October 28, 2025

चुनाव में एआई टूल्स का गलत इस्तेमाल पर चुनाव आयोग सख्त, दलों के लिए निर्देश जारी, दुरुपयोग पर कार्रवाई

नई दिल्ली/पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की घोषणा के साथ ही चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए नई और सख्त गाइडलाइंस जारी की हैं। इस बार आयोग ने विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के दुरुपयोग को लेकर सख्त रुख अपनाया है। चुनाव आयोग का कहना है कि तकनीक का इस्तेमाल लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए होना चाहिए, न कि भ्रम फैलाने या झूठे प्रचार के लिए।
एआई के दुरुपयोग पर सख्त चेतावनी
चुनाव आयोग ने साफ कहा है कि यदि कोई राजनीतिक दल या उम्मीदवार एआई के जरिए फर्जी या सिंथेटिक वीडियो तैयार करता है और उससे किसी प्रतिद्वंद्वी की छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है, तो उस पर कठोर कार्रवाई की जाएगी। आयोग के अनुसार, इस तरह की गतिविधियां न केवल चुनावी माहौल को प्रभावित करती हैं, बल्कि जनता के विश्वास को भी कमजोर करती हैं। आयोग ने इस संदर्भ में विशेष रूप से डीपफेक वीडियो का उल्लेख किया है, जो एआई की मदद से किसी व्यक्ति की आवाज़ या चेहरा बदलकर झूठा कंटेंट तैयार करते हैं।
मॉडल आचार संहिता का डिजिटल विस्तार
चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि मॉडल आचार संहिता अब केवल रैलियों, भाषणों या पोस्टरों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सोशल मीडिया और इंटरनेट पर साझा की जाने वाली सामग्री पर भी लागू होगी। यानी फेसबुक, एक्स (पूर्व ट्विटर), इंस्टाग्राम, यूट्यूब या अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर डाले जाने वाले सभी पोस्ट, वीडियो, विज्ञापन और संदेशों को भी आचार संहिता के नियमों के अनुरूप होना होगा। उम्मीदवारों और दलों को ऑनलाइन सामग्री पोस्ट करने से पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि वह भ्रामक या गलत जानकारी नहीं फैलाती हो।
नीतिगत आलोचना तक सीमित रहे बयानबाजी
आयोग ने राजनीतिक दलों को यह भी चेतावनी दी है कि वे प्रतिद्वंद्वी नेताओं या उम्मीदवारों के निजी जीवन पर टिप्पणी न करें। आलोचना केवल नीतियों, कार्यक्रमों, कार्यों और रिकॉर्ड तक सीमित रहनी चाहिए। आयोग का मानना है कि चुनाव विचारों और योजनाओं की प्रतिस्पर्धा का मंच है, न कि व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप का। बिना सत्यापन के आरोप लगाना या तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करना अब आचार संहिता का गंभीर उल्लंघन माना जाएगा।
एआई जनित सामग्री की स्पष्ट पहचान जरूरी
चुनाव आयोग ने यह भी निर्देश दिया है कि यदि कोई राजनीतिक दल या उम्मीदवार किसी एआई आधारित सामग्री का उपयोग करता है, तो उसे स्पष्ट रूप से चिन्हित किया जाना चाहिए। यानी यदि कोई वीडियो, चित्र या ऑडियो कृत्रिम रूप से बनाया गया है, तो उसमें यह लेबल लगाना अनिवार्य होगा कि यह “एआई जनित” या “डिजिटली संशोधित” है। ऐसा करने का उद्देश्य यह है कि जनता भ्रमित न हो और उसे पता चल सके कि जो सामग्री वे देख रहे हैं, वह वास्तविक नहीं बल्कि तकनीकी रूप से तैयार की गई है।
सोशल मीडिया पर सख्त निगरानी
आयोग ने बताया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर निगरानी के लिए विशेष टीमें गठित की गई हैं। ये टीमें एआई-आधारित फर्जी वीडियो, भ्रामक पोस्ट या भड़काऊ संदेशों की पहचान कर उन्हें तुरंत हटाने की प्रक्रिया शुरू करेंगी। इसके अलावा, यदि किसी व्यक्ति या संगठन द्वारा जानबूझकर झूठा प्रचार फैलाने का मामला सामने आता है, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की जाएगी।
लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पवित्रता बनाए रखने की पहल
चुनाव आयोग के डिप्टी डायरेक्टर पी. पवन ने कहा है कि यह पहल तकनीकी युग में चुनावों की पारदर्शिता और निष्पक्षता को बनाए रखने की दिशा में एक अहम कदम है। आयोग का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जनता का मत किसी झूठे प्रचार, भ्रम या फर्जी जानकारी के आधार पर न बने। आयोग ने राजनीतिक दलों से अपील की है कि वे सोशल मीडिया का उपयोग केवल सकारात्मक प्रचार और नीतिगत संवाद के लिए करें। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए जारी यह नया दिशा-निर्देश इस बात का संकेत है कि चुनाव आयोग अब तकनीकी युग की चुनौतियों को गंभीरता से ले रहा है। एआई जैसे शक्तिशाली उपकरण का दुरुपयोग चुनावी नैतिकता के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। इसलिए आयोग का यह निर्णय लोकतंत्र की पवित्रता को सुरक्षित रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इससे उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले चुनाव न केवल निष्पक्ष होंगे, बल्कि तकनीकी रूप से भी अधिक जिम्मेदार और पारदर्शी बनेंगे।

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