानों ने यह साबित कर दिया कि विज्ञापन केवल उत्पाद बेचने का जरिया नहीं, बल्कि संस्कृति और यादों का हिस्सा भी बन सकते हैं।
एक साधारण परिवार से असाधारण पहचान तक
पीयूष पांडे का जन्म 1955 में राजस्थान के जयपुर में हुआ था। उनके पिता बैंक में नौकरी करते थे। नौ भाई-बहनों वाले बड़े परिवार में पले-बढ़े पीयूष बचपन से ही रचनात्मक सोच रखते थे। युवावस्था में उन्होंने क्रिकेट भी खेला और फिर धीरे-धीरे विज्ञापन जगत की ओर कदम बढ़ाया। उनकी मेहनत, कल्पनाशीलता और जमीनी समझ ने उन्हें देश का सबसे सम्मानित ऐड गुरु बना दिया।
उनके निधन पर शोक की लहर
पीयूष पांडे के निधन के बाद विज्ञापन, फिल्म और राजनीति की दुनिया से अनेक श्रद्धांजलियां आईं। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने सोशल मीडिया पर लिखा कि वे “ऐडवर्टाइजिंग की दुनिया के महान हस्ताक्षर थे, जिन्होंने कहानी कहने के तरीके को बदल दिया।” उन्होंने कहा कि पांडे की सच्चाई, गर्मजोशी और हाज़िरजवाबी उन्हें दूसरों से अलग बनाती थी। व्यवसायी सोहेल सेठ ने अपने भावनात्मक संदेश में लिखा, “भारत ने सिर्फ़ एक विज्ञापन प्रतिभा नहीं, बल्कि एक सच्चे देशभक्त और अद्भुत इंसान को खो दिया है। अब स्वर्ग में ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ पर डांस होगा।” वहीं फिल्म निर्देशक हंसल मेहता ने भावुक होकर कहा, “फेविकोल का जोड़ टूट गया। आज एड वर्ल्ड ने अपना ग्लू खो दिया।”
विरासत जो हमेशा जीवित रहेगी
पीयूष पांडे ने भारतीय विज्ञापन को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई। उन्होंने साबित किया कि विज्ञापन केवल उपभोक्ताओं को आकर्षित करने की कला नहीं, बल्कि समाज को जोड़ने और भावनाओं को व्यक्त करने का माध्यम है। उनके बनाए विज्ञापन और गीत आज भी भारतीय संस्कृति का हिस्सा हैं। उनका जीवन रचनात्मकता, विनम्रता और प्रेरणा का प्रतीक था। उन्होंने भारतीय समाज को सिखाया कि अगर सोच में सच्चाई और भावना हो, तो एक साधारण संदेश भी लोगों के दिलों तक पहुंच सकता है। पीयूष पांडे के निधन के साथ भारतीय विज्ञापन जगत ने अपना सबसे उज्ज्वल सितारा खो दिया है, लेकिन उनकी रचनाएं और विचार आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे।

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