तलाश किसी रहनुमा की जो सोनू को तराश सके, अपनें आर्किटेक हुनर से हर किसी को बना लिया अपना मुरीद

पटना। आज हम आपको एक ऐसे शख्स के हुनर से रु-ब-रु कराने जा रहे हैं जिसके हुनर का हर कोई आज मुरीद है। तो चलिए अब हम आपको लिए चलते हैं इस हुनर के हुनरमंद के गांव जो बिहार की राजधानी पटना से 28
किमी पूर्व खुसरूपुर के कुर्था गांव के हनुमान मंदिर के पास में पड़ता है, जहां एक गरीब मजदूर रघुवीर चौधरी का 16 वर्षीय बेटा जिसका नाम सोनू कुमार है। जिसके आर्किटेक हुनर का आज हर कोई मुरीद हो चुका है।

सोनू का जन्म 28 मार्च 2003 को हुआ। एक ऐसे गरीब परिवार में जहां हर तरफ गरीबी की दड़कती दिवारें थी, घर तो थी पर छत नसीब नहीं थे। जहां अच्छे कपड़े पहनना व अच्छे पकवान खाना इस परिबार के लिए ईद के चांद जैसा था। जहां हर तरफ बेबसी थी, तंगहाली व गरीबी थी। पर सोनू के पिता रघुवर चौधरी ने हिम्मत कभी नहीं हारी और हर परिस्थिति का इन्होनें डटकर मुकाबला किया। जीवन के संघर्षमय पथ पर अकेले ही चले मंजिल के उस मुक़ाम को पाने को, जहां का हर वो रास्ता काफी दुर्गम था। सोनू के पिता के हिस्से में मिली जमीन जो 15 बाई 15 फिट है, जिसमें रूम के ऊपर रूम बनी है। कुल दो रूम ही है और उसी में सोनू के माता-पिता सहित कुल पांच लोग रहते हैं।

सोनू का परिवार आज भी गरीबी व तंगहाली में जी रहा है, यह सोचकर की किस्मत कभी तो पलटेगी पर वक़्त बीतता गया, मौसम बदलते गये, कई वर्ष बीत गये पर स्थिति आज भी ज्यों की त्यों ही बनी हुई है कुछ नहीं बदला। बस बदला तो समय के साथ उम्र, न की तकदीर।

सोनू के पिता रघुवीर चौधरी ने पिछले कई वर्षो तक पटना में मजदूरी का काम करते रहे पर एक दिन अपने काम पर वे लेट से पहुंचे और वहां के मालिक ने उन्हें काम से हटा दिया और सोनू के पिता आर्थिक तंगी में कई दिन गुजारे पर इन्होनें हिम्मत नहीं हारी और काम की तलाश इन्होनें लगातार जारी रखा। फिर क्या एक दिन सोनू के पिता ने अपने गांव से तकरीबन 2 किमी की दूरी पर ही एक सोयाबीन की फैक्ट्री में मजदूरी का काम मिल गया। जहां तनख्वा महीने के दस हजार रुपये लेकिन डयूटी पूरे 12 घण्टे की थी, सुबह 8 बजे से रात्रि 8 बजे तक और इसी पैसे में ही सोनू के पिता अपने पांच लोगों के परिवार का भरण-पोषण करते हैं। सोनू तीन भाई है, जिसमें वह सबसे बड़ा है और अभी इंटर सेकेंड ईयर में पढ़ रहा है। दूसरा भाई नवीन कुमार क्लास नाइन में पढ़ता है और तीसरा भाई अमन चौथी क्लास में। इन तीनों के पढ़ाई में महीने के कुल पांच हजार रुपये खर्च हो जाते हैं और बचे पांच हजार रुपये में ही कुल पांच लोगों का इसमें गुजारा करना होता है। जिसमें अगर कोई बर-बीमार पड़ जाए तो आप समझ सकते हैं क्या इस परिवार की स्थिति होगी।

