वोटर लिस्ट रिवीजन को तेजस्वी ने बताया वोटबंदी, कहा- फर्जी वोटर बढ़ाने का काम होगा, गरीबों का कटेगा नाम

पटना। बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण अभियान को लेकर सियासत गरमा गई है। इस प्रक्रिया पर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने गंभीर आपत्ति जताई है। उन्होंने इसे ‘वोटबंदी’ की संज्ञा देते हुए आरोप लगाया है कि यह गरीबों, दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के वोट काटने की साजिश है। पटना में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने केंद्र सरकार और बिहार सरकार पर जमकर हमला बोला।
फर्जी वोट जोड़ने और असली वोट काटने का आरोप
तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया कि यह पूरी प्रक्रिया चुनाव आयोग के माध्यम से एक पक्षीय तरीके से चलाई जा रही है। उनका कहना है कि दलित, पिछड़े, अति पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदाय के वास्तविक मतदाताओं का नाम मतदाता सूची से हटाया जा रहा है जबकि फर्जी नाम जोड़े जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह लोकतंत्र और संविधान के खिलाफ साजिश है, जो प्रत्यक्ष हार की आशंका से घबराई सत्ता द्वारा रची गई है।
दस्तावेजों की अनिवार्यता पर सवाल
तेजस्वी ने सवाल उठाया कि आखिर क्यों आधार कार्ड और राशन कार्ड जैसे सरकारी दस्तावेजों को मान्यता नहीं दी जा रही है? उन्होंने कहा कि लाखों बिहारी दूसरे राज्यों में काम करते हैं, क्या वे महज 18 दिनों में वापस आकर अपने नाम सूची में जुड़वा पाएंगे? अगर नहीं, तो क्या यह उन्हें वोट देने से रोकने की साजिश नहीं है?
चेतावनी: सड़क पर उतरेगा विपक्ष
तेजस्वी यादव ने स्पष्ट चेतावनी दी कि यदि इस प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई गई, तो वे सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेंगे। उन्होंने चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली को भी कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि 6 जुलाई को आयोग से मिलने गए थे, लेकिन अब तक कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। उन्होंने कहा कि पटना स्थित चुनाव आयोग की भूमिका सिर्फ डाकघर जैसी हो गई है, जहां कोई स्वतंत्र निर्णय नहीं लिया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट की निगाहें भी इस मुद्दे पर
इस पूरे विवाद ने अब कानूनी रूप भी ले लिया है। आरजेडी ने इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में उठाया है। राज्यसभा सांसद मनोज झा ने चुनाव आयोग के इस कदम को चुनौती देते हुए याचिका दायर की है। उनका तर्क है कि चुनाव से ठीक पहले इस तरह का पुनरीक्षण संविधान के अनुच्छेद 326 के विरुद्ध है, जो सभी नागरिकों को वोट देने का अधिकार देता है। याचिका में यह भी कहा गया है कि मतदाता सूची से नाम हटाने के लिए जो दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, वे सामान्य नागरिकों के लिए जुटाना कठिन है, विशेषकर गरीब और प्रवासी वर्ग के लिए।
राजनीतिक और संवैधानिक बहस की ओर बढ़ता मामला
तेजस्वी यादव और आरजेडी के आरोपों ने इस मुद्दे को सिर्फ चुनावी नहीं, बल्कि संवैधानिक बहस का विषय बना दिया है। यह बहस अब सर्वोच्च न्यायालय में भी पहुंचेगी, जहां 10 जुलाई को सुनवाई होनी है। अब देखना यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट क्या रुख अपनाता है और क्या यह प्रक्रिया आगे बढ़ेगी या फिलहाल उस पर रोक लगाई जाएगी। वोटर लिस्ट पुनरीक्षण को लेकर उठी आपत्तियों ने बिहार की राजनीति में एक नई हलचल पैदा कर दी है। विपक्ष इसे संविधान और लोकतंत्र पर हमला मान रहा है, जबकि सरकार इसे नियमित प्रक्रिया बता रही है। ऐसे में जनता की निगाहें अब अदालत और आयोग के निर्णयों पर टिकी हुई हैं।
