बिहार में फिर दिखेगी राहुल और तेजस्वी की जोड़ी, चुनाव में महागठबंधन का करेंगे प्रचार, कई जनसभा को करेंगे संबोधित
पटना। बिहार की राजनीति इन दिनों चरम पर है। जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है, सियासी सरगर्मियां भी तेज हो गई हैं। एक ओर जहां महागठबंधन सीट बंटवारे और उम्मीदवार चयन के अंतिम चरण में है, वहीं एनडीए ने अपनी चुनावी तैयारियों को युद्धस्तर पर शुरू कर दिया है। इस बीच सबसे बड़ी खबर यह है कि कांग्रेस के नेता राहुल गांधी और राजद के नेता तेजस्वी यादव एक बार फिर एक मंच पर नजर आएंगे। दोनों मिलकर महागठबंधन की ओर से बिहार के कई जिलों में जनसभाएं करेंगे और चुनाव प्रचार का नेतृत्व संभालेंगे।
महागठबंधन में एकता का प्रदर्शन
पटना में बुधवार को महागठबंधन की शीर्ष बैठक संपन्न हुई, जिसमें लालू प्रसाद यादव, अशोक गहलोत, तेजस्वी यादव और कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्ण अल्लावरु शामिल हुए। बैठक के बाद कांग्रेस पर्यवेक्षक अशोक गहलोत ने कहा कि महागठबंधन पूरी तरह से एकजुट है और सभी पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ेगीं। उन्होंने यह भी कहा कि “कुछ सीटों पर मैत्रीपूर्ण मुकाबला कोई बड़ी बात नहीं है, ऐसे मामूली मतभेद लोकतंत्र में स्वाभाविक हैं। लालू प्रसाद यादव ने बैठक के दौरान यह स्पष्ट संदेश दिया कि महागठबंधन बिहार के भविष्य की लड़ाई लड़ रहा है, और इसमें किसी भी तरह की दरार की गुंजाइश नहीं है। उन्होंने कहा कि “हम सबका लक्ष्य भाजपा और एनडीए की जनविरोधी नीतियों को सत्ता से बाहर करना है।”
राहुल गांधी और तेजस्वी की जोड़ी फिर मंच पर
बैठक के बाद यह तय किया गया कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव संयुक्त रूप से महागठबंधन के प्रचार अभियान का नेतृत्व करेंगे। दोनों नेता बिहार के विभिन्न जिलों में कई जनसभाओं को संबोधित करेंगे और जनता के बीच साझा एजेंडा लेकर जाएंगे। यह वही जोड़ी है जिसने पिछले चुनाव में भी महागठबंधन को मजबूती दी थी। कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, राहुल गांधी नवंबर के पहले सप्ताह में बिहार के विभिन्न जिलों — पटना, दरभंगा, बेगूसराय, वैशाली और आरा — में रैलियों को संबोधित करेंगे। तेजस्वी यादव उनके साथ रहेंगे और दोनों नेताओं का फोकस युवाओं, रोजगार, किसानों और महंगाई जैसे मुद्दों पर होगा।
एनडीए का पलटवार: “महा-लठबंधन” कहकर साधा निशाना
दूसरी ओर, बीजेपी ने महागठबंधन की एकजुटता को लेकर तंज कसना शुरू कर दिया है। उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने इसे “महा-लठबंधन” करार देते हुए कहा कि “महागठबंधन की पार्टियां केवल सत्ता के लिए एकजुट होती हैं, न कि जनता के विकास के लिए।” उन्होंने दावा किया कि इस बार बिहार की जनता एनडीए को ही फिर से सत्ता में लाएगी क्योंकि डबल इंजन सरकार ने राज्य के विकास के लिए ठोस काम किया है। केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय ने भी कहा कि “राहुल गांधी और तेजस्वी यादव दोनों ही ऐसे नेता हैं जिनकी राजनीतिक विश्वसनीयता पर जनता को भरोसा नहीं है। दोनों ही परिवारवाद की राजनीति का चेहरा हैं और बिहार की जनता अब इस राजनीति को नकार चुकी है।”
