September 6, 2025

पटना में उर्दू-बांग्ला टीईटी अभ्यर्थियों ने जदयू कार्यालय का किया घेराव, किया जोरदार प्रदर्शन, जमकर किया हंगामा

  • हाथ में जहर की शीशी लेकर पहुंचे, कहा- 10 साल से रिजल्ट का इंतजार, फैसला नहीं हुआ तो जान दे देंगे

पटना। बुधवार को एक बार फिर उर्दू-बांग्ला टीईटी अभ्यर्थियों का गुस्सा फूट पड़ा। ये अभ्यर्थी बीते दस वर्षों से अपने रिजल्ट की प्रतीक्षा कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं मिला है। सरकार और शिक्षा विभाग की ओर से सिर्फ आश्वासन दिए जाते रहे हैं। इसी निराशा और गुस्से में अभ्यर्थियों ने जदयू कार्यालय का घेराव कर जोरदार प्रदर्शन किया।
आत्महत्या की चेतावनी
प्रदर्शनकारियों की नाराजगी इस हद तक बढ़ गई कि वे हाथों में जहर की शीशियां लेकर जदयू दफ्तर पहुंचे। उनका कहना है कि यदि अब भी उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ तो वे पार्टी कार्यालय के बाहर ही अपनी जान दे देंगे। इस कदम ने स्थिति को और गंभीर बना दिया। सुरक्षात्मक दृष्टिकोण से जदयू कार्यालय का गेट बंद कर दिया गया और वहां पुलिस बल तैनात कर सुरक्षा व्यवस्था को कड़ा कर दिया गया।
दस वर्षों से लंबित रिजल्ट
अभ्यर्थियों की सबसे बड़ी शिकायत यह है कि वे 2012 से अपने भविष्य को लेकर असमंजस में हैं। लगभग 12 हजार उम्मीदवारों का रिजल्ट पहले घोषित किया गया था और उनमें से कई को पास घोषित किया गया था। लेकिन कुछ ही समय बाद परिणाम को अमान्य कर सभी उम्मीदवारों को फेल घोषित कर दिया गया। इस फैसले ने अभ्यर्थियों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
बार-बार मिला सिर्फ आश्वासन
अभ्यर्थियों का कहना है कि सरकार बार-बार रिजल्ट जारी करने की बात करती रही है, लेकिन व्यवहार में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। दस साल का यह लंबा इंतजार उनके करियर और जीवन को प्रभावित कर चुका है। वे मानते हैं कि सरकार और संबंधित विभाग केवल समय निकालते रहे हैं और अभ्यर्थियों के भविष्य से खिलवाड़ किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट की राय और सरकार की भूमिका
करीब तीन साल पहले बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सरकारी वकील से इस मामले पर कानूनी राय मांगी थी। उस राय में स्पष्ट रूप से उम्मीदवारों के पक्ष में निर्णय आया था। इसके बाद शिक्षा विभाग के निदेशक ने भी पांच फीसदी कट-ऑफ कम कर रिजल्ट जारी करने का आदेश दिया था। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इन सभी प्रक्रियाओं के बावजूद बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने अब तक परिणाम जारी नहीं किया।
अभ्यर्थियों का रोष और सवाल
अभ्यर्थियों का कहना है कि जब अदालत और शिक्षा विभाग की ओर से उनके पक्ष में संकेत दिए जा चुके हैं तो फिर रिजल्ट जारी करने में देरी क्यों की जा रही है। उनका आरोप है कि यह देरी सरकार की लापरवाही और राजनीतिक उपेक्षा का परिणाम है। वे पूछते हैं कि आखिर दस साल का समय किस आधार पर टालमटोल में गुजर गया और उनके परिवारों के साथ यह अन्याय क्यों किया जा रहा है।
प्रदर्शन का असर
बुधवार को हुए इस प्रदर्शन ने प्रशासन को हिला दिया। अभ्यर्थियों के आत्महत्या की धमकी के बाद सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ा दी गई। जदयू कार्यालय के सामने हंगामे की स्थिति बनी रही और स्थानीय लोगों में भी तनाव का माहौल देखा गया।
भविष्य की अनिश्चितता
इन अभ्यर्थियों का कहना है कि उनका जीवन इसी परिणाम पर टिका हुआ है। दस साल के लंबे इंतजार के बाद अब उनके सामने उम्र की समस्या भी खड़ी हो गई है। शिक्षक बनने का सपना देखते-देखते कई अभ्यर्थियों की उम्र सीमा पार हो गई है, जिससे उनका भविष्य पूरी तरह अंधकारमय हो रहा है।
समाधान की आवश्यकता
यह पूरा मामला बताता है कि शिक्षा व्यवस्था में कितनी गहरी खामियां मौजूद हैं। एक ओर सरकार रोजगार और शिक्षा सुधार की बातें करती है, वहीं दूसरी ओर अभ्यर्थियों को वर्षों तक केवल आश्वासन पर टाल दिया जाता है। इस स्थिति का त्वरित समाधान आवश्यक है। अगर रिजल्ट अभ्यर्थियों के पक्ष में है तो उसे तत्काल जारी कर उनके भविष्य को सुरक्षित किया जाना चाहिए। पटना में हुआ यह प्रदर्शन केवल एक आंदोलन नहीं बल्कि वर्षों से उपेक्षित युवाओं की पीड़ा की आवाज है। सरकार और संबंधित विभागों को यह समझना होगा कि अभ्यर्थियों के भविष्य से खिलवाड़ करना किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरनाक हो सकता है। यदि इस मुद्दे का शीघ्र समाधान नहीं हुआ तो यह असंतोष और व्यापक आंदोलन का रूप ले सकता है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह इस मामले को प्राथमिकता देते हुए जल्द से जल्द रिजल्ट जारी करे और इन अभ्यर्थियों को न्याय दिलाए।

You may have missed