October 28, 2025

पवन सिंह की बीजेपी में हुई वापसी, उपेंद्र कुशवाहा ने की पहल, विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी

  • बिहार प्रभारी मनोज तावडे बोले, पवन हमारे साथ भाजपा में थे और आगे भी साथ रहेंगे

पटना। भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार और गायक-एक्टर पवन सिंह एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में लौट आए हैं। लंबे समय से उनकी राजनीतिक भूमिका को लेकर लग रहे अटकलों पर मंगलवार को भाजपा के बिहार प्रभारी विनोद तावड़े ने विराम लगाते हुए साफ कहा— “पवन सिंह भाजपा में थे और रहेंगे।” तावड़े और भाजपा के राष्ट्रीय सचिव ऋतुराज सिन्हा मंगलवार को दिल्ली में राष्ट्रीय लोक मोर्चा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा से मिले। इस मुलाकात में पवन सिंह भी मौजूद थे। माना जा रहा है कि यह बैठक पवन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा के बीच पुराने मतभेदों को सुलझाने की कोशिश थी।
आरा से एनडीए उम्मीदवार बनने की संभावना
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, पवन सिंह को आगामी विधानसभा चुनाव में आरा सीट से एनडीए उम्मीदवार के रूप में उतारा जा सकता है। उनकी एंट्री से भाजपा को शाहाबाद क्षेत्र (भोजपुर, बक्सर, रोहतास और कैमूर) की 22 विधानसभा सीटों पर सीधा फायदा मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। भोजपुरी बेल्ट में पवन सिंह का जबरदस्त प्रभाव है और पार्टी उनकी लोकप्रियता को भुनाने की रणनीति बना रही है।
लगातार सक्रिय रहे पवन सिंह
बीजेपी में वापसी से पहले भी पवन सिंह ने कई राजनीतिक गतिविधियों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी। हाल ही में उन्होंने आरा में पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता आर. के. सिंह से मुलाकात की थी। इसके बाद ही आर. के. सिंह ने बयान दिया था कि पवन सिंह को भाजपा में शामिल होना चाहिए। दिल्ली में भाजपा नेताओं से मुलाकात के बाद पवन सिंह ने कहा— “मेरी जनता ही मेरा भगवान है और चुनाव के समय मेरा फर्ज है कि मैं उनके बीच रहूं।” यह बयान स्पष्ट संकेत है कि वे अब पूरी तरह राजनीति में सक्रिय होने जा रहे हैं।
2024 लोकसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार रहे
गौरतलब है कि पवन सिंह ने 2024 के लोकसभा चुनाव में काराकाट सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरकर भाजपा-एनडीए को बड़ा झटका दिया था। इस सीट से एनडीए ने उपेंद्र कुशवाहा को उम्मीदवार बनाया था। चुनावी नतीजों में महागठबंधन प्रत्याशी की जीत हुई, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पवन सिंह के चुनाव लड़ने से एनडीए उम्मीदवार की हार हुई। उनकी निर्दलीय उम्मीदवारी का असर सिर्फ काराकाट तक सीमित नहीं रहा, बल्कि बक्सर और सासाराम जैसी सीटों पर भी पड़ा, जहां भाजपा प्रत्याशियों को पराजय का सामना करना पड़ा। यही वजह रही कि भाजपा नेतृत्व पवन सिंह को फिर से साथ लाने के लिए प्रयासरत रहा।
कुशवाहा से सुलह की कवायद
दिल्ली में हुई मुलाकात को पवन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा के बीच मतभेद खत्म करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। भाजपा नहीं चाहती कि शाहाबाद क्षेत्र में एनडीए के भीतर कोई दरार दिखे। यही कारण है कि बिहार प्रभारी विनोद तावड़े और ऋतुराज सिन्हा दोनों नेताओं को साथ बैठाकर बातचीत कराने में जुटे।
तेजस्वी यादव की तारीफ से चर्चा में आए
कुछ दिन पहले पवन सिंह ने एक इंटरव्यू में राजद नेता तेजस्वी यादव की जमकर तारीफ की थी। उन्होंने कहा था कि “तेजस्वी जब बोलते हैं तो दिल को छू जाते हैं। वह जमीनी नेता हैं।” जब उनसे पूछा गया कि तेजस्वी को 9वीं फेल कहा जाता है तो क्या वे विकास कर पाएंगे? इस पर पवन ने मजाकिया अंदाज में कहा— “मैं भी तो 6वीं पास हूं, लेकिन मेरे पास पढ़े-लिखे लोग काम करते हैं। असल चीज नीयत है, पढ़ाई ही सब कुछ नहीं।” इस बयान से पवन सिंह के राजनीतिक रुख को लेकर भ्रम की स्थिति बनी थी, लेकिन भाजपा में उनकी औपचारिक वापसी ने तस्वीर साफ कर दी।
पारिवारिक राजनीति भी सुर्खियों में
पवन सिंह की दूसरी पत्नी ज्योति सिंह भी राजनीति में उतर चुकी हैं। हाल ही में उन्होंने वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी से मुलाकात की थी। ज्योति सिंह कई बार सार्वजनिक रूप से ऐलान कर चुकी हैं कि वह 2025 का विधानसभा चुनाव लड़ेंगी। पवन सिंह और उनकी पत्नी, दोनों के राजनीति में आने से स्थानीय स्तर पर समीकरण और दिलचस्प होते जा रहे हैं।
राजनीति और ग्लैमर का मेल
भोजपुरी फिल्मों और गीतों के जरिए पवन सिंह का व्यापक जनाधार है। उनका राजनीतिक सक्रिय होना भाजपा के लिए शाहाबाद और भोजपुरी क्षेत्र में बड़ी ताकत साबित हो सकता है। भाजपा नेतृत्व जानता है कि चुनाव में ग्लैमर और जनसरोकार का मेल किस तरह जनता को आकर्षित करता है। यही वजह है कि पार्टी ने पवन सिंह की वापसी पर जोर दिया। भोजपुरी इंडस्ट्री के सुपरस्टार पवन सिंह की भाजपा में वापसी न सिर्फ संगठनात्मक मजबूती बल्कि राजनीतिक समीकरणों के लिहाज से भी अहम मानी जा रही है। आरा से उन्हें प्रत्याशी बनाए जाने की चर्चा तेज है। पवन सिंह की लोकप्रियता और जनता के बीच पैठ भाजपा के लिए बड़ी पूंजी साबित हो सकती है। हालांकि, 2024 लोकसभा चुनाव में उनके निर्दलीय दांव से भाजपा को नुकसान हुआ था, लेकिन इस बार पार्टी नेतृत्व ने उन्हें फिर से साथ जोड़कर संभावित नुकसान को रोकने की रणनीति बनाई है। अब देखना यह होगा कि पवन सिंह की सक्रिय राजनीति में वापसी आगामी विधानसभा चुनाव में एनडीए के लिए किस हद तक लाभकारी साबित होती है।

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