बाल विवाह मामले में सुप्रीम कोर्ट का कार्रवाई का निर्देश, माता-पिता समेत कई लोगों पर केस दर्ज, तलाश जारी

  • 2024 में नाबालिक की अधेड़ उम्र के साथ कराई थी शादी, पंडित और अगुवा को तलाश रही पुलिस, शीर्ष अदालत ने दिया दखल

नई दिल्ली/पटना। नौबतपुर क्षेत्र में 2024 में घटित एक बाल विवाह प्रकरण ने अब पूरे राज्य में कानूनी और सामाजिक स्तर पर बड़ी चर्चा छेड़ दी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में गंभीर संज्ञान लेते हुए पुलिस प्रशासन को सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। इसके बाद फुलवारी शरीफ पुलिस ने त्वरित कदम उठाते हुए नाबालिग लड़की के माता-पिता और युवक के परिवार समेत कई लोगों पर बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर लिया है।
नाबालिग लड़की की जबरन शादी
यह मामला 9 दिसंबर 2024 का है जब नौबतपुर में एक 16 वर्षीय लड़की की शादी जबरन 32 वर्षीय अधेड़ उम्र के युवक से कर दी गई थी। विवाह में लड़की की इच्छा की कोई अहमियत नहीं रखी गई और उसे मानसिक दबाव में यह रिश्ता स्वीकारने के लिए मजबूर किया गया। विवाह के बाद नाबालिग को मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी जिससे परेशान होकर वह मार्च 2025 में अपने एक मित्र की मदद से घर छोड़ने को मजबूर हुई।
पीड़िता ने सुप्रीम कोर्ट में लगाई गुहार
पीड़िता ने अपनी व्यथा लेकर सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अपनी याचिका में उसने स्पष्ट तौर पर कहा कि यह विवाह उसकी मर्जी के खिलाफ हुआ और उसे स्वतंत्र रूप से पढ़ाई और जीवन जीने का अवसर मिलना चाहिए। उसने यह भी बताया कि उसके परिवार ने उसके अपहरण का झूठा केस दर्ज कराया ताकि उसे वापस ससुराल भेजा जा सके और उसके ऊपर दबाव बना रहे।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया सुरक्षा का आदेश
सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने दिल्ली और बिहार पुलिस को पीड़िता और उसके मददगार को पूर्ण सुरक्षा प्रदान करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि नाबालिग की शादी कानूनन अमान्य है और इसमें शामिल सभी लोगों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। कोर्ट के इस फैसले के बाद पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए माता-पिता, युवक के परिवार और शादी कराने में शामिल पंडित तथा अगुवा के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है।
पंडित और अगुवा की तलाश में पुलिस
फुलवारीशरीफ एसडीपीओ दीपक कुमार ने जानकारी दी कि बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम के तहत 18 साल से कम उम्र की लड़की और 21 साल से कम उम्र के लड़के की शादी गैरकानूनी मानी जाती है। ऐसे में इस विवाह को संपन्न कराने में जो भी लोग शामिल थे, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। पुलिस ने पंडित और अगुवा की तलाश तेज कर दी है और जल्द ही उनकी गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी किया जा सकता है।
परिवार पर झूठे केस का आरोप
पीड़िता ने अपने बयान में बताया कि उसके अपहरण का केस भी झूठा है और उसे वापस उसी हालात में भेजने का एक हथकंडा मात्र है। कोर्ट ने भी माना कि इस तरह के मामलों में पीड़ित को धमकाना और दबाव बनाना गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। इसलिए न सिर्फ शादी कराने वाले बल्कि झूठा केस दर्ज कराने वालों पर भी कार्रवाई की जाएगी।
कानूनी जागरूकता की मिसाल
यह मामला इसलिए भी अहम बन गया है क्योंकि इसमें नाबालिग लड़की ने अपनी हिम्मत से समाज में एक नई मिसाल कायम की है। उसने यह संदेश दिया कि अब बेटियां अपने अधिकारों के लिए स्वयं खड़ी हो सकती हैं और कानून भी उनका पूरा साथ देता है। कोर्ट का सख्त रुख आने वाले समय में बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ एक मजबूत संदेश देने का काम करेगा।
समाज में संदेश और प्रशासन का रुख
यह मामला स्पष्ट करता है कि अब बाल विवाह जैसी कुरीतियों को छिपाकर निभाना आसान नहीं रह गया है। प्रशासन ने साफ कर दिया है कि किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। पीड़िता की सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है और मामले की हर पहलू से जांच की जा रही है।
कानून के साथ खड़ी बेटियां
फिलहाल इस मामले में पीड़िता को संरक्षण दिया गया है ताकि वह अपनी पढ़ाई जारी रख सके और एक सुरक्षित वातावरण में अपना भविष्य गढ़ सके। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता को भी बल मिलेगा। इस प्रकरण ने यह साबित कर दिया कि बेटियां अब चुप नहीं रहेंगी बल्कि अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने से पीछे नहीं हटेंगी। यह प्रकरण आने वाले समय में समाज को यह सिखाने का काम करेगा कि बेटियों के अधिकारों के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा और कानून हर हाल में उनके साथ खड़ा रहेगा।

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