पहले चरण का चुनावी समीकरण
बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान 6 नवंबर को होना है। इस चरण में 18 जिलों की 121 सीटों पर मतदान होगा, जिन पर 1314 उम्मीदवार मैदान में हैं। इन जिलों में पटना, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, आरा, वैशाली और बेगूसराय जैसे हाई-प्रोफाइल इलाके शामिल हैं, जहां मुकाबला बेहद दिलचस्प होने की संभावना है। नामांकन की प्रक्रिया 10 अक्टूबर से 17 अक्टूबर तक चली थी, जबकि 18 अक्टूबर को नामांकन पत्रों की जांच हुई। 20 अक्टूबर तक नाम वापस लेने की अंतिम तिथि थी। कुल 1690 नामांकन दाखिल हुए, जिनमें से 1375 को वैध घोषित किया गया। इसके बाद 61 उम्मीदवारों ने नाम वापस ले लिए।
पढ़े-लिखे उम्मीदवारों की बढ़ती उपस्थिति
इस बार बिहार चुनाव में उम्मीदवारों की शैक्षणिक योग्यता भी चर्चा का विषय बनी हुई है। चुनाव आयोग को दिए गए हलफनामों के अनुसार, दोनों प्रमुख गठबंधनों — एनडीए और महागठबंधन — ने शिक्षित चेहरों पर भरोसा जताया है। करीब 62 फीसदी उम्मीदवार स्नातक या उससे ऊपर की डिग्रीधारी हैं। इनमें इंजीनियरिंग, कानून, चिकित्सा और प्रबंधन की डिग्री रखने वाले कई चेहरे शामिल हैं। तीन उम्मीदवार ऐसे हैं जिनके पास डी-लिट की उपाधि है, जबकि 12 प्रत्याशियों के पास पीएचडी की डिग्री है। इसके अलावा, 17 उम्मीदवार कानून की पढ़ाई कर चुके हैं और पांच उम्मीदवार एमबीबीएस डॉक्टर हैं। वहीं, कुछ उम्मीदवार ऐसे भी हैं जो केवल मैट्रिक तक पढ़े हैं, और लगभग आठ प्रतिशत उम्मीदवार नन-मैट्रिक हैं।
बिहार के लिए चुनौती और उम्मीद
महागठबंधन के लिए यह चुनाव न केवल सत्ता की लड़ाई है, बल्कि अपनी एकजुटता साबित करने का भी इम्तिहान है। कांग्रेस और आरजेडी के बीच तालमेल को लेकर कई बार सवाल उठते रहे हैं, लेकिन राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की जोड़ी के दोबारा मंच साझा करने से समर्थकों में उत्साह बढ़ा है। दूसरी ओर, एनडीए लगातार यह संदेश दे रहा है कि केवल “डबल इंजन सरकार” ही बिहार को विकास की राह पर बनाए रख सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और अन्य बड़े नेता भी जल्द ही चुनावी मैदान में उतरने वाले हैं। बिहार की सियासत इस वक्त पूरी तरह चुनावी रंग में रंग चुकी है। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की जोड़ी का फिर से साथ आना महागठबंधन के लिए नई ऊर्जा का संकेत है, जबकि बीजेपी इसे जनता को भ्रमित करने की कोशिश बता रही है। पहले चरण के मतदान के साथ यह तय होगा कि बिहार की जनता किस पर भरोसा करती है — विकास के दावे करने वाला एनडीए या बदलाव का वादा करने वाला महागठबंधन। एक बात साफ है कि इस बार बिहार का चुनाव मुद्दों, चेहरों और शिक्षा से लैस प्रत्याशियों के बीच दिलचस्प मुकाबला पेश करने वाला है।


