भारत-पाकिस्तान मैच को लेकर प्रदर्शन करेगी शिवसेना, सड़कों पर प्रदर्शन, कहा- खून और क्रिकेट एक साथ नहीं होगा

मुंबई। एशिया कप 2025 में भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाले संभावित मुकाबले ने देश में राजनीतिक और सामाजिक हलचल को तेज कर दिया है। क्रिकेट को लेकर दोनों देशों के बीच हमेशा से ही भावनाएं जुड़ी रही हैं, लेकिन इस बार मामला और संवेदनशील हो गया है। वजह है—कश्मीर के पहलगाम में हुआ हालिया आतंकी हमला और उससे उपजे गुस्से का माहौल। इसी पृष्ठभूमि में शिवसेना (यूबीटी) ने इस मैच का विरोध करते हुए सड़कों पर प्रदर्शन करने का ऐलान कर दिया है।
शिवसेना का विरोध और संजय राउत का बयान
शिवसेना (यूबीटी) के वरिष्ठ नेता और सांसद संजय राउत ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि भारत-पाकिस्तान मैच का विरोध होगा। उन्होंने चेतावनी दी कि महिलाएं सड़कों पर उतरेंगी और “सिंदूर रक्षा अभियान” चलाया जाएगा। राउत का तर्क है कि जब देश में यह कहा गया था कि “पानी और खून साथ-साथ नहीं बह सकते,” तो फिर “खून और क्रिकेट” साथ-साथ कैसे चल सकता है। उनका मानना है कि ऐसे हालात में पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलना न केवल गलत है बल्कि यह देशद्रोह और बेशर्मी के समान है।
पहलगाम हमले का दर्द और ऑपरेशन सिंदूर
संजय राउत ने अपने बयान में पहलगाम में हुए आतंकी हमले का जिक्र किया, जिसमें 26 महिलाओं की जान गई थी। उन्होंने कहा कि उन महिलाओं का सिंदूर मिटा दिया गया और उनका दर्द अभी तक खत्म नहीं हुआ है। इस हमले के बाद सरकार ने “ऑपरेशन सिंदूर” शुरू किया था, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान को आतंकवाद प्रायोजक देश के रूप में अंतरराष्ट्रीय मंच पर बेनकाब करना था। राउत ने सवाल उठाया कि जब देश पाकिस्तान की इस भूमिका के खिलाफ अभियान चला रहा है, तो क्रिकेट मैच का आयोजन कैसे उचित ठहराया जा सकता है।
भाजपा और हिंदुत्व संगठनों पर सवाल
संजय राउत ने इस विवाद में भाजपा और उससे जुड़े संगठनों को सीधे कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि यह सवाल केवल सरकार से नहीं बल्कि भाजपा, विश्व हिंदू परिषद, आरएसएस और बजरंग दल से भी है। उन्होंने पूछा कि इस पूरे मामले में उनकी भूमिका क्या है और क्या वे पाकिस्तान के खिलाफ सख्त रुख अपनाने के लिए तैयार हैं।
प्रियंका चतुर्वेदी की आपत्ति
शिवसेना (यूबीटी) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी भी इस मुद्दे पर पहले ही सरकार को पत्र लिख चुकी हैं। उन्होंने केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव को पत्र भेजकर मांग की थी कि भारत-पाकिस्तान मैच का सीधा प्रसारण देश में न किया जाए। उन्होंने इसे राष्ट्रीय हित और जनभावना से जुड़ा विषय बताया था। प्रियंका का कहना है कि आतंकवाद के खिलाफ जब भारत ने सख्त अभियान चलाया और दुनिया भर में संदेश दिया कि हम “आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता” की नीति अपनाते हैं, तो ऐसे समय में पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलना इस नीति के विपरीत है।
जनता की भावनाएं और सरकार की नीति
भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट हमेशा से भावनाओं का खेल रहा है। आतंकवादी हमलों के बाद जब भी दोनों देशों के बीच मैच तय होते हैं, तब जनता के बीच गुस्से और आक्रोश की लहर उठती है। सरकार का रुख अक्सर यह रहा है कि खेल और राजनीति को अलग रखा जाना चाहिए, लेकिन विपक्षी दलों और कई सामाजिक संगठनों का मानना है कि जब मामला आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हो, तो क्रिकेट जैसे आयोजनों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर संदेश का सवाल
शिवसेना और प्रियंका चतुर्वेदी का तर्क यह भी है कि भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान के आतंकवाद प्रायोजन की पोल खोलने का अभियान चलाया है। संसद सदस्यों का एक प्रतिनिधिमंडल विदेशों में जाकर यह संदेश दे चुका है कि भारत आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करेगा। ऐसे में यदि भारत पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलता है, तो यह संदेश कमजोर पड़ सकता है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में विरोधाभास पैदा हो सकता है।
खेल या कूटनीति – बड़ा सवाल
यह पूरा विवाद इस सवाल पर आकर ठहरता है कि क्या खेल को राजनीति और कूटनीति से अलग रखा जाना चाहिए या नहीं। एक पक्ष का मानना है कि खेल का मकसद देशों के बीच संबंधों को सहज बनाना है और इससे जनता के बीच आपसी नजदीकी बढ़ सकती है। वहीं, दूसरा पक्ष यह कहता है कि आतंकवाद से प्रभावित देश के लिए यह संभव नहीं है कि वह अपने नागरिकों के खून और बलिदान को भूलकर मैदान पर पाकिस्तान के साथ मुकाबला करे। भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच को लेकर छिड़ा विवाद केवल खेल तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा, जनता की भावनाओं और अंतरराष्ट्रीय छवि से गहराई से जुड़ा हुआ है। शिवसेना का सड़कों पर उतरने का ऐलान और प्रियंका चतुर्वेदी का पत्र इस बात का संकेत है कि विपक्ष इस मुद्दे को बड़ा राजनीतिक और सामाजिक आंदोलन बना सकता है। वहीं, सरकार को यह तय करना होगा कि वह खेल को राजनीति से अलग मानती है या फिर जनता की भावनाओं को प्राथमिकता देती है। आने वाले दिनों में इस विवाद का असर न केवल क्रिकेट के मैदान पर बल्कि देश की राजनीति में भी दिखाई देगा।
