पीएम की बिहार यात्रा: घिसी-पिटी बातों की पुनरावृत्ति, बिहारियों को नौ वर्षों में दो लाख करोड़ बनाम ग्यारह वर्षों में चौदह लाख करोड़ का हिसाब चाहिए

पटना। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज 53वीं बार बिहार आए और मुख्यरूप से वही घिसी-पिटी बातों को दोहरा कर चले गए जो अमूमन पिछले अपने 52 दौरे के दौरान बोलते रहे हैं। पर इस बार मोतीहारी सुगर फैक्ट्री में बनी हुई चिनी की चाय पीने की चर्चा उन्होंने नहीं की जिसकी घोषणा उन्होंने ग्यारह साल पूर्व की थी। राजद प्रवक्ता ने कहा कि प्रधानमंत्री जी के मोतीहारी कार्यक्रम में ऐसा कुछ भी नया नहीं था जिस पर कोई बिहारी अपनी प्रतिक्रिया दे। पर प्रधानमंत्री जी के सम्बोधन और उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी जी के सम्बोधन में दो बातें सामने आई है जिसकी चर्चा जरूरी है। प्रधानमंत्री जी ने अपने सम्बोधन में स्वीकार किया है कि यूपीए सरकार के समय दस वर्षों में (2004-2014) केन्द्र सरकार द्वारा बिहार को दो लाख करोड़ रुपए दिए गए। बिहार में यह दिखाई भी दिया। चूंकि सभी यह मानते हैं की नीतीश जी की सरकार के पहले कार्यकाल में बिहार में बदलाव देखा गया। बड़े पैमाने पर सड़कें बनी, निर्माण कार्य हुए , गांव-गांव में बिजली पहुंची , विकास के अन्य योजनाएं कार्यान्वित हुईं। इसका श्रेय केन्द्र की यूपीए सरकार में शामिल राजद को मिलना चाहिए था पर बड़ी हीं चालाकी से बिहार की एनडीए सरकार और मुख्यमंत्री नीतीश जी भंजाने का प्रयास करते रहे। इसमें उन्हें कुछ हद तक सफलता भी मिली। इसी सभा में उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी जी ने दावा किया कि केन्द्र की एनडीए सरकार द्वारा विगत ग्यारह वर्षों (2014-2025) में बिहार को चौदह (14) लाख करोड़ रुपए दिए गए। प्रधानमंत्री ने भी अपने सम्बोधन में उपमुख्यमंत्री के कथन का समर्थन किया है।जबकि 2023 में बिहार के तत्कालीन वित्तमंत्री विजय कुमार चौधरी ने नीति आयोग की बैठक में केन्द्र सरकार पर बिहार के हिस्से वाली राशि भी बकाया रखने का आरोप लगाया था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी भी 30 जनवरी 2024 के पहले अनेकों बार केन्द्र द्वारा बिहार की उपेक्षा और हकमारी का आरोप सार्वजनिक रूप से लगा चुके हैं। 14 लाख करोड़ रुपए एक बहुत बड़ी राशि है और अर्थशास्त्रीयों के अनुसार यदि बिहार में 14 लाख करोड़ रुपए खर्च कर दिए जाएं तो बिहार का कायाकल्प हो सकता है। तो फिर यह राशि गई कहां, यह एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा हो गया है। बिहार की जनता को यह जानने का हक है कि आखिर यह राशि कहां खर्च हुई। नौ वर्षों (2005-2014) में दो लाख करोड़ बनाम ग्यारह वर्षों (2014-2025) में 14 लाख करोड़ की सच्चाई बिहार की जनता के सामने आना चाहिए।