सन 2013 में सोनू के परिवार में एक ऐसा भी बुरा दिन आया, जिसकी उम्मीद परिवार के किसी भी सदस्य ने नहीं की थी। जी हां, उस दिन इस परिवार में मुसीबतों का एक ऐसा पहाड़ टूटा जिसके आगोश में पूरा परिवार समा गया, जहां से ऊपर उठना इतना आसान नहीं था। सोनू के पिता अपने ससुराल एक शादी समारोह में गये थे और एक दिन अचानक गिर गये और उनकी दोनों टांगे टूट गई। उस दिन परिवार का हर सदस्य ग़मज़दा था। खुशी पल में खामोशी व मातम में बदल गई। हर जुवां खामोश हो गई।

गौरतलब है कि डॉक्टर ने सोनू के पिता को खास हिदायत दी है कि 30 किलो से ज्यादा वजन नहीं उठाने को कहा गया है, पर सोनू के पिता के कंधों पर जिम्मेवारी का वो बोझ है, जिसे अपनें कंधों पर आज भी उठाए हुए जी रहे हैं। पैर टूटने के बाद सोनू के पिता तकरीबन छह महीने तक बिस्तर पर ही पड़े रहे और उस समय सोनू के नाना राम जतन चौधरी, जो पेशे से राज मिस्त्री थे और इन्होनें ही सोनू के परिवार की हर जिम्मेवारी को बखूबी उठाया और सहारा व हिम्मत दी।

सोनू पढ़ाई में भले ही तेज-तर्रार न हों पर उसमें जो आर्किटेक का हुनर है, उसे देखकर आज हर कोई सोनू का मुरीद बन बैठा है। सोनू की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह एक बार किसी मॉडल को देख व समझ लेता है तो उस मॉडल को अपने आर्किटेक हुनर के जरिये उसे हु-ब-हु उतार देता है और वो भी अपने घर या कबाड़ी में पड़े रद्दी समानों से ही और इतना खूबसूरत बना देता है कि जिसे देखने के बाद कोई भी अपनी नजरें हटा नहीं पाता। सोनू आठवीं क्लास से ही कागजों पर डिजाइन बनाया करता था। फिर एक दिन फ़तुहा के फेमस कार्टूनिस्ट अमरेन्द्र कुमार की नजर इस बच्चे पर पड़ी, फिर क्या सोनू के इस हुनर को तराशना शुरू किया। अमरेन्द्र कुमार इस बच्चे के हुनर को बारीकी से दिन पर दिन निखारते गये और इस मुकाम तक ले आये, जहां सोनू के हुनर का आज हर कोई मुरीद है।
आज सोनू आर्किटेक हुनर के जिस मुक़ाम पे है उसमें सोनू के गुरु अमरेन्द्र कुमार का बहुत ही बड़ा योगदान है।अमरेन्द्र कुमार भी कार्टूनिस्ट के दुनियाँ के बेताज बादशाह हैं। इनके द्वारा बनाये कार्टून अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती है  जो बेहद ही आकर्षित करती है।

बहरहाल सोनू का यही सपना है कि एक दिन वह आर्किटेक की अपने इस हुनर से देश और दुनिया में एक अलग पहचान स्थापित करे। सोनू अपने माता-पिता को वो सुख प्रदान करना चाहते हैं, जो हर मां-बाप अपने बच्चों से उम्मीद करते हैं। लिहाजा इस वक़्त सोनू गरीबी के उस चार दिवारी में जकड़ा हुआ है, जहां से निकल पाना इतना आसान नहीं है। अगर कोई सोनू के जिंदगी में रहनुमा बनकर आ जाये, तभी हम समझते हैं कि सोनू के तकदीर का सितारा उस दिन बुलंदी के सातवें आसमान पर होगा।
अब आगे देखना बेहद ही अहम होगा कि सोनू के किस्मत के बंद पड़े तालों की चाभी कब और कौन खोल पाता है, यह आगे देखना अहम होगा।

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