महाराष्ट्र के 6000 सरकारी शिक्षकों ने आजाद मैदान में दिया धरना, मांगू को लेकर प्रदर्शन, शरद पवार भी हुए शामिल
मुंबई। महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में बुधवार को एक महत्वपूर्ण सामाजिक आंदोलन देखने को मिला, जब राज्य के विभिन्न जिलों से आए लगभग 6000 शिक्षक आजाद मैदान पर एकत्र हुए। ये सभी शिक्षक सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में कार्यरत हैं और वे राज्य सरकार से स्कूलों को नियमित अनुदान देने तथा लंबित भर्तियों को पूरा करने की मांग कर रहे हैं।
स्कूलों को फंड न मिलने पर जताई चिंता
प्रदर्शनकारी शिक्षकों का कहना है कि यदि सरकार सहायता राशि नहीं देती है, तो स्कूलों का संचालन करना कठिन हो जाएगा। यह सिर्फ शिक्षकों की नौकरी का सवाल नहीं है, बल्कि लाखों बच्चों की शिक्षा भी इससे प्रभावित हो रही है। कई स्कूल ऐसे हैं, जो सीमित संसाधनों के साथ काम कर रहे हैं और अनुदान की कमी के चलते शिक्षण स्तर पर भी असर पड़ रहा है।
भर्ती प्रक्रिया और वेतन संबंधी मुद्दे भी शामिल
शिक्षकों की मांग सिर्फ फंडिंग तक सीमित नहीं है। वे यह भी मांग कर रहे हैं कि नई भर्तियों की प्रक्रिया को तत्काल शुरू किया जाए ताकि खाली पदों को भरा जा सके। इसके अलावा कई शिक्षक ऐसे भी हैं जो वर्षों से संविदा पर कार्यरत हैं और उन्हें नियमित करने की प्रक्रिया ठप पड़ी है। साथ ही, नियमित शिक्षकों को समय पर वेतन न मिलना और भत्तों का न मिलना भी प्रमुख मुद्दों में शामिल है।
शरद पवार ने दिया शिक्षकों के आंदोलन को समर्थन
इस धरने को एक नया आयाम तब मिला जब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी-शरद पवार गुट) के वरिष्ठ नेता शरद पवार स्वयं आजाद मैदान पहुंचे और शिक्षकों को समर्थन दिया। उन्होंने मंच से आंदोलनरत शिक्षकों को संबोधित करते हुए कहा कि वे इस मुद्दे को पूरी गंभीरता से सरकार के समक्ष उठाएंगे और जब तक समाधान नहीं निकलेगा, तब तक वे शिक्षकों के साथ खड़े रहेंगे।
शरद पवार का भावुक संबोधन
शरद पवार ने कहा कि वे पिछले 56 वर्षों से राजनीति में हैं और इतने वर्षों में उन्होंने कई सामाजिक मुद्दों को हल कराया है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि इस बार भी शिक्षकों के साथ अन्याय नहीं होने देंगे। उन्होंने राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि जो लोग ज्ञान देने का काम कर रहे हैं, उन्हें संघर्ष नहीं करना चाहिए। सरकार को उनकी मांगों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
सरकार की चुप्पी पर सवाल
शरद पवार ने यह भी बताया कि उन्हें यह सूचना मिली थी कि राज्य सरकार का एक मंत्री इस धरने में शामिल होने आ रहा है। उन्होंने उम्मीद जताई थी कि मंत्री के आने से कोई समाधान निकल सकता है, लेकिन दुर्भाग्यवश सरकार की ओर से कोई ठोस जवाब नहीं आया। उन्होंने सरकार से अपील की कि वह जल्द से जल्द शिक्षकों की मांगों को लेकर स्पष्ट रुख अपनाए और उन्हें राहत प्रदान करे।
सामाजिक संगठनों की भी सक्रियता
यह धरना ऐसे समय पर हुआ जब एक दिन पहले ही मुंबई के मीरा रोड में हजारों लोगों ने मनसे, उद्धव ठाकरे गुट और अन्य मराठी संगठनों के आह्वान पर प्रदर्शन किया था। यह साफ संकेत है कि महाराष्ट्र में विभिन्न सामाजिक और पेशागत वर्गों में असंतोष बढ़ता जा रहा है और लोग सड़कों पर उतरकर अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। शिक्षकों का यह आंदोलन केवल वेतन और भर्तियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शिक्षा व्यवस्था की संरचना और सम्मान से भी जुड़ा हुआ है। शरद पवार जैसे वरिष्ठ नेता के समर्थन से इस आंदोलन को और बल मिला है। अब देखना यह होगा कि राज्य सरकार इस मांगों पर कितना गंभीर रुख अपनाती है और कब तक समाधान निकलता है। जब तक कोई ठोस निर्णय नहीं होता, तब तक शिक्षकों का संघर्ष जारी रह सकता है।